आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन सफलता के सात सूत्र साधनश्रीराम शर्मा आचार्य
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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...
आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
एक बार एक बड़े परिश्रम के साथ मनुष्यों ने ऊँचे-ऊँचे शिल्प खड़े किए। उन्हें कला-कृतियों से सजाया और बहुत समय तक उनकी रक्षा की, किंतु कालांतर में जब उन्होंने उसको आवश्यक परिश्रम एवं अपेक्षता का अंश देना बंद कर दिया, वे मिट्टी मात्र बनकर रह गए।
बड़े-बड़े साम्राज्य, बड़े-बड़े समाज, बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ और बड़ी-बड़ी संस्कृतियाँ मनुष्य की श्रम साधना से बनीं और फिर उसी की अनाश्रमिक प्रवृत्ति के कारण मिट गईं। श्रम के बल पर बनाई गई कोई भी वस्तु बनी रहने के लिए निरंतर श्रम की आवश्यकता रखती है। यदि आज यह सोच लिया जाए कि संसार में सुख-सुविधा के प्रचुर साधन इकटठे हो गए हैं, अब आगे उनके लिए श्रम करने की क्या आवश्यकता है, तो निश्चय ही कल से संसार में दरिद्रता का सूत्रपात हो जाए। श्रम से ही श्रेय प्राप्त होते हैं और श्रम से ही वे सुरक्षित रहते हैं।
बड़े से बड़े परिश्रम के साथ ऊँची से ऊँची शिक्षा एवं योग्यता प्राप्त कर लेने के बाद वकील, बैरिस्टर, प्रोफेसर और डॉक्टर आदि यह सोच लें कि पच्चीस-तीस साल के कठिन पुरुषार्थ के बाद उन्होंने पर्याप्त योग्यता प्राप्त कर ली है अब उसके लिए परिश्रम की क्या आवश्यकता है, तो क्या वे एक दिन भी अपनी योग्यता सुरक्षित रख सकते हैं ? इसलिए सारे समझदार वकील, बैरिस्टर, प्रोफेसर आदि अपनी योग्यता को सुरक्षित बनाए रहने के लिए निरंतर श्रम करते रहते हैं और जो ऐसा न करने की भूल किया करते हैं, वे अपने क्षेत्र में दूसरों से पिछड़ जाते हैं। जो एक बार उपार्जित योग्यता के बल पर जीवन भर योग्य बने रहने की सोचते हैं, वे भूल करते हैं। परिश्रम, प्रयत्न और पुनरावृत्ति में स्थान आ जाने से उपार्जित योग्यताएँ भी पास से चली जाती हैं। वे तभी तक किसी के पास बनी रह सकती हैं, जब तक उनके लिए श्रम किया जाता रहता है।
कला-कौशल की बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ श्रम हीनता एवं अभ्यास शून्यता से निकम्मी हो जाती हैं। एक शिल्पकार, चित्रकार अथवा कलाकार अपनी सिद्धि के संतोष में यदि अभ्यास का परित्याग कर दे तो क्या वह दक्ष बना रह सकता है ? जिस श्रम की बदौलत वह एक से एक ऊँचे और बढ़िया निदर्शन तैयार करता रहता है, उसी के अभाव में आगे प्रगति करना तो दूर पीछे की विशेषताएँ भी खो देगा। यही कारण है कि संसार में सैकड़ों उदीयमान कलाकार और शिल्पकार ऐसे हुए हैं, जो अपनी ऊँची संभावनाओं की एक झलक दिखाकर बुझ गए और संसार उनकी असफलता पर तरस खाता रह गया। उदीयमान प्रतिभाओं के पतन का एक ही कारण होता है-'प्रमाद !' जो प्रारंभिक परिश्रम से लेकर उठता है, उसका त्याग कर दिए जाने से भविष्य की संभाव्य प्रगति रुक गई और उदीयमानता अस्तमित होकर अंधकार के परदे में चली गई। इसलिए आवश्यक है कि अपनी योग्यताओं एवं विशेषताओं को तरुण बनाए रखने के लिए अविराम परिश्रम में संलग्न रहा जाए।
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- सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
- सफलता की सही कसौटी
- असफलता से निराश न हों
- प्रयत्न और परिस्थितियाँ
- अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
- सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
- सात साधन
- सतत कर्मशील रहें
- आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
- पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
- छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
- सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
- अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए
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