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नारी विमर्श >> कृष्णकली

कृष्णकली

शिवानी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :219
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 379
आईएसबीएन :81-263-0975-x

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हिन्दी साहित्य जगत् की सशक्त एवं लोकप्रिय कथाकार शिवानी का अद्वितीय उपन्यास


एक प्रकार से लड़खड़ाती पन्ना पलँग का पाया पकड़कर बैठ गयी।
सात दिन पहले, उसकी शून्य बाँहों से यही डॉक्टर पैद्रिक, जिसे सफेद कपड़े में लपेटकर निर्ममता से कहीं दूर गाड़ने ले गयी थी, उसे ही क्या फिर गढ़े से निकाल लायी?
क्या पता फिर उस निर्जीत देह में प्राण लौट आये हों?
''रोज़ी, कहीं से लायी इसे? क्यों मुझसे छीन ले गयी थी? क्यों तड़पाया मुझे सात दिनों तक?'' एक बार फिर पन्ना वैसी ही हिस्टिरिकल होने लगी। डॉक्टर ने बिना कुछ कहे कुनकुनाती बली को पन्ना की गोद में डाल दिया।
''बहुत भूखी है पन्ना, दूध अभी उतर रहा है क्या?''
अनाड़ी हाथों से मृतवत्सा पन्ना ने उसे छाती से चिपका लिया। ब्रेस्ट पम्प से सुखायी गयी मातृत्व की सूखी लता फिर पल्लवित हो उठी। चपचप कर अमृत की पूँटें घुटकती काया को छाती से चिपकाकर पन्ना ने आँखें मूँद ली थीं और पागलों की भाति स्वयं ही बड़बड़ा रही थी। ''यह तो तुम्हारा सरासर अन्याय है रोज़ी, यह भी कैसा मज़ाक़ था भला! तुमने इतने दिनों तक एक शब्द भी नहीं कहा, हाय मेरी बली को सात दिनों तक बिना दूध के भूखा मार दिया तुमने...''

कुछाश्रम का ग्वाला जिस गाय को दुहने लाता था, एक बार उसकी बछिया मर गयी थी, दूसरे ही दिन वह भूसा-भरी बछिया को गैया से टिकाकर फिर दूध दुहने आ गया था। डॉक्टर पैद्रिक को लगा, भूसाभरी बछिया ही उन्होने भी आज पन्ना से सजा दी है, उनकी आँखें डबडबा आयीं। ''पन्ना, माई डार्लिंग,'' बड़े मीठे स्वर में उन्होने पन्ना को पुकारा, ''सवेरा होने को है, मुझे अभी लौट जाना होगा।''
पन्ना ने आँखें खोल दीं और सहमी दृष्टि से डॉक्टर को देखा, न जाने किस आशंका से वह काँप उठी। कहीं फिर तो नहीं छीन लेगी इसे?
''मैं तुमसे झूठ नहीं बोली थी पन्ना,'' वे रुक-रुककर कहने लगीं, ''यह तुम्हारी बच्ची नहीं है।''
भूखी बट्टी तृप्त होकर अभी भी उसकी छाती से लगी थी। होंठों से स्तन स्वयं छूट गये थे।
पन्ना शायद चौंककर पूछेगी-क्या? मेरी नहीं है? किसकी है तब?
पर पन्ना ने कुछ भी नहीं पूछा। इतनी देर तक आँखें बन्द कर वह अपनी लक्ष्य दृष्टि से सब कुछ देख चुकी थी।
''पन्ना,'' डॉक्टर पैद्रिक ने फिर पुकारा।
''क्या है रोज़ी?'' शान्त स्वर में पूछे गये प्रत्य और आंखों की स्थिर दृष्टि में न जिज्ञासा थी न कौतूहल।
''यह क्या पार्वती की बच्ची है रोज़ी?'' उसने पूछा तो डॉक्टर पैद्रिक जैसे आकाश से गिर पड़ीं। कैसे जान लिया इसने। क्या मन की भाषा भी पढ़ लेती है
यह विलक्षण नारी!
उत्तर में डाँक्टर ने सिर झुका लिया। रोगी की ऐसी बीभत्स अवस्था में जन्मी उस वली को उन्होंने पन्ना की गोदी में डाला ही किस दुरसाहस से। पन्ना पार्वती को ही नहीं असटुल्ला को भी जानती है। कई दिनों तक वह उसके बगीचे में माली का काम करता रहा था। डॉ. पैद्रिक ने अपनी ही सखी के यहाँ उसकी ड्यूटी लगा दी थी। ''इसकी रिपोर्ट निगेटिव है पन्ना, इससे चाहो तो हाट-बाजार का काम भी ले सकती हो।'' पर लाख हो, था तो कुछ रोगी ही। समाज इन अभागों की निगेटिव रिपोर्ट को क्या 'आज तक मान्यता दे पाया है?
ऐसे माता-पिता की अभिशप्त सन्तान क्या इस उदार गोदी में स्थान पा सकेगी? निश्चय ही दूर पटक देगी पन्ना।
'''मैं इसे मौत के मुँह से खींचकर लायी हूँ,'' डाँक्टर का गला भर आया था।

''तुम्हें तो बता ही चुकी थी, वह मूर्ख लड़की पहले ही ऐलान कर चुकी थी। पता नहीं कब उसे दर्द उठा और कब यह हो गयी। इसी की चीख सुनकर मैं भागी। जब तक पहुँची, शैतान उस पर सवार हो चुका था। अभी भी गरदन पर उसकी अँगुलियों के निशान बने धरे हैं। अगर इसे कुछ हो जाता तो मैं खुदा को क्या मुँह दिखाती, मैंने ही तो उसे ये नयी अँगुलियाँ दी थीं। तब मैं क्या जानती थी कि वह इनसे एक दिन एक नन्हीं जान का खात्मा करने पर उतारू हो जाएगी।''
पन्ना एक शब्द भी नहीं बोली। बसी उसकी छाती से लगी, चुपचाप पड़ी थी।

''मैं जानती हूँ कि इसके माँ-बाप को एक बार देख लेने पर, कोई कितना ही उदार हृदय क्यों न हो, शायद ही इसे स्वेच्छा से ग्रहण कर पाएगा। पर मैं तुम्हें जानती हूँ पन्ना, इसी से तुम्हारे पास बड़ी आशा से आयी हूँ। एक तो यह समय से पूर्व हुई है। माँ का दूध न मिलने पर यह कभी नहीं जी पाएगी। एक वर्ष तक भी तुम इसे पाल दो तो मैं फिर इसे मिशन को दे दूँगी। एक बात और कहना चाहती थी पन्ना...''

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