आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
प्रगति के किस बिन्दु तक पहुँचना है, इसका सुदृढ़ पूर्वनिश्चय होना आवश्यक
है। भव्य भवन बनाने वाले, सर्वप्रथम अभीष्ट निर्माण के नक्शे या मॉडल
बनाते हैं। आत्मिक प्रगति के लिए किस मार्ग से, जाना है-किस स्तर के
साधन जुटाने हैं इसके लिए कितने ही प्रकार के निर्धारण अपनाये जाते रहे
हैं। इन्हें इष्टदेव कहते हैं। राम भक्त बनने के लिए हनुमान, मर्यादा
पुरुषोत्तम बनने के लिए सविता को इष्ट बनाने की परम्परा है। इस निर्धारण
से मन को एक निश्चित दिशा में आगे बढ़ने और तदनुरूप प्रयास करने, साधन
जुटाने का मार्ग मिल जाता है। इस निर्धारण से न केवल प्रयास को दिशा मिलती
है, वरन् उसी स्तर के अन्तःक्षेत्र की प्रसुप्त शक्तियाँ भी जगने लगती
हैं। साथ ही परब्रह्म के शक्ति भण्डार में से उसी स्तर की अनुग्रह-वर्षा
भी अनायास ही आरम्भ हो जाती है। आकांक्षाएँ आवश्यकता बनती हैं, आवश्यकता
पुरुषार्थ की प्रेरणा जगाती है। प्रेरणा भरे पराक्रम में प्रचण्ड
चुम्बकत्व होता है। वह तीन दिशा में काम करता है। प्रथम व्यावहारिक
गतिविधियों को अभीष्ट की प्राप्ति के अनुरूप बनाता है। द्वितीय प्रसुप्त
क्षमताओं को जगाकर प्रगति पथ पर अग्रसर होने के लिए अदृश्य आधार खड़े करता
है। तृतीय दिव्य लोक के दैवी अनुदानों के बरसने का विशिष्ट लाभ मिलता है।
तीनों के सम्मिलन से त्रिवेणी संगम बनता है।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान