आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
तथाकथित धर्माचार्यों को, संत-महंतों को इन्हीं दिनों पौ बारह करने के अवसर मिले। हर एक चतुर साधु-बाबाजी ने अपने नाम के संप्रदाय खड़े किये और अपनी सिद्धि, चमत्कारों की किंवदंतियाँ फैलाई। आश्चर्य यह होता है कि इन सिद्ध-चमत्कारी संतों से किसी ने यह न कहा कि आप इतने सामर्थ्यवान् हैं तो इस अत्याचारी शासन से छुटकारे का प्रबंध तो कर दीजिए। उन दिनों भोली जनता बुरी तरह दिग्भ्रांत होती रही और अगणित प्रकार के अध्यात्मवादी विचारों को अध्यात्म के नाम पर गले उतारती रही। आज भी परंपराओं की दुहाई देकर इसी अंधकार युग की भ्रांतियों को अध्यात्म माना जा रहा है। जुआ, सट्टा बताने वाले, नशेबाज बाबाजी और मुफ्त का माल लूटने के लालची, अंधविश्वासी आज भी अंधे-कोढ़ी की जोड़ी बने बैठे हैं और जहाँ-तहाँ उन्हीं के नाम पर अध्यात्मवाद की कूड़ा-गाड़ी लुढ़क रही है।
यह स्थिति निश्चित रूप से बदली जानी चाहिए। हमें उस प्रबुद्ध अध्यात्म की जानकारी जनसाधारण को करानी चाहिए, जिसके स्पर्श मात्र से लोहे को पारस छूने की प्रतिक्रिया होती है। सच्ची अध्यात्म की मान्यताएँ और भावनायें मनुष्य में यदि थोड़ी-सी भी प्रवेश कर सकें तो वह निश्चित रूप से संयमी, सदाचारी, प्रसन्न, चित्त, निर्भय, उदार और सद्गुणी बनेगा। जिसमें इन गुणों का प्रवेश हो सका वह जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति करेगा और प्रस्तुत कठिनाइयों में से प्रत्येक को अपने पुरुषार्थ द्वारा परास्त करके, निज की तथा समाज की सुख-शांति की संभावना अनेक गुनी बढ़ा सकने में समर्थ होगा। भारतीय व्यक्तित्व का स्तर और अपने समाज का स्तर ऊँचा उठाने के लिए, अध्यात्म की मान्यताओं को गहराई तक जनमानस में उतार देना ही एकमात्र उपाय हो सकता है। इससे पूर्व वर्तमान विकृतियों का परिशोधन कर, आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप निखारकर लोगों के सामने रखना होगा। प्राचीन धर्मशास्त्र में वह सब कुछ मौजूद है, पर आवश्यकता इस बात की है कि उसे सुव्यवस्थित रूप से क्रमबद्ध किया जाए, जिससे सर्व साधारण के लिए उसकी उपयोगिता को समझ सकना संभव हो सके। साथ ही उसका प्रत्यक्ष स्वरूप भी प्रस्तुत करना होगा। आर्ष अध्यात्म के प्रशिक्षण-प्रचार का व्यावहारिक स्वरूप देने वाले रचनात्मक कार्यक्रमों की व्यवस्था करनी होगी। अध्यात्म तत्त्वज्ञान की सेवा में ऋषियों के सारे जीवन लगते थे, वे जानते थे कि मानव-कल्याण का यही एकमात्र उपाय है। आज यदि हममें से भी कुछ लोग वर्तमान दुरावस्था को सुधारने और आर्ष अध्यात्म को समुज्ज्वल रूप में प्रस्तुत करने के लिए कुछ करने को कटिबद्ध हो सकें तो निश्चय ही देश, धर्म, समाज और संस्कृति की भारी सेवा संभव हो सकेगी।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न