नारी विमर्श >> कृष्णकली कृष्णकलीशिवानी
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हिन्दी साहित्य जगत् की सशक्त एवं लोकप्रिय कथाकार शिवानी का अद्वितीय उपन्यास
"देखिए अंकल," वह कहने लगी, "मेरी सादी में
तो आपने 'इलेक्शन' का बहाना बनाया, अब देखू
कुन्नी की शादी में कौन-सा बहाना बनाते
हैं—पर देखिए आप आयें ना आयें, कुन्नी की
वेडिंग प्रेजेण्ट आपसे आज ही एडवान्स धरा
लूँगी।"
लडकी के हीरों-से दमकते कर्णफल की सप्त
किरणों की सर्चलाइट से बेचारे मन्त्रीजी की
आँखें चौंधिया गयीं। मुन्नी के अपने शरीर को
छोड़कर सबकुछ इम्पोर्टेड था। कान-हाथ के
हीरे उसके डैडी विदेश से लाये थे। हाथ की
घड़ी उनकी पिछली विदेश-यात्रा का तोहफा थी।
कार्डिगन पिता के एक राजनीतिक मित्र ने ला
दिया था, साड़ी का बैमबर्ग जॉर्जेट एक दूसरे
मित्र की धोती के भीतर लँगोट बनकर आया था।
उस पर मुन्नी उस अलभ्य कठिनता से जुटायी गयी
प्रधान सामग्री का समुचित उपयोग करना भी
जानती थी। मन्त्रीजी बेचारे थे गँवई गाँव के
आदमी। दादी-नानीचाची-ताई को भैसें दुहते ही
देखा था, पत्नी को अच्छी-अच्छी साड़ियाँ
लाकर भी देते तो सत्यानाश करके रख देतीं।
मुन्नी के मीठे आदेश को उन्होंने सिर-आँखों
पर झेल लिया—'कहो बेटी, कौन-सा उपहार चाहिए
?'' उन्होंने हँसकर कुन्नी से पूछा।
"वाह भला, वह क्या अपने मुँह से माँगेगी ?
बैंक गॉड, अभी हम सब घर के ही लोग हैं – आइए
मैं बतलाऊँ।” मुन्नी उन्हें बाँह पकड़कर
एकान्त में खीच ले
गयी— “एक तो आपको कुन्नी के पति की बदली
दिल्ली करानी होगी। उन अफगानियों के बीच
हमारी कुन्नी सूखकर रह जाएगी और दूसरे, इनके
'ब्रदर इन ला' हैं—दामोदर! आई. पी. एस. के
आदमी हैं, पर सस्पेण्ड कर दिये गये हैं।
उन्हें भी ठीक करवाना होगा आपको।" वह फिर
उन्हें पिता के पास खींच लायी और कहने लगी,
“देखिए अंकल, एक सूत्र आपको और थमा दूं—उस
प्रदेश में विजिलेंस कमीशन के लिए जिनका नाम
प्रस्तावित हुआ है, उनमें से एक आपके
पार्लियामेण्ट्री सेक्रेटरी का साला
"ठीक है, हो जाएगा !" मन्त्री प्रवर चुटकी
बजाकर सोफे पर बैठे, तो सोफ़े का पूरा
स्प्रिंग भीतर धंस गया।
"देखिए अंकल, यह मन्त्रियोंवाला ‘हो जाएगा'
तो नहीं हैं ना ? शादी से पहले ही आपको
सबकुछ करना होगा। घर की मनहूसी में शादी
ब्याह की शहनाई क्या ख़ाक अच्छी लगेगी ?"
पाण्डेजी ने आँखों-ही-आँखों में शाबासी देकर
गुणी पुत्री को काल्पनिक पुष्पहारों से लाद
दिया। काश, उनकी यह डिप्लोमेट लड़की लड़का
होकर जन्मी होती ! इकलौते पुत्र से उन्हें
रत्ती-भर आशा नहीं थी। न जाने कितनी
ट्राम-बस जला, वह पिता को हृद्रोग का अमूल्य
उपहार दे चुका था। पिछले सप्ताह अपने पिता
का पुतला जला उसने विद्याथी वर्ग में
सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर लिया था।
जीवनावस्था में ही योग्य पुत्र द्वारा इस
पिण्डदान का कारण था-उनकी कुरसीधारी नेताओं
से मित्रता। बीच-बीच में उन्हें डरा-धमका.
अपनी अनामी पार्टी के लिए वह पिण्डारी डाक
की क्रूरता से थैली भर रुपयों की वसूली कर
फिर वीरान घाटियों में खो जाता।
कुन्नी उस दिन अपनी बड़ी बहन की तुलना में
शान्त बैठी थी। कभी-कभी वह अपनी आँखें
प्रवीर के चेहरे पर ऐसे गड़ा देती कि वह
खिसिया जाता। दूसरे ही क्षण उसके सम्मुख वह
मिठाई-नमकीन की प्लेटों का अम्बार लगा देती।
क्यों री कुन्नी," मुन्नी ने छोटी बहन को
हँसकर टोक दिया, “क्या अपने दूल्हे को
खिला-खिलाकर दुम्बा बना देगी ? शादी से पहले
ही कहीं तोंद न निकल आये। ज़रा उसकी वेस्ट
लाइन का ध्यान रख, समझी ? एक तो हमारे पहाड़
के शादी-ब्याह में दूल्हे को वैसे ही
कार्टून बनाकर धर देते हैं। मेरी शादी का
मुकुट कैसा था याद है ना, डैडी ? सामने से
गणेशजी और पीछे से जालिमलोशन का विज्ञापन।'
मन्त्रीजी भी हो-हो कर हँसने लगे।
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