लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता

आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4120
आईएसबीएन :000000

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

13 पाठक हैं

आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता


पवित्रीकरण:- शुद्ध आसन पर पालथी लगाकर-सुखासन से बैठे। बायें हाथ में जल लेकर दायें से ढकें। मन ही मन गायत्री मंत्र बोलें, मंत्र पूरा होने पर वह जल शरीर पर छिड़क लें। भावना करें कि प्रभु कृपा से पवित्रता का संचार हमारे शरीर, मन एवं अन्त:करण में हो रहा है।

आचमन:- आचमनी (चमची) से या दायें हाथ में जल लेकर, गायत्री मंत्र बोलते हुए क्रमशः तीन बार आचमन करें। भावना करें कि यह अभिमंत्रित जल हमारे तीनों शरीरों को समर्थ और सुसंस्कारी बना रहा है।

शिखा-वंदन:- गायत्री मंत्र का जप करते हुए शिखा-चोटी में गाँठ लागायें। चोटी न हो, तो उस स्थान को स्पर्श करें। भावना करें कि हम श्रेष्ठ-देव- संस्कृति के नैष्ठिक अनुयायी हैं। हम हमेशा उच्चतम आदर्शों का वरण करें और उन्हें प्राप्त करने की तेजस्विता हमें प्राप्त हो।

प्राणायाम:- कमर, मेरुदण्ड सीधा रखकर बैठे। भावना करें, परमात्मा की कृपा से हमारे चारों ओर दिव्य प्राण का सरोवर लहरा रहा है। हम पानी में मछली की तरह उसी दिव्य प्राण के बीच स्थित हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
  2. श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
  3. समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
  4. इष्टदेव का निर्धारण
  5. दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
  6. देने की क्षमता और लेने की पात्रता
  7. तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
  8. गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book