आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
१. ॐ भूर्भुवः स्व- मस्तक को। २. तत्सवितुः- दोनों नेत्रों को। ३. वरेण्यम
दोनों कानों को। ४, भगों- मुख की। ५ देवस्य- कण्ठ को। ६ धीमहि-हृदय को। ७.
धियो यो नः-नाभि को। ८. प्रचोदयात् हाथों-पैरों को।
पृथ्वी पूजन:- एक आचमनी जल गायत्री मंत्र के साथ पृथ्वी पर चढ़ायें तथा
धरती माता को छूकर प्रणाम करें। भावना करें कि धरती माँ जिस तरह शरीर के
पोषण के लिए अन्न आदि देती हैं, वैसे ही अन्त:करण के पोषण के लिए शुभ
संस्कार प्रदान करे।
इस प्रकार षट्कर्म पूरे होने पर हाथ जोड़ कर गुरु वन्दना करें। भावना करें
कि गुरु चेतना उपासना के समय हमारे संरक्षण एवं मार्गदर्शन के लिए हमारे
साथ है:-
ॐ अखण्डमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
आदिशक्ति माँ गायत्री का स्मरण करें। प्रार्थना करें कि वे उपासना के समय
हमें प्रेरणा और शक्ति प्रदान करने के लिए दव्य प्रवाह के रूप में प्रकट
हों, हमें दिव्य बोध करायें:-
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान