आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
पूज्य गुरुदेव की, वंदनीया माता जी की उनके महाप्राण गुरुदेव ने जो अनुदान
दिया है, उसके पीछे यही शर्त रही, जिसे उन्होंने आदि से अन्त तक पूरी
ईमानदारी के साथ पूरा किया है। पात्रता की कसौटी सदा उनके ऊपर लगी रही है।
जितने खरे सिद्ध होते चले हैं उसी आधार पर क्रमशः उन्हें अधिकाधिक बड़े
अनुदान मिलते चले आये हैं। विवेकानन्द, दयानंद, शिवाजी, चंद्रगुप्त आदि ने
जो माँगा, पाया, वह उच्चस्तरीय उद्देश्यों की पूर्ति के लिए था। पाने से
पूर्व इसमें से हर किसी को अपनी पात्रता सिद्ध करनी पड़ी है। मेडिकल कॉलेज
में प्रवेश पाने से पूर्व “प्री मेडिकल टेस्ट” देने पड़ते हैं। अफसरों के
चुनाव में चुनाव आयोग के सामने कठिन परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना होता है।
दंगल में इनाम पाने से पूर्व अपना पराक्रम अन्य प्रतियोगियों से अधिक होने
का प्रमाण प्रस्तुत करना पड़ता है।
सात लाख की लाटरी खुल जाने के उपरान्त एक हजार का दान करने का प्रलोभन
देने वाले अध्यात्म क्षेत्र में बचकाने माने जाते हैं। लाटरी का नम्बर
बताने की स्थिति में जो है, वह किसी को नम्बर बताने और मात्र हजार रुपये
से संतोष करने की बात सोचेगा ही नहीं, किसी को बिचौलिया नहीं बनायेगा,
अपनी ही लाटरी खोल लेगा। किसी का अहसान क्यों लेगा ? लाभ होने के
उपरान्तदान देने की शर्त विवेकवानों के बीच काम नहीं देती, यह तो ओछे
लोगों का, प्रलोभन देकर काम कराने का घिनौना तरीका है। उच्च क्षेत्रों में
इस हेरा-फेरी की कोई गुंजाइश नहीं है। वरदान जिसे भी मिले हैं तप करके
अपनी पत्रता सिद्ध करने के उपरान्त ही मिले हैं।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान