नारी विमर्श >> कालिंदी (सजिल्द) कालिंदी (सजिल्द)शिवानी
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एक स्वयंसिद्ध लड़की के जीवन पर आधारित उपन्यास
विक्टोरिया ही तो उसकी बचपन की स्वीटहार्ट थी-विक्टोरिया रावत, चंचल तितली-सी
फरफराती विक्टोरिया रावत जिसे अपने चीनी नाना से विरासत में मिला मंगोली रंग,
उठे कपोल और छोटी-छोटी सूजी आँखें एक सर्वथा मौलिक सौन्दर्य छटा से निरन्तर
आलोड़ित किए रहतीं। एल्फी जब इन्टर में था और वह हाईस्कूल में, तब ही वह उसे
अपने पापा-ममी की स्वीकृति पा, अँगूठी भी पहना आया था। उसका पिता कुमाऊँ मोटर
यूनियन में ड्राइवर था, माँ थी मिडवाइफ, एल्फी का घराना निश्चित रूप से उसी
के शब्दों में ब्लू ब्लडेड था किन्तु भावी पुत्रवधू का सुन्दर चेहरा देख,
एल्फी के ममी-डैडी भी रीझ गए थे।
थोड़ी देर की उस मनहूस चुप्पी को फिर स्वयं एल्फी ने ही तोड़ा, "विक्टोरिया
ने मुझे डिच कर दिया देवी, तुझे विलियम की याद है न? विलियम पॉल-हेडमास्टर का
बेटा, जो सीटी बजाता था?"
"वही विलियम न, जो हीराडुंगरी में रहता था? ग्रेसी विला के पीछे जिसका लाल छत
वाला बंगला था-मेलविल लॉज?''
“हाँ, वही। तुझे तो पता है, कैसी गजब की सीटी बजाता था विलियम, हर गाने की
धुन ज्यों की त्यों उतार देता था।"
“एडम्स स्कूल की सारी लड़कियों को वह पाइडपाइपर-सा खींच ले जाता था।"
"हाँ, देवी, विक्टोरिया को भी उसी ने खींच लिया, दोनों ने विवाह कर लिया, फिर
वह फौज में भर्ती हो गया-नौशेरा है न पेशावर के पास, वहीं बदली हुई, फैमिली
स्टेशन मिला, तो विक्टोरिया को भी ले गया। सुना, वेहद शराब पीने लगा था और
विक्टोरिया को ढोल-दमामे-सा पीटने भी लगा था। फिर उसे टी.बी. हो गया और मायके
पटक गया, मैं बराबर उससे मिलने जाता रहा-डॉक्टरों ने कहा, भुवाली ले जाने पर
शायद बच जाए। उसके माँ-बाप उसे भुवाली भेजते या उसके आठ भाई-बहनों को पालते?
मैं ही अपना घर-द्वार बेच, उसे भुवाली ले गया। मेरे ममी-पापा तो दोनों ही
मर-खप चुके थे, एल्सी पादरी के बेटे से शादी कर पहली जचगी में ही चल बसी
थी-मेरा था ही कौन-?" एल्फी फिर उठकर खिड़की के पास खड़ा हो गया, जैसे मित्र
के निकट घिसटता चला जा रहा हो, जहाँ एल्सी थी, विक्टोरिया थी, ममी-पापा और
देवी था, उसका प्रिय मित्र देवेन्द्र। "उसके बाद मैं कृष्णनगर चला गया"-वह
खिड़की से बाहर हो रिक्त दृष्टि से देखता चला गया, "वहाँ फादर डिसूजा ने बुला
लिया था। कुछ दिनों वहीं के कुष्ठाश्रम में कुष्ठ रोगियों की सेवा की पर वहाँ
भी शान्ति नहीं मिली। फिर वहीं वहुत बीमार पड़ गया। डॉक्टरों ने कहा, सिरोसिस
है-शरीर पर कैसा कैसा जुलुम तो किया था मैंने! जब शराब नहीं छूटी तो पेट्रोल
से काम चलाया, फिर स्पिरिट और फिर छिपकली, कीड़े-मकोड़ों से बनी शराब। एक बार
तो अन्धा होते-होते बचा।"
"और अब? अब भी पीते हो क्या?"
देवेन्द्र ने पूछा तो मित्र की म्लान हँसी देवेन्द्र का कलेजा मरोड़ गई, “अब
क्या पियूँगा यार, खाने को एक जून की रोटी तो मयस्सर होती नहीं, पर तुमने यह
नहीं पूछा, मैंने शराब पीना कब शुरू किया और क्यों?"
"क्या पूछू एल्फी, तुम्हारी दशा देख तो रहा हूँ।"
"मैं ही उसे भुवाली सैनेटोरियम ले गया, घिस-घिस कर एकदम बच्ची-सी बन गई थी,
गोदी में उठाकर ले गया था उसे, पर वहाँ दस दिन ही रह पाई-मरने से पहले पूरे
होश में थी, कहने लगी-“एल्फी, मेरे बदन में चींटियाँ चल रही हैं, मुझे अपनी
गोद में लिटा दे, तुझे मैंने बहुत दुःख दिया है एल्फी! मेरी छाती में मुँह
छिपा वह जैसे मौत से भाग रही थी।
“ला अपना चेहरा जरा नीचे झुका, मैं तेरा माथा चूम लूँ-तू आदमी नहीं फरिश्ता
है एल्फी-थेंक्स, थैक्स फार एवरीथिंग! मैंने झुककर उसे उठाया और एक खून की कै
के साथ, उसने मेरी बाँहों ही में दम तोड़ दिया-शी वेंट अबे विदाउट किसिंग मी,
गुडवाय देबी..."
देवेन्द्र ने उसे हल्द्वानी जाने से बहुत रोका, “तुम हमेशा मेरे पास रह सकोगे
एल्फी?"
"नहीं देवेन्द्र-इट इज वेरी काइंड ऑफ यू, पर मैं इस उम्र में अब किसी पर बोझ
नहीं बनूँगा।"
दूसरा मित्र वसन्त भी एक दिन अचानक ही मिल गया था। वसन्त की आर्थिक अवस्था
एल्फी की-सी विपन्न नहीं थी, किन्तु मानसिक अशान्ति ने उसे भी असमय ही
वार्धक्य की देहरी पर खड़ा कर दिया था। पत्नी को दो वर्ष पहले, पक्षाघात के
जबरदस्त धक्के ने पंगु बना दिया था-न वह उठ-बैठ ही सकती थी, न बोल ही पाती
थी, घर में देखभाल करने वाला और कोई नहीं था, इसी से वसन्त घर की ही परिधि
में बँधा रहता था। एक ही पुत्र था, वह स्कॉलरशिप पाकर अमेरिका गया तो वहीं बस
गया, विदेशिनी बहू ने उसे एक ही बार स्वदेश आने की अनुमति दी थी, यहाँ तक कि
वह वृद्ध जनक-जननी से मिलाने अपने दो पुत्रों को भी नहीं लाया-स्वयं वसन्त ने
भी कभी पुत्र से, उन्हें लाने का अनुरोध नहीं किया।
पहाड़ी भाषा में, कुछ ऐसे विलक्षण शब्द हैं जो मनुष्य की स्वभावगत दुर्वलताओं
को उच्चरित होते ही सटीक अंकित कर देते हैं-पहाड़ी शब्द 'केकड़' भी ऐसा ही एक
बोलता-चालता शब्द है, 'केकड़' अर्थात् 'ऐंठू' पर उस ऐंठपन में भी आत्मसम्मान
का जो पक्का रंग चढ़ा रहता है, उसकी जैसी सहज व्याख्या यह छोटा-सा शब्द कर
जाता है, वैसी व्याख्या कर पाना अन्य किसी भाषा की सामर्थ्य के बाहर है।
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