आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
इष्ट निर्धारण-प्रगति क्रम का सुनिश्चित आधार-पथ निश्चित करना है। ईश्वरीय
सत्ता का मनुष्य में अवतरण 'उत्कृष्टता' के रूप में होता है। चिन्तन और
चरित्र में उच्च-स्तरीय उमंगें उठने लगती हैं तथा उसी स्तर की गतिविधियाँ
चल पड़ती हैं। उत्कृष्टता की उपासना ही ईश्वर उपासना है। यही उपास्य है।
लक्ष्य भी इसी को बनाना पड़ता है। इष्टदेव का निर्धारण किस रूप में किया
जाय, आज इस संदर्भ में अनेकों विकल्पों के जंजाल बने खड़े हैं। प्राचीनकाल
में ऐसा न था। तत्वज्ञानी एक निश्चय पर पहुँचे थे और उन्होंने समस्त
साधकों को वही निष्कर्ष अपनाने का परामर्श दिया था। भारतीय संस्कृति जिसे
वस्तुः: विश्व संस्कृति कहा जाना चाहिए-साधना के संदर्भ में एक ही निश्चय
पर पहुँची है कि आत्मिक प्रगति की साधना के लिए इष्ट रूप में गायत्री का
ही वरण होना चाहिए।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान