आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
इष्टदेव का निर्धारण
भौतिक प्रगति के लिए भौतिक पुरुषार्थ करने पड़ते हैं और आत्मिक प्रगति के
लिए चेतना का स्तर उठाने और प्रखरता को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है।
पेट में भूख लगती है, तो आहार उपार्जन करने के लिए दौड़-धूप करना आवश्यक
हो जाता है। शरीर में समर्थता बढ़ने पर कामुकता की तरंगें उठती हैं और
साथी ढूँढ़ने, परिवार बसाने का मानसिक ताना-बाना बुना जाने लगता है।
प्राणि-जगत का अस्तित्व और पराक्रम, इन्हीं पेट-प्रजनन के दो गति चक्रों
के सहारे सरलतापूर्वक लुढ़कता रहता है। आत्मिक प्रगति का प्रसंग दूसरा है।
चौरासी लाख योनियों के संगृहीत स्वभाव-संस्कार मनुष्य जीवन के उपयुक्त
नहीं रहते, ओछे पड़ जाते हैं। बच्चे के कपड़े बड़ों के शरीर में कहाँ फिट
होते हैं ? मानव जीवन की सार्थकता के लिए जिस सद्भाव से अन्त:करण को और
सत्प्रवृत्तियों से शरीर को सुसज्जित करना पड़ता है, वे पूर्व अभ्यास एवं
प्रभावी प्रचलन न होने के कारण कठिन पड़ते हैं। वह सहज सुलभ नहीं, वरन्
प्रयत्न-साध्य हैं। नीचे गिरने में पृथ्वी की आकर्षण शक्ति का क्रम ही
निरन्तर सहायता करता रहता है, पर ऊंचा उठने के लिए विशेष साधन जुटाने होते
हैं। आन्तरिक अभ्युत्थान के इसी पराक्रम को साधना कहते हैं।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान