आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन सफलता के सात सूत्र साधनश्रीराम शर्मा आचार्य
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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...
आर्थिक प्रचुरता, व्यापारिक उन्नति एवं सामाजिक स्थिति को उसी दशा में सफलता
की सूचक कहा जा सकता है, जबकि यह उपलब्धियाँ निष्कलंक तथा स्थिर सुख संतोष की
देने वाली हों। जिन्हें देखकर अपने पवित्र पुरुषार्थ निर्विकार आचरण, सत्य
व्यवहार और आंतरिक ईमानदारी का आत्मगौरव अनुभव हो। यदि यह उपलब्धियाँ अपने
अन्याय, अनौचित्य, असत्य अथवा अनाचरण की याद दिलाकर आत्मग्लानि, हीन भावना,
अपराधी-भाव का कारण बनती है और उनसे वांछित एवं वास्तविक हर्ष की प्राप्ति
नहीं होती है तो निश्चय ही वे सफलता' जैसे शब्द की अधिकारिणी नहीं बन सकती
है। सफलता की कसौटी आदर्श रक्षा है-आर्थिक प्रचुरता नहीं।
ठेकेदार की तरह ही सफलता-असफलता का सच्चा स्वरूप समझने के लिए किन्हीं दो
दुकानदारों का उदाहरण लिया जा सकता है। एक दुकानदार खाद्य पदार्थों में
मिलावट करता है। कम तोल कर देता है। अधिक पैसे लेता है। चोरबाजारी करता है।
ज्यादा दाम देने वाले के हाथ बेचता है। होते हुए चीज के लिए इन्कारी कर अभाव
पैदा करता है और महँगाई बढ़ाता है। भोले अनजान व्यक्तियों को ठगता है। इस
प्रकार के जाने कितने अनुचित उपायों द्वारा पैसा कमाकर कोठी खड़ी करता है।
बड़ी फर्म का मालिक बनता है। अपनी अनुचित कार्यवाहियों के लिए समाज में शंका,
संदेह तथा अपवाद का विषय बनता है। पुलिस का डर, कानूनों और हुक्कामों का भय
उसे रात-दिन चैन नहीं लेने देता। आय एवं बिक्रीकर की चोरी करने के लिए दुहरा
कागज रखता और उन्हें कहाँ रखें ? कहाँ छिपाऊँ के चक्कर के परेशान रहता है।
रहस्यवाद मुनीमों तथा नौकरों से अपराधी की तरह डरता है। कभी-कभी जेल हवालात
की हवा भी खानी पड़ती है। सरेआम शोषित व्यक्तियों द्वारा अपमानित होने की हर
समय संभावना बनी रहती है और इस प्रकार जिंदगी एक बवाल बन जाती है। इतनी
चिंताओं भयों तथा अवहेलनाओं के साथ पाया हुआ धन, जमा की हुई संपत्ति यदि
सफलता की सूचक हो सकती है तो फिर असफलता को किन लक्षणों से जोड़ा जाएगा।
इसके विपरीत एक दुकानदार, स्पष्ट एवं औचित्यवान रहता है। कमाई कम होती है
किंतु बाजार में साख है, ग्राहक विश्वास करते हैं। आत्म संतोष के साथ सिर
ऊँचा करके चलता है, कोई ऊँगली नहीं उठा पाता बाहर-भीतर से साफ-सुथरा है। उचित
बीज ही देता है। न तो समाज में निंदा का भय और न हाकिम हुक्कामों का डर।
स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढे सब प्रशंसा करते और सद्भावना रखते हैं। पहले उसी
की दुकान पर जाते, तब कहीं मजबूरी से दूसरे के यहाँ। बाजार के बड़े, किंतु
बेईमान व्यापारियों के बीच हीरे की तरह दमकता रहता है, लोकरंजन और लोकप्रियता
के बीच व्यापार करता है। थोड़ा किंतु शुद्ध सामान रखता, न कभी किसी को कम
देता और न बुरा सुनाता है। ऐसे स्वच्छ तथा निर्लिप्त दुकानदार को यदि सफल
नहीं कहा जा सकता तो फिर आर्थिक क्षेत्र में सफल कहा जाने योग्य कोई भी नहीं
माना जा सकता। सफलता का वास्तविक मापदंड अधिकता नहीं औचित्य ही है। अधिकता को
औचित्य की तुलना में सफलता कहने वाले अपनी अविवेकशीलता को ही व्यक्त करते
हैं।
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- सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
- सफलता की सही कसौटी
- असफलता से निराश न हों
- प्रयत्न और परिस्थितियाँ
- अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
- सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
- सात साधन
- सतत कर्मशील रहें
- आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
- पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
- छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
- सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
- अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए