नारी विमर्श >> कृष्णकली कृष्णकलीशिवानी
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हिन्दी साहित्य जगत् की सशक्त एवं लोकप्रिय कथाकार शिवानी का अद्वितीय उपन्यास
"बैठिए ना,” उसने हाथ पकड़कर बिठा दिया और
फिर मुट्ठी-भर काजू निकाल लिये, “क्या
फूला-फूला काजू है यार, एकदम शुतुर्मुर्रा
का अण्डा। लगता है विशेष आर्डर देकर पेड़
पर उगाये गये हैं।"
कली ने एक बड़ा-सा काज प्रवीर के होंठों
के पास धरा। उसने सिर पीछे कर लिया, तो
हँसकर उसने अपने मुँह में रख लिया।
''हाँ, तो कहिए, क्या कहना है मुझसे ?
वैसे शायद आपको यहाँ कहने में संकोच हा
रहा है, क्यों है ना ? चलिए, आपको अपने
रानियोवाले अन्तःपुर म त चलूँ'—वह थैला
हाथ में लिये उतर गयी। कुछ क़दम आगे बढ़कर
उसने देखा प्रवीर मुँह लटकाये बेंच पर ही
बैठा था। “बाप रे बाप, क्या हाथ पकड़कर
खींचे जाना ही पसन्द करते है आप ?" वह
लौटकर उसे हाथ पकड़कर बडी स्वाभाविकता से
खींच ले गयी। “एक बार नैनीताल में भी ऐसे
ही बिगडैल धोड़े से पाला पड़ा था। लगाम
पकड़कर खींचती-खींचती घर तक ले गयी थी।"
"यह देखिए, क्या राजसी प्राइवेसी है, देख
रहे हैं ना ?''
सचमुच ही कन्धे से कन्धा मिलाये अर्वाचीन
दो-तीन वट वृक्षों की सम्मिलित उलझी जटाओं
का भारी परदा झूल रहा था। बीच में था एक
कटे पेड़ का मोटा तना। "विराजिए, यही मेरे
आरण्यक निवास का राजसिंहासन है।" कली ने
उसे एक
बार फिर खींचकर तने पर बिठा दिया और स्वयं
उसके पैरों के पास बैठ गयी।
एक बार प्रवीर के जी में आया, उससे पूछ
दे—इस राज सिंहासन पर देश-विदेश के कितने
राजा अब तक बैठ चुके हैं ? पर ऐसी
हलकी-फुलकी बातें करने का उसे अभ्यास नहीं
था।
"देखिए मिस मजूमदार, आपसे हाथ जोड़कर एक
अनुरोध करने आया हूँ," प्रवीर का नम्र
शिष्ट स्वर संयत और शान्त था। “कृपा कर आप
अपने रहने का कहीं अन्यत्र प्रबन्ध कर
लें।"
"बस, इत्ती-सी बात ?" कली हँसकर बोली, “एक
अनुरोध मेरा भी है—जितनी देर यहाँ हैं,
कृपा कर मुझे मिस मजूमदार कहकर डंक न दें।
इस नाम से मुझे पुकारनेवाले ईश्वर की कृपा
से बहुत हैं। मेरा नाम बहुत छोटा-सा है।
जीभ को किसी प्रकार की जिमनैस्टिक नहीं
करनी पड़ती। कली—और रही आपका घर छोड़ने की
बात, मैं कल ही जा रही हूँ महाशय।"
प्रवीर का स्वर कुछ ऊँचा हो गया, “देखिए,
मुझे मज़ाक़ करने का अभ्यास नहीं है—कल और
परसों आपने जो कुछ किया है, उससे शायद
आपको लज्जा न हुई हो
और ऐसा करने का अभ्यास रहा हो, पर मुझे
नहीं है। हमारे घर की अपनी एक मर्यादा
है।"
“ओह, आई सी !" बड़ी-बड़ी आँखों के व्यंग्य
में सहसा दामोदर सजीव होकर प्रवीर को
अँगूठा दिखाने लगा।
"मैंने सुना है कि विद्युतरंजन मजूमदार,
राजा गजेन्द्र बर्मन आपके श्वसुर के परम
मित्र हैं। लौरीन आण्टी के पोल्ट्री फार्म
में भी पाण्डेजी के खासे शेयर हैं—तब तो
निश्चय ही आपको अपने गृह की मर्यादा का
विशेष ध्यान रखना होगा।"
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