नारी विमर्श >> कृष्णकली कृष्णकलीशिवानी
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हिन्दी साहित्य जगत् की सशक्त एवं लोकप्रिय कथाकार शिवानी का अद्वितीय उपन्यास
''हां, हां, तुम्हारी सगी लड़कियाँ जैसे कुछ काम ही नहीं करतीं,''
जया माँ को शायद चिढ़ाने पर तुली थी।
'बस करो यार,'' दामोदर की भौरी आवाज ने झुँझलाकर जया को डपट दिया,
''अम्मा का घर है, जिसे चाहे रखें, तुम्हारा यहाँ अब कग हक़ है?''
''हां, जी, हाँ,'' जया तुनककर बोली, ''कैसे हक़ नहीं है, सुनूँ भला!
नये क़ानूनों ने हिन्दू-घर की पुत्री को भी पितृगह में समान अधिकार
दिये हैं, फिर देख लेना बड़े दा काबुल से आते ही इसे लाठी लेकर खदेड़
आएँगे।''
कली चुपचाप वाहर निकल आयी।
स्पट था कि अब घर में उसका निर्वाह नहीं हो सकेगा। वाय. डब्ल्यू.
सी. ए. की वार्डन, लिण्डा एण्डरसन को वह रैमनी से जानती थी। अपने
उसी रैमनी स्कूल के परिचय-सूत्र को पकड़ वह उससे पहले भी दो-तीन बार
मिल आयी थी। वहाँ एक कमरा मिलने में उसे परिश्रम नहीं करना पड़ेगा,
यह वह जानती थी। पर चतुर लिण्डा शायद मिशनरियों की मुँहलगी एजेण्ट
भी थी। जब भी कली उससे मिलने जाती, वह अपना कौशल से तैयार किया
मुट्ठी-भर चुग्गा बिखेर देती। जया की कटूक्ति सुन वह सीधी लिण्डा
के पास चली गयी।
''बहुत पहले तुमसे मैंने एक कमरे कि लिए कहा था लिण्डा, क्या अब भी
मुझे वह कमरा दे सकोगी?'' कुछ खिसियाकर ही कली ने पूछा। पहली बार
बड़ी उदारता से दिये गये कमरे को स्वयं ही ठुकरा दिया था।
''दे क्यों नहीं सकती डार्लिंग,'' उसने हँसकर कहा, ''पर मेरी बात
पर विचार क्यों नहीं करती? क्रिश्चियन बन जाओ और एक साथ तुम्हें कई
सुविधाएँ उपलब्ध हो जाएँगी। हर साल हमारा मिशन कई प्रतिभाशाली
छात्राओं को 'इण्टरनेशनल लिविंग स्कीम' में बाहर भेजता है। तुममें
जन्मजात प्रतिभा है, चाहो तो फ्रांस के अच्छे-फैशन स्कूल में
शिक्षा पा सकती हो। रहना, खाना-पीना सब किसी विदेशी परिवार के साथ
और भाग्य अच्छा रहा तो 'यू कैन आलवेज हुक समवन'।''
ठीक ही कह रही थी लिण्डा। न उसे पिता का पता था, न माँ के कुलशोत्र
का। क्या कोई भी निष्ठावान् हिन्दू-परिवार उसे कभी घर की बहू बनाने
को तैयार होगा?
माता-पिता दोनों कुछ रोगी, पत्नी चकले में और वेश्या का स्तनपान
किया! वाह क्या बढ़िया 'क्रिडेंशियला' थे! कली को भी कभी-कभी हँसी
आती और कभी चित्त में उमड़ते तीव्र विद्रोह की तरंगें उसे उद्वेलित
कर देतीं। जिस परिवार में तीन ही महीने रहकर वह अपने को बहुत अंशों
में उसकी मर्यादा के अनुकूल बना चुकी थी उसी का ज्येष्ठ पुत्र अब
उसे लाठी लेकर खदेड़ने चला आ रहा था! वह गृह क्या अब उसके लिए
निरापद स्थान रह गया था?
संसार का कोई भी पुरुष उसे लाठी लेकर नहीं खदेड़ सकता, इतना वह
जानती थी। अम्मा के दोनों दामादों को जब उसने अपनी सामान्य-सी
सज्जा से ही चारों खाने चित्त कर दिया तो वह काबुलीवाला आखिर किस
खेत की मूली था! वह वैसे अम्मा से उनके पुत्र के विषय में बहुत कुछ
सुन चुकी थी। वही पुत्र अब अम्मा का दुखता घाव था। रूप में और
स्वभाव में, दोनों में अपने अन्य भाई-बहनों से भिन्न।
खाटो बाँगाली छेले जन्मे छे तोमार माँ,' उसके प्रुध्वी पर आते ही
बंगाली दाई ने कहा था। सचमुच ही निखालिस बंगाली लड़का ही जन्मा था
और वैसा ही चपटा सिर, घने काले बाल और ऐसा साँवला रंग कि बचपन में
तो एकदम कहार लगै था लल्ला, अम्मा कहती।
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