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आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन

सफलता के सात सूत्र साधन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4254
आईएसबीएन :0000

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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...


एक मनुष्य ने कहा है, "नरक का मार्ग अच्छी योजनाओं से बना है।" तात्पर्य यह है कि अच्छी बातें सोचने वाले केवल सोचते ही रह जाते हैं, हवाई जमा-खर्च करते रह जाते हैं। वास्तविक कार्य नहीं करते। सोचने ही सोचने में उनकी इतनी शक्ति व्यय हो जाती है कि कार्य करने की शक्ति नहीं बचती। जिन महत्त्वपूर्ण योजनाओं का कोई उपयोग न हो और जो कपोल कल्पना मात्र हों, उनसे क्या लाभ ?

कहते हैं रावण के पास अमृत के कई घड़े थे। यदि युद्ध से पूर्व वह उनका पान कर लेता, तो संभवतः मृत्यु को प्राप्त न होता किंतु रावण पान को टालता गया। योजनाएँ बनाता रहा। अंततः वह क्षय को प्राप्त हुआ।

नैपोलियन कहा करता था, "मुझसे कोरी बातें न करो। कार्य करके दिखाओ। मैं कार्य चाहता हूँ। ठोस जीता-जागता पुरुषोचित कार्य। बातें नहीं, मुझे कार्य चाहिए।"

"पर उपदेश कुशल बहुतेरे"—इस कथन में भी कार्य की महत्ता और ऊपरी उपदेश की मूर्खता पर व्यंग्य है। दूसरों को उपदेश देना, बड़ी-बड़ी बातें बनाना, "ऐसा करो, वैसा करो"-यह कहने वाले आपको अनेक साधु, संत, ढोंगी मिलेंगे। भगवा वस्त्र धारण कर सरल प्रकृति के नागरिकों को मूर्ख बनाना कितना सरल है, लेकिन जहाँ वास्तविकता का प्रश्न है, ये उपदेशक, दिखावटी नेता अपने असली स्वरूप में प्रकट हो जाते हैं। अनेक चोर, गठकंटे, खुफिया पुलिस वाले, उपदेश का बाना बनाए डोलते रहते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि किसी के उपदेश या विचार ग्रहण करने से पूर्व उसके प्रत्यक्ष कार्यों को भी देखा और परखा जाए। जो कार्य की कसौटी पर खरा उतरे, जिसके नियम  आचरण की भित्ति पर खड़े हों, उसी कर्ममार्गी के विचार ग्रहण किए जाएँ।

इच्छाओं का सागर जब हिलोरें लेता है, तब वह कल्पना के समस्त मादक आकर्षण के साथ अनेक बात कहता है, हम कल्पना के लंबे हाथों से संसार का सब कुछ पकड़ लेना चाहते हैं। संसार की कठोर चट्टानों का, जिन पर सृष्टि के अगणित व्यक्तियों की सुकुमार महत्त्वाकांक्षाएँ टूट चुकी हैं, हमें ज्ञान नहीं रहता। कामनाएँ नित्य ही हाथ पसारा करती हैं, पर संसार की सीमाएँ और हमारी मजबूरियाँ हमें जहाँ की तहाँ रहने देती हैं। कामनाएँ उतनी ही सिद्ध होती हैं, जितनी कर्म में परिवर्तित हो जाती हैं।

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    अनुक्रम

  1. सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
  2. सफलता की सही कसौटी
  3. असफलता से निराश न हों
  4. प्रयत्न और परिस्थितियाँ
  5. अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
  6. सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
  7. सात साधन
  8. सतत कर्मशील रहें
  9. आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
  10. पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
  11. छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
  12. सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
  13. अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए

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