आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
|
13 पाठक हैं |
आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
अनिश्चय की दशा में जहाँ-तहाँ से चंचु प्रवेश करते रहने से उपर्युक्त
कार्यों में से एक भी नहीं सधता। इसलिए परम्परा ऐसी ही बनायी गई है कि
महत्वपूर्ण कार्यों के लिए विधिवत् एवम् निर्धारित प्रशिक्षण हो, चार्टर्ड
एकाउण्टेण्ट, एडवोकेट, डॉक्टर आदि का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने की
अवधि में भी किन्हीं विशिष्टों के साथ जुड़े रहने की विधि-व्यवस्था है। इस
मर्यादा का उल्लंघन कर, जहाँ-तहाँ से जब तब शिक्षण प्राप्त करते रहने की
व्यवस्था करने से भी बात बनती नहीं। यों अन्यों से पूछताछ करके, तदविषयक
अनेकानेक पुस्तकें पढ़कर, अधिकाधिक ज्ञान प्राप्त करते रहने पर कोई रोक
नहीं हैं, फिर भी निश्चित उत्तरदायित्व में बँधने की प्रचलित विद्या का
उल्लंघन करने, उसे निरर्थक मानकर उपेक्षा करने से भी बात बनती नहीं।
|
- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान
अनुक्रम
विनामूल्य पूर्वावलोकन
