आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान
गायत्री महामंत्र का भाव-चिंतन तथा मानसिक जप चलते-फिरते किसी भी स्थिति
में करते रहा जा सकता है। फिर भी नैष्ठिक साधक को न्यूनतम १० मिनट का समय;
संध्या सहित न्यूनतम एक माला का जप करने में लगाना चाहिए। संध्योपासना का
क्रम इस प्रकार है।
उपासना के लिए ब्रह्ममुहूर्त-प्रात:काल का समय सर्वश्रेष्ठ है। यदि
परिस्थितिवश वह समय न पकड़ा जा सके, तो अपनी सुविधा के अनुसार कोई समय
निश्चित कर लेना चाहिए।
स्नान करके उपासना करना श्रेष्ठ है। यदि जल का अभाव हो, या शारीरिक
कमजोरी-बीमारी के कारण स्नान संभव न हो, तो हाथ-पैर धोकर, वस्त्र बदलकर भी
उपासना के लिए बैठा जा सकता है।
किसी स्थान पर स्वच्छ आसन पर बैठकर उपासना का क्रम प्रारंभ करें। अच्छा
हो, घर या कमरे के एक हिस्से में पूजन का स्थान निश्चित कर लिया जाय। उस
स्थान को कलश, गायत्री माँ या मंत्र का चित्र लगाकर सुसज्जित भी किया जा
सकता है।
उपासना के समय जल का पात्र (आचमनी-पंचपात्र) एवं दीपक अथवा अगरबत्ती
प्रज्वलित करके रखना चाहिए। जल एवं अग्नि की साक्षी में उपासना करने का
शास्त्र मत है। पहले संध्या-षट्कर्म करें:-
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान