आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
देने की क्षमता और लेने की पात्रता
देने वाला अधिकाधिक समर्थ है या लेने वाला। उसके उत्तर में लेने वाले की
पात्रता को कम महत्त्व नहीं दिया जा सकता। बादल कितने ही क्यों न बरसे,
टीले पर एक बूंद पानी नहीं रुकेगा, और चट्टान पर एक पता नहीं उगेगा। पानी
उतना ही रुकेगा, जितना गड़ा हो। में क्षमता होने पर सभी नदियाँ उसमें जा
मिलती हैं जबकि पहाड़ों आँखें न हों, तो दोपहर की धूप में भी कुछ न
दीखेगा। कान न हों, तो मधुर
संगीत और विज्ञान का लाभ कहाँ मिलेगा-मस्तिष्क पर मूढ़ता छायी हो, तो
सत्संग परामर्श की उपयोगिता नहीं रह जाती। शिष्य की पात्रता विकसित हो, तो
मिट्टी के द्रोणाचार्य, पत्थर के गिरधर गोपाल भी चमत्कार दिखा सकते हैं।
समर्थ गुरु रामदास-शिवाजी का, चाणक्य-चन्द्रगुप्त का, रामकृष्ण
परमहंस-विवेकानन्द का, विरजानन्द-दयानन्द का ही भला कर सके। यों उन लोगों
के पास शिष्य नामधारियों की मंडलियाँ मंडराती ही रहीं, पर उनके पल्ले
समर्थता का सान्निध्य पाने पर भी कुछ पड़ा नहीं।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान