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नारी विमर्श >> कृष्णकली

कृष्णकली

शिवानी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :219
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 379
आईएसबीएन :81-263-0975-x

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हिन्दी साहित्य जगत् की सशक्त एवं लोकप्रिय कथाकार शिवानी का अद्वितीय उपन्यास



तुम तो जानते ही हो उन्हें कभी हमारा ज़ोर से बोलना भी पसन्द नहीं था। न दीदी ही चुप होती थीं, न जीजाजी। बड़ी देर तक एकदम कुँजड़ोंवाली लड़ाई चलती रही! हारकर मैं ही दीदी को खींचकर अम्मा के कमरे में ले आयी। मुझे देखते ही जीजाजी
और चीखने लगे, 'तुम्हारे माँ-बाप ने पेशा करनेवाली भटियारिन को लाकर किराये पर कोठरी उठा दी है। उसी के नाज-नखरे तुम दोनों बहनों ने भी सीख लिये हैं।' मैं चुप रही। वह तो अच्छा हुआ कली अपने कमरे में नहीं थी। कहीं सुन लेती, तो क्या सोचती।"

प्रवीर का चेहरा गम्भीर हो गया, “दामोदर क्या अपने ही कमरे में है ?"

"वही तो कहने आयी हूँ," माया भाई के पायताने बैठ गयी। “रात ही न जाने कहाँ चले गये। कल रात किसी ने भी खाना नहीं खाया। पान की दुकान तक जाकर बाबूजी दो बार देख आये। रात-भर अम्मा बैठी रहीं। उन्हें डर है, कहीं क्रोध में आकर कुछ कर न बैठें। पर दीदी का कहना है कि उन्हें जानती हैं, जेब के पैसे और पेट का अन्न चुकेगा तो खुद ही भिखमंगे बने द्वार पर खड़े हो जाएँगे।"

प्रवीर उठ गया, “तू चल, मैं आ रहा हूँ। जया ठीक कहती है, क्रोध में आकर कुछ कर बैठे, ऐसा साहस उस कायर में कभी नहीं हो सकता। दोपहर के खाने तक वह खुद ही लौट आएगा। पहली बार भी तो ऐसा ही किया था।"

प्रवीर अम्मा के कमरे में गया तो जया तख्त पर औंधी पड़ी थी। माँ के पास बैठी पुत्री सहमी दृष्टि से कभी माँ को देखती, कभी नानी को मामा को देखकर वह सबकने लगी।

"क्या बचपना करते हो तुम दोनों जया," प्रवीर अपनी झुंझलाहट नहीं रोक पाया, “यू शुड हैव सम सेंस, ह्वाई क्रिएट सच सीन्स।" हिस्टिरिकल-सी बनी जया उठकर बैठ गयी। बहन के उलझे बाल और गलग्रह के भार से विकृत बन गयी फटी सूजी लाल आँखें देखकर पलभर को प्रवीर अपनी सगी बहन को ही नहीं पहचान पाया। क्या सचमुच उसकी वही बहन थी, जिसकी कानवेण्ट की शिक्षा, लावण्य और नम्र मिष्ट स्वभाव ने कभी दोनों भाइयों का सिरदर्द बेहद बढ़ा दिया था। न जाने उसके कितने अनजान प्रशंसकों के प्रेमपत्र, आत्महत्या की धमकियाँ उन्हें आये दिन उनसे जूझने को बाध्य करतीं। आज किसी लड़के ने कॉलेज जा रही जया की गोदी में सेण्ट में बसा नीला लिफ़ाफ़ा डाल दिया, आज जस्टिस बनर्जी के पुत्र ने उसे धमकी दे दी कि वह उसके पत्र का उत्तर नहीं देगी तो वह एसिड डालकर उसके चेहरे को बीभत्स बना देगा। आज सचमुच ही नियति ने एसिड डालकर उस सुन्दर चेहरे की लुनाई छीन ली थी। बंगाल में असाधारण रूपवती किशोरी को एक सर्वथा नवीन नाम लेकर पुकारते हैं 'बीबी'। जया सत्रह की भी नहीं हुई थी कि बिना प्रयास के ही बंगाल की 'बीबी' बन गयी थी। उन दिनों 'बीबी' की उपाधि मिस यूनिवर्स से भी अधिक महत्त्व रखती थी। आज उसी 'बीबी' पर मक्खियाँ भिनकने
लगी थीं।

“मुझसे क्या कहते हो ?' वह कर्कश, फटे स्वर में चीखने लगी, “अम्मा से क्यों नहीं कहते, जो बिना देखे-सुने, मुझे पहाड़ के अँधेरे कुएँ में धकेल दिया ? मेरी तो माँ-बहन ही परायी हो गयीं। कली तो उनकी ऐसी अनोखी बेटी बन गयी है, जो आँखों में मूंदने पर भी अम्मा को नहीं पिराती ! बस हम झूठी हैं। हमने अपनी आँखों से उस छोकरी को इनकी बाहो में देखा, और अम्मा-माया हमें ही झूठा बनाती है। अपना ही सोना खोटा न होता तो क्या परखनेवाले को दोष देती ?"

"जया," प्रवीर ने उसे ऐसे डपटा कि वह सहम गयी, “तू क्या एकदम ही वौरा गयी है ? सयानी लड़की यहाँ बैठी है।" वह अँगरेज़ी में उसे फिर धड़ल्ले से धमकाने लगा।

"तू यहाँ क्या कर रही है, जा, बाहर खेल," उसने फिर डरी-सहमी भानजी को बाहर भगा दिया।

रात-भर बेंच पर लावारिस लाश-सी बिछी जिस लड़की के लिए प्रवीर का चित्त पसीज उठा था, वह वर्षा में भीगे कंक्रीट की भाँति फिर पत्थर बन गया।

"मैंने तुमसे क्या कहा था अम्मा ! देखो वही हुआ ना ! एकदम अनजान लड़की को तुम यहाँ ले आयीं।”

अब तक चुपचाप खड़ी माया सहसा कली का पक्ष लेकर अखाड़े में कूद पड़ी, "पता नहीं, यह दीदी को क्या हो गया है। शी रिफ्यूजेज़ टु बी रीज़नेबल। कुछ सुनेंगी ही नहीं। फिर क्या ख़ाक समझेंगी ? असल में बात यह थी बड़े दा..."

वह अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पायी थी कि लाल अंगारे-सी दहकती आँखें लेकर दामोदर द्वार पर आ खड़ा हुआ।

“वाह,” वह बड़ी बेहयाई से हँसकर बीच द्वार में द्वारपाल की मुद्रा में खड़ा हो गया, “यहाँ तो पूरी संसद-समीक्षा चल रही है। क्यों जी सासूजी, हमारी अनुपस्थिति में हम पर क्या-क्या अभियोग लगाये गये है, ज़रा हम भी सुने !"

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