आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
गुरु दीक्षा के तीन स्तर हैं। मंत्र दीक्षा प्राण दीक्षा, अग्नि दीक्षा।
मंत्र दीक्षा को एक परम्परा अपनाने एवं मार्गदर्शन स्वीकार करने के स्तर
का समझा जा सकता है। इसमें शुद्ध उच्चारण सिखाया जाता है और सामान्य स्तर
के नित्य कर्म का विधि विधान सिखाकर उसे दिनचर्या का छोटा अंग बनाये
रहना पड़ता है। इसमें अनुशासन के परिपालन भर का प्रावधान है। यह सामान्य
स्तर की बात है। इसे काम चलाऊ प्रक्रिया के रूप में लिया और साधना क्षेत्र
की रुकी हुई गाड़ी को आगे बढ़ाया जा सकता है। इसे प्रशिक्षण, मार्गदर्शन,
अनुशासन की हल्की-फुल्की श्रृंखला कहा जा सकता है। कर्मकाण्ड इसका भी होता
है। एक हल्के सूत्र में दोनों इसमें बँधते भी हैं। इसे प्राथमिक प्रवेश
स्तर का समझा जा सकता है। दोनों पक्ष आवश्यकता अनुभव करके एक दूसरे को
खटखटाते हैं। सामान्यतया वे एक-दूसरे का कोई निश्चित उत्तरदायित्व नहीं
ओढ़ते।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान