आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
क्या किसी एक गुरु का, सोचसमझ कर, चयनकर, निर्धारण कर गुरुवरण करना आवश्यक
है, यह कार्य क्या अनेकों सुयोग्यों से सम्पर्क स्थापित करते रहने पर
सम्भव नहीं है। इन जिज्ञासाओं के समाधान के लिए पी.एच.डी. करने वालों,
चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट्स की परीक्षा देने वालों, वकीलों तथा डाक्टर बनने के
बाद इण्टर्नशिप की प्रक्रिया से गुजरने वालों की सुव्यवस्थित अभ्यास की
विधि-व्यवस्था पर दृष्टि डालनी होगी। निश्चित "गाइड” अथवा प्रशिक्षण तंत्र
के माध्यम से ही उपरोक्त प्रयोजन पूरे होते हैं। निश्चित निर्धारण के बाद
एक सुनिश्चित उतरदायित्व भी बनता है एवं उस सीमा-बंधन के आधार पर शिक्षण
प्रक्रिया की समग्रता की सुनिश्चितता भी रहती है।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान