आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
|
13 पाठक हैं |
आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
महान् गुरु किसी उच्च प्रयोजन के लिए अपनी शक्तियाँ या सिद्धियाँ
हस्तान्तरित करते हैं। संकीर्ण स्वार्थपरता की पूर्ति के लिए लोभ-मोह और
अहंकार की तृप्ति के लिए कोई विवेकवान् अपनी बहुमूल्य-कट साध्य कमाई न दे
सकता है और न इस प्रकार किसी की जेब काटने की बात किसी न्यायनिष्ठ को
सोचनी चाहिए। सरकारी उच्च पदासीन अफसरों को कितने ही सामान्य अधिकार या
साधन मिलते हैं पर उनका उपयोग प्रजा हित में शासन की इच्छानुसार ही किया
जा सकता है। कोई अफसर उन साधनों को निजी स्वार्थ साधने में करने लगे, तो
उसे अपराधियों के कटघरों में खड़ा होना होगा।
गुरु-गरिमा आदर्शों को अपनाकर ही उन्हें उपलब्ध हुई होती है, वे उसे
हस्तान्तरित भी उसी प्रयोजन के निमित्त करते हैं। साथ ही यह भी जानते,
परखते हैं कि लेने वाला प्रामाणिक एवं ईमानदार भी है या नहीं ? यह सिद्ध न
कर पाने पर, कुपात्र शिष्य जिस-तिस के सामने पल्ला पसरते फिरने पर भी खाली
हाथ रहता है। गुरुओं की दीक्षा अनुदान, इस शर्त पर हस्तान्तरित होते हैं
कि जो माँगा जा रहा है, उसका प्रयोग-उपयोग उच्चस्तरीय प्रयोजनों में हो।
संकीर्ण स्वार्थपरता की पूर्ति के लिए चाटुकारिता करने भर की ओछी रिश्वत
देकर किसी को उच्चस्तरीय अनुदान पाने में सफलता नहीं मिली। इस नंगी सच्चाई
को जितनी जल्दी समझ लिया जाय, उतना ही अच्छा है।
|
- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान