आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
इस प्रवंचना में आज लाखों व्यक्ति भटक रहे हैं। उन्हें लाभ तो मिलना ही क्या था—धन और समय की बर्बादी ही हो सकती थी, सो होती रहती है। कागज के बने नकली शेर से मनोरंजन मात्र हो सकता है, असली सिंह के गुण उसमें कहाँ होते हैं? असली अध्यात्म के द्वारा लोक-परलोक का जो मंगलमय प्रतिफल मिल सकता था, वह इस विकृत, औंधे एवं नकली अध्यात्म के द्वारा कैसे संभव हो सकता है? इस मार्ग पर चलने वालों की असफलता को देखते हुए सर्वसाधारण के मन में उसकी ओर से विरक्ति, उपेक्षा एवं अनास्था पैदा हो रही है। अब धर्म और अध्यात्म की चर्चा को नाक-भौं सिकोड़ते हुए ही सुना जाता है। हर समझदार व्यक्ति अपने बच्चों को उससे दूर रखने का प्रयत्न करता है, ताकि वे भी इस भ्रम-जंजाल में फँसकर अपना भविष्य अंधकारमय न बनाने लगें।
प्राचीन काल में ऐसी बात नहीं थी। लोग अपने छोटे बालकों को ऋषियों के आश्रमों में पढ़ने को इसलिए भर्ती करते थे कि अध्यात्म का पारस स्पर्श करके उन लोहे जैसे बालकों को शोभायमान स्वर्ण बनने का अवसर मिलेगा। आग के संपर्क में जो भी वस्तु आती है गरम हो जाती है। अध्यात्म के संपर्क में आने वाले मनुष्यों का भी तेजस्वी, मनस्वी और यशस्वी होना स्वाभाविक है। जीवन की दिशा ठीक कर देने और उस परिष्कृत दृष्टिकोण से जिंदगी जीने की प्रकाश-प्रेरणा का नाम ही तो अध्यात्म है। जिसे यह कल्पवृक्ष मिल गया उसे किसी बात की कमी नहीं रहती। जिसने इस अमृत को पा लिया उसे किसी अतृप्ति का कष्ट नहीं सहना पड़ता। अध्यात्म का प्रकाश जिसके भी हृदय में प्रकाशवान् हो उठा, उसके चेहरे पर संतोष, उल्लास, आशा एवं श्रेष्ठता की किरणें निश्चित रूप से बिखरी पड़ी होंगी। शोक-संताप उसे छू भी न गये होंगे। उसके जीवन का प्रत्येक क्षेत्र सुविकसित बन रहा होगा। वाणी तथा क्रिया में श्रेष्ठता टपक रही होगी और उसका व्यक्तित्व अपनी उत्कृष्टता से दूसरे अनेकों को बल एवं प्रकाश प्रदान कर रहा होगा।
असली अध्यात्म का स्वरूप आज लुप्तप्राय बन चुका है। जिसने अपने जीवन में आध्यात्मिक आदर्शों को उतारा हो ऐसे मनीषी ढूँढ़े नहीं मिलते। धर्म ग्रंथ पढ़ने-सुनने की कथा-वार्ता एवं पूजा-पाठ की वस्तु बन गये हैं, उसमें जिस जीवन-निर्माण का बिखरा हुआ प्रशिक्षण है, उसे आज की स्थिति के अनुरूप किस प्रकार कर्म रूप में परिणत किया जाए? उसके द्वारा प्राप्त होने वाली सफलताओं को प्रत्यक्ष करके कैसे लोगों को उस महत्ता के लिए प्रभावित एवं आकर्षित किया जाए, इसका कोई विधान सामने नहीं है। प्राचीन काल की भाँति आज भी अध्यात्म को अपनाकर मनुष्य अपने व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन को सुविकसित बना सकता है, उसकी कोई प्रत्यक्ष प्रक्रिया कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होती। बातूनी प्रतिपादन अब किसी के गले में नहीं उतरते, क्योंकि अध्यात्म के नाम पर अत्युक्तिपूर्ण बातें इतनी अधिक कही जा चुकी हैं कि उन पर विश्वास करने का सहसा किसी को भी साहस नहीं होता।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न