आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन सफलता के सात सूत्र साधनश्रीराम शर्मा आचार्य
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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...
जब तक जीवन में अनुभवजन्य ज्ञान की कमी है, तब तक मनुष्य स्वप्नों के मनोरम
लोक में विहार करता रहता है परंतु जैसे-जैसे उसे संसार की बाधाओं का ज्ञान
होता है, वैसे-वैसे उसे प्रतीत होता है कि कल्पनाओं और योजनाओं का जो रूप
उसने प्रारंभ में कल्पना के नेत्रों से देखा था, वास्तव में वह वैसा नहीं है।
वास्तविक रूप अज्ञान के अनुभव को ही कहते हैं। अनुभव कर्म से प्राप्त होता
है। कर्म के साथ ही जीवन में सफलता जुड़ी रहती है।
एक कवि ने लिखा है, "जहाँ जीवन घायल पंछी-सा रात-दिन चीखें मार रहा है, वहाँ
कल्पना की ऊँची उड़ानों में डूबा रहना, जीवन का उपहास करना है।"
संसार में जो कुछ शिव और सुंदर दृष्टिगोचर होता है, वह मनुष्य की श्रमशीलता
का ही सुफल है। कला-कौशल की सारी उपलब्धि श्रम के आधार पर ही होती है। यदि
मनुष्य ने श्रम को न अपनाया होता तो वह भी अन्य पशुओं की तरह पिछड़ी स्थिति
में पड़ा रहता। मनुष्य को छोड़कर संसार के सारे प्राणी आज भी उसी आदि स्थिति
में रह रहे हैं, जिसमें वे सृष्टि के आरंभ में थे। मनुष्य की प्रगति का कारण
उसकी श्रमशीलता ही है।
मनुष्य ने श्रम करके अपने रहने के लिए मकान बनाए, पहनने के लिए कपड़ा तैयार
किया और खाने के लिए खेती का धंधा अपनाया यहीं नहीं जीवन को और अधिक सुंदर
तथा सुखदाई बनाने के लिए अनेक प्रकार के कला-कौशल का विकास किया। वह जीवन की
सुविधा के लिए कोई एक चीज बनाकर वहीं नहीं रुक गया बल्कि उसको अधिकाधिक
विकसित तथा सुंदर बनाने के लिए निरंतर श्रम करता रहा तभी वह एक साधारण
झोंपड़ी से चलकर बड़े-बड़े प्रासादों तक आ सका है। साधारण बोने-काटने से लेकर
असाधारण उद्योग-धंधों तक पहुँच सका है। नग्नता ढकने से लेकर पट-परिधानों तक
का निर्माण कर सका है। इतनी प्रगति तथा उन्नति मनुष्य अपनी श्रमशीलता के बल
पर ही कर सका है।
यदि रहन-सहन की साधारण सुविधाओं को निर्मित करके मनुष्य वहीं रुक जाता है और
अपनी श्रमशीलता का परित्याग कर देता तो वह इतनी उन्नति किस प्रकार कर सकता था
और अब भी जिस दिन मनुष्य अपनी श्रमशीलता को छोड़ देगा बना हुआ संसार बिगड़ने
लगेगा। महल अट्टालिकाएँ खंडहरों में बदलने लगेगी। पट-परिधान पत्तों और छालों
तक लौटने लगेंगे और सुंदर खाद्य बनैली वस्तुओं तक सीमित होने लगेंगे। आशय यह
है कि श्रमशीलता त्यागते ही संसार आदिकालीन वनचरता की ओर पुरोगामी होने
लगेगा।
कोई भी उन्नति, प्रगति अथवा सुंदर सुरक्षित रहने के लिए मनुष्य की अनवरत
श्रमशीलता की अपेक्षा रखती है। आज भी संसार में हजारों लाखों खंडहर ऐसे पाए
जाते हैं, जो मनुष्य की श्रमशीलता की गवाही देते हुए, उसके आलस्य एवं
उदासीनता पर आँसू से बहा रहे होते हैं।
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- सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
- सफलता की सही कसौटी
- असफलता से निराश न हों
- प्रयत्न और परिस्थितियाँ
- अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
- सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
- सात साधन
- सतत कर्मशील रहें
- आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
- पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
- छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
- सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
- अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए