नारी विमर्श >> कृष्णकली कृष्णकलीशिवानी
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हिन्दी साहित्य जगत् की सशक्त एवं लोकप्रिय कथाकार शिवानी का अद्वितीय उपन्यास
''मेरी यह टाँग देखती है ना? यही तो आण्टी की सोने के अण्डे देने
वाली बतख है, देख।'' उसने अपनी निर्जीव टाँग से लगी अदृश्य अर्गला
खोलकर रख दी थी।
''इसी में एक साथ तीस-तीस सोने की पट्टियाँ स्मगल कर सकती हूँ।
बुढ़िया के असली फ़ार्म की नित्य बड़े अण्डे देने वलिा लेगहार्न मुर्गी
हूँ मैं, समझी!''
असदुल्ला और पार्वती का रक्त सचेत हो गया। सूजन के साथ-साथ कली भी
फिर बड़ी स्वाभाविकता से पर फड़फड़ाती घूमने लगी-कभी कलकत्ता, कभी बम्बई
और कभी मद्रास। यू.ए.आर. और चीन का मनों सोना तब मद्रास में ही उतर
रहा था। मद्रास की सीमा के पास ही कली की कार को उस बार तीन-चार
'रेवेन्यू इण्टैलिजेंस' के धृष्ट कर्मचारियों ने घेर लिया था। सूजन
का लकड़ी का पैर भय से ठक-ठक काँप उठा। स्वयं कली की मुट्ठी-भर की कमर
में शिव के गले में लिपटी पतली नागिन-सी सोने की कई पत्तियाँ एक क्षण
को विचलित हो उठी थी।
गुजराती लड़की रश्मि दवे, आण्टी के पाल्ट्री फॉर्म की सबसे नयी और
फूहड़, डरपोक मुर्ग़ी थी।
''हाय मैं मर गयी, अब क्या होगा। मेरे पिता मुझे गोली से उड़ा
देंगे,'' वह काँपने लगी थी।
''चुप कर मूर्ख,'' कली फुसफुसायी थी, ''तेरे पिता मन्त्री हैं, और
वर्षों से यही काम कर रहे होंगे। खबरदार जो तूने चेहरे पर शिकन भी
आने दी।''
कार से उतरकर वह बड़ी मस्ती से मुसकराती सींग घुसेड़ने को तत्पर क्रोधी
साँड़-से चारों अफ़सरों की ओर बढ़ गयी।
''कहिए, आप लोगों ने हाथ ऊँचे कर क्या हमें ही कार रोकने का आदेश
किया था,'' वह बड़ी दुष्टता से मुसकराने लगी।
''जी हां,'' चारों में सबसे गम्भीर और मोटे-तगड़े पुलिस की वर्दी पहने
अफसर ने रूखा-सा उत्तर दिया।
''ओह,'' कली माइलस्टोन पर बैठ, धूप का फ़ेण्टम चश्मा उतारकर रूमाल से
चेहरा पोंछती हँसकर बोली, ''मैंने सोचा शायद 'हैण्ड्स-अप' करके, हम
चारों के सौन्दर्य से डरकर आप चारों स्वयं ही हथियार डाल रहे हैं।''
चारों में सबसे छोटा और चुलबुला-सा छोकरा अफसर 'खु-खु' कर हँसने लगा,
पर दूसरे ही क्षण वरिष्ठ गम्भीर अफ़सर की कठोर दृष्टि से सहमकर वह
अटेंशन की मुद्रा में खड़ा हो गया।
''हमें सूचना मिली है कि कुछ सोना स्मगल कर आज यहाँ लाया जा रहा है।
आप ही की नहीं, हर आने-जाने वाली गाड़ी की हम तलाशी ले रहे हैं।''
''ओ, आई सी,'' कली फिर हँसी। उसके गालों के गहरे गड्ढों में
वर्दीधारी वरिष्ठ अधिकारी को छोड़कर शेष तीनों छोकरे अफसर वर्दी सहित
गले तक धँस गये।
''ले लीजिए ना तलाशी, पर तलाशी किसकी लेंगे? हमारी या हमारी कार की?
सूजन डार्लिंग, तुम लोग सब नीचे उतर जाओ, ये महाशय हमारी तलाशी
लेंगे। कहते हैं, हम सोना स्मगल करने आयी हैं।''
तीनों लजाती-मुसकराती अप्सराएँ नीचे उतर आयीं, अकेला घनी मूँछों वाला
घाघ सरदार ड्राइवर व्हील पकड़े निर्विकार मुद्रा में सीट पर जमा ही
रहा था।
कली हँसकर कहने लगी, ''वाह सरदारजी, आप भी उतर आइए ना! सबसे कड़ी
तलाशी इन्हीं की लीजिएगा सर, क्या पता घनी दाढ़ी और जुट्टे के जटाजूट
में सोने की कोई भागीरथी छिपाये बैठे हों।''
अचानक न जाने कहीं से पास के कॉलेज के छोकरों की भीड़ कार को घेरकर
खड़ी हो गयी।
''माला सिन्हा है, आई केन बेट,'' एक स्वर फुसफुसाया। फिर वही छुतही
गूँज पूरी भीड़ में गूँज उठी।
''देखा ना?'' कली को वही स्पष्ट फुसफुसाहट नयी प्रेरणा दे गयी। उसने
अपनी भुवनमोहिनी हँसी के दर्पण में गालों के गहरे गढ़े फिर चमकाये,
''आप नहीं पहचान सके, मेरे 'फैन' ने मुझे पहचान लिया। महाशय, हम सोना
स्मगल करने नहीं, अपितु नीरस दक्षिण प्रदेश में सुवर्ण-वृष्टि करने
आयी हैं, समझे?''
अब तक खिलवाड़ करती परिहास-रसिक कली ने गिरगिट का-सा रंग बदल दिया।
उसके पतले नथुने क्रोध से फड़कने लगे, ''यहाँ हम फ़िल्म की शूटिंग के
लिए आयी हैं। सोचा था आपका मद्रास हमारे स्वागत में पलक-पाँवड़े बिछा
देगा, पर देखा ना रश्मि, कैसे मूर्ख जाहिल लोगों का देश है! चाहने पर
आपको सू कर सकते हैं, यह जानते हैं क्या आप?''
''कहा था ना मैंने माला है, मिस ऑटोग्राफ।''
''इसी कॉपी पर दे दीजिए मिस, इन्हें अभी भगाते हैं। आप चिन्ता मत
करिए।'' और चारों रौबदार अफ़सरों को विद्यार्थियों की भीड़ ने दूर तक
खदेड़ दिया।
'रेवेन्यू इण्टैलिजेन्स' के चारों अधिकारी दूर से ही विद्यार्थियों
की कॉपियों और पाठ्य-पुस्तकों पर हस्ताक्षर करती चार अप्सराओं को
विवशता से हाथ बींध देखते रहे थे। चलते-चलते कली ने एक फ्लाइंग किस
चारों की ओर उड़ा दिया और विनोद-प्रिया तारिकाओं का रहस्यमय दल, तेजी
से कार भगाता मद्रास के गन्तव्य स्थान पर सोना उँड़ेल रात-ही-रात
कलकत्ता लौट गया था। इसके बाद कली ने स्वेच्छा से ही धन्धा छोड़ दिया।
अब उसके पैर स्वयं ही महानगरी में जम गये थे, किसी के कन्धे का सहारा
लेने की अब उसे आवश्यकता नहीं थी।
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