आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
गहरी श्वास खींचें। भावना करें कि श्वास के साथ दिव्य प्राण हमारे अन्दर
प्रवेश कर रहा है और शरीर का कण-कण उसे सीख रहा है।
सहज रूप से थोड़ी देर श्वास रोकें। भावना करें कि दिव्य प्राण हमारे अन्दर
स्थिर हो रहा है।
श्वास धीरे-धीरे छोड़ते हुए भावना करें कि शरीर के विकार श्वास के साथ
बाहर जा रहे हैं।
थोड़ी देर सहज रूप से बाहर श्वास रोकें। भावना करें कि विकार दूर चले जा
रहे हैं, अन्दर प्राण का प्रकाश उभर रहा है। यह एक प्राणायाम हुआ। ऐसे तीन
प्राणायाम करें।
न्यास:-बायें हाथ में जल लें, दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियाँ मिलाकर जल
का स्पर्श करें। गायत्री मंत्र से उस जल को अभिमंत्रित करें। अब गायत्री
मंत्र का एक-एक खण्ड बोलते हुए एक-एक अंग को उस जल से स्पर्श (नीचे लिखे
क्रम से) करें। भावना करें कि इस स्पर्श से हमारे प्रमुख अंग-उपांग देव
प्रयोजनों के अनुरूप पवित्र और सशक्त बन रहे हैं।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान