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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता

आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4120
आईएसबीएन :000000

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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता


जीवन में हर महत्वपूर्ण कार्य के लिए शिक्षण प्रक्रिया एवं  शिक्षक के अवलम्बन की आवश्यकता पड़ती है। अभिभावकों को विशेष रूप से माता की यह भूमिका सर्वप्रथम निभानी व बच्चे में सुसंस्कारिता समाविष्ट करनी होती है। आत्मिक प्रगति की जब भी चर्चा होती है, मार्गदर्शन एवं सहयोग के लिए "सद्गुरु” का आश्रय लिये जाने की बात कही जाती है। जन समुदाय की प्रवृत्तियाँ लोक प्रचलन के अनुरूप होने के कारण यह कार्य एक प्रकार से प्रवाह के विरुद्ध चलने के समान है। जैसाकि अधिकांश सोचते व करते रहते हैं उसी का अनुकरण सामान्य स्तर के लोग प्रायः करते हैं। आत्मिक प्रगति के लिए भिन्न स्तर का सोच अपनाने के लिए व तदनुरूप अपने क्रिया-कलापों को ढालने के लिए एक सशक्त अवलम्बन की आवश्यकता पड़ती है। यह कार्य किन्हीं व्यक्तियों में समर्थ आदर्शवादी, श्रेष्ठ स्तर के व्यक्तित्वों के साथ घनिष्ठता स्थापित करने पर ही बन पड़ता है। इसी व्यवस्था को गुरुवरण या गुरु दीक्षा कहते हैं। गुरु दीक्षा अर्थात् गुरु के रूप में एक ऐसी सत्ता को सम्पूर्ण समर्पण जो उत्कृष्टताओं का, सत्प्रवृतियों का समुच्चय हो। जिसके पद चिन्हों पर चलकर, जिसके द्वारा प्रदत्त मार्गदर्शन को अपनाकर अपना जीवन भी वैसा ही श्रेष्ठतम व सार्थक बनाया जा सके। यह समर्पण सघन श्रद्धा के माध्यम से ही बन पड़ता है।

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    अनुक्रम

  1. आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
  2. श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
  3. समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
  4. इष्टदेव का निर्धारण
  5. दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
  6. देने की क्षमता और लेने की पात्रता
  7. तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
  8. गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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