आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माता जी ने आदान-प्रदान की जो प्रक्रिया अपने
महा-गुरुदेव के साथ निभायी है। उनका शिष्यत्व प्राप्त करने के इच्छुकों
में से प्रत्येक को भी वही अपनानी चाहिए। पूज्य गुरुदेव के पास जो था, वह
सच्चे मन से उन्होंने परमार्थ के लिए महान् गुरुदेव की इच्छा-आवश्यकता के
निमित्त, अपने को-साधनों की खपा देने के रूप में समर्पित किया। उनके
आदेशानुसार अपने आपको तपाया। यही है वह पात्रता, जिसके बदले में उनके
महाप्राण गुरुदेव ने अपनी भारी कमाई उनकी समर्थता के निमित्त निछावर कर
दीं। उसी आधार पर वंदनीया माता जी भी अपने आराध्य गुरुदेव की शक्ति पाकर
अनन्त शक्तिरूपा बनी हैं। एक प्रत्यक्ष व दूसरे परोक्ष मिलकर समग्र गुरु
तंत्र का निर्माण करते हैं।
मन बहलाना हो तो बात दूसरी है, अन्यथा गुरु-शिष्य की परम्परा अपनाने की,
सच्चे अर्थों में कार्यान्वित करने की बात ही सोची जानी चाहिए और उसी आधार
पर कोई बड़ा लाभ पाने, महत्त्वपूर्ण आदान-प्रदान का द्वार खोलने की चेष्टा
उस प्रकार करनी चाहिए, जैसा कि उदार चेता करते आये हैं।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान