आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
ॐ आयातु वरदे देवि ! अक्षरे ब्रह्मवादिनि।
गायात्रिच्छन्दसां भातः ब्रह्मयोने नमोऽस्तुते।।
इतना क्रस पूरा करने में लगभग ४-५ मिनट समय लग सकता है। जब भावनापूर्वक
माला लेकर अथवा बिना माला लिए ही (जैसा अनुकूल पड़े) जप करें। जप के समय
ध्यान करें कि सूर्य के प्रकाश की तरह माँ का तेज हमारे चारों ओर व्याप्त
है। जप के प्रभाव से वह रोम-रोम में भिद रहा है, हमारी काया, मन, अन्त:करण
सब उससे अनुप्राणित एकाकार हो रहे हैं।
जप पूरा होने पर हाथ जोड़कर परमात्म-चेतना एवं गुरु चेतना को प्रणाम करें।
विसर्जन की प्रार्थना करें।
ॐ उत्तमे शिखरे देवि ! भूम्यां पर्वतमूर्धनि।
ब्राह्मणेभ्यो ह्यनुज्ञाता गच्छ देवि यथासुखम्।।
विसर्जन के बाद जल-पात्र लेकर सूर्य की ओर मुख करके जल का अध्र्य चढ़ायें।
भावना करें कि जिस प्रकार पात्र छोड़कर जल सूर्य भगवान को अर्पित होकर
वायुमंडल में संव्याप्त हो रहा है, उसी प्रकार हमारी प्रतिभा भी स्वार्थ
के संकीर्ण पात्र से मुक्त होकर परमात्मा के निमित्त लगे और महानता को
प्राप्त हो।
दीक्षित व्यक्ति आहार और निद्रा की तरह उपासना को भी जीवन का अंग बना ले।
परम पू० गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी के संरक्षण में की गयी उपासना, जीवन
के अंतरंग एवं बहिरंग दोनों पक्षों को विकसित करती है। साधक की भावनाओं,
विचारों एवं गुण-कर्म-स्वभाव में दिव्यता समाविष्ट होकर असाधारण लाभ का
सुयोग उपस्थित कर देती।
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