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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


इस अभाव की पूर्ति की जानी चाहिए। अध्यात्म को अपनाने से लौकिक जीवन कितना सफल और समुन्नत हो सकता है, इसे व्यवहार में प्रत्यक्ष करके दिखाया जाए, तभी इस महान् विज्ञान की उपयोगिता लोग समझ सकेंगे और उसे अपनाने के लिए उत्साहपूर्वक अग्रसर हो सकेंगे।

आर्ष मान्यताओं के अध्यात्म का वास्तविक स्वरूप क्या है और उसे पूजा-पाठ तक सीमित न रखकर मस्तिष्क की प्रत्येक विचारणा और क्रिया की प्रत्येक हलचल में कैसे ओतप्रोत किया जाए, जिससे मानव-जीवन स्वर्गीय विभूतियों से भरा-पूरा दिखाई देने लगे, यह प्रत्यक्षवाद के माध्यम से सिखाया-समझाया जाना चाहिए। इसके बिना वह अनास्था मिट न सकेगी, जिसके कारण लोग इस महान् तत्त्वज्ञान को निरुपयोगी समझकर उससे दूर हटते चले जा रहे हैं।

जिस प्रकार हम देशव्यापी अन्य समस्त विकृतियों के परिशोधन और अभावों की पूर्ति के लिए अनेकों प्रयत्न कर रहे हैं, उसी प्रकार यह भी आवश्यक है कि अध्यात्मवाद के वर्तमान विकृत स्वरूप को हटाकर आर्ष अध्यात्मवाद का उज्ज्वल स्वरूप सर्व साधारण के सम्मुख प्रस्तुत किया जाए। निःसंदेह यह कठिन कार्य है, क्योंकि पिछले एक हजार वर्ष के अंधकार युग में विदेशी षड्यंत्र के अंग बनकर लोगों ने अध्यात्म के नाम पर इतना कूड़ा-कचरा जमा कर दिया है, जिसके नीचे हमारा प्राचीन आदर्श और प्रबुद्ध दर्शन एक प्रकार से दब ही गया है। भाग्यवाद, पलायनवाद, निराशावाद, उपेक्षावाद, पराधीनतावाद, अकर्मण्यतावाद, दीनता और जो कुछ बुरे-से-बुरा हो रहा हो, उसे ईश्वर इच्छा मानकर सहन करना यही मुख्यतया अध्यात्मवाद के नाम पर कहा-सुना गया है।

क्षणभंगुरता, पग-पग पर मौत का भय दिखाकर, व्यक्तिगत और सामूहिक कर्तव्यों को माया बताकर, सब कुछ छोडकर भजन करने की ही शिक्षा दी गई है। सुधार, संघर्ष और सेवा-कार्यों को अहंकार बताया गया है और कहा गया है कि यह कार्य मनुष्य नहीं ईश्वर ही कर सकता है। इस प्रकार के विचारों के पीछे विदेशी शासकों के अत्याचारों को संतोषपूर्वक सहने की मनोभूमि प्रस्तुत करना ही एकमात्र उद्देश्य था। भावनाशील व्यक्तियों को उपेक्षावादी-एकांतसेवी बनाकर ही तो जनता को नेतृत्वविहीन किया जा सकता था। जरा-जरा से छोटे-छोटे कर्मकांड करके पापों के फल से बच निकलने का प्रलोभन देकर जातीय जीवन में दुश्चरित्रता का प्रवेश हो सकता है और इसी प्रकार तो कोई जाति सामूहिक रूप से निस्तेज की जा सकती थी। एक ओर तलवार से और दूसरी ओर इस पलायनवादी दर्शन से भारतीय समाज को निरस्त किया गया। तभी तो इतने लंबे समय तक इतने बड़े जनसमूह पर मुट्ठी भर लोग इतना नृशंस शासन कर सकने में समर्थ हुए।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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