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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


बिजली गुल हो जाना असामान्य बात तो नहीं, पर अप्रत्याशित जरूर थी; लेकिन बिजली गुल होते ही जेनरेटर चालू हो जाता था कि ऑफिस का काम चलता रहे; पर जेनरेटर भी चालू नहीं हुआ यानी कुछ ज्यादा गंभीर होनेवाला था। 'संभवत: शॉर्ट सर्किट होगा, मुझे देखने दो।" राजेश का सहकर्मी गुरबक्श सिंह बोल उठा। वह बिजली तथा यांत्रिक उपकरणों का काम जानता था। जब सिंह दौड़ गया तो राजेश भी बाहर गलियारे में निकल आया। तुरंत ही उसने धुएँ की गंध महसूस की। हालाँकि धुएँ का पता लगानेवाले अत्याधुनिक उपकरण खामोश थे। वे उपकरण कुछ घटिया किस्म के थे और उन्हें कभी जाँचा भी नहीं गया था। उस दिन घटी घटनाओं से साफ हो गया था कि वे उपकरण भ्रष्टाचार की घनी होती झाड़ियों के केवल मामूली से प्रतिनिधि थे। कई चीजें उस वक्त काम नहीं करतीं जब उनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है।

परंतु राजेश ने अपनी नाक का भरोसा किया और भगदड़ शुरू होने से पहले ही इमारत से बाहर निकल जाने का फैसला कर लिया। लिफ्ट को छोड़कर राजेश सीढ़ियों से भागता हुआ नीचे उतर आया। उस फर्म में काम शुरू करने के बाद यह पहला मौका था जब वह चौदहवीं मंजिल से सीढ़ियों के रास्ते नीचे उतरा था। नीचे उतरते-उतरते धुआँ घना हो गया था। लेकिन फिर भी वह बिल्डिंग से सुरक्षित बाहर निकल आया। पर जैसे ही वह बिल्डिंग से बाहर आया, उसके सामने एक अद्भुत नजारा था। उसे चारों ओर बनी ऊँची-ऊँची इमारतों के बीच- बीच में लाइन से झुग्गियाँ बनी हुई दिखाई दीं। भला हो गंदी बस्तियों की बेरोक- टोक बसावट का, कुछ झुग्गियों में, जो गैर-कानूनी रूप से बिजली चुराते थे, शॉर्ट सर्किट के कारण आग लग गई थी। आग की लपटें एक इमारत से दूसरी इमारत तक ऐसे फैल रही थीं जैसे दीवाली की रात में पटाखों की लड़ियाँ जलती हैं।

राजेश के दफ्तरवाली इमारत समेत कई गगनचुंबी इमारतें आग की लपटों में घिरी हुई थीं, जबकि कई अन्य इमारतें आग से घिरनेवाली ही थीं।

राजेश भौचक्का-सा अग्निलीला को देख रहा था। जंगल की आग जैसे एक के बाद एक पेड़ों को लीलती जाती है वैसे ही यह आग भी एक-एक कर झुग्गी- बस्तियों को लीलती जा रही थी। जंगल की आग भी पेड़ों को इतनी जल्दी नहीं जलाती होगी जितनी तेजी से यह आग झुग्गियों को जला रही थी; क्योंकि झुग्गियाँ बनी ही थीं तेजी से आग पकड़नेवाली सामग्रियों से। किसी ने भी झुग्गीवासियों को इस खतरे के बारे में चेताने की जरूरत नहीं समझी थी।

अभी तक दमकलवाले क्यों नहीं आए'-राजेश ने सोचा। कुछ खाली जगहों पर लोगों की भारी भीड़ लग गई थी। इक्कीसवीं सदी के मध्य में संचार व्यवस्था इतनी उन्नत तो होगी ही कि अग्निशामक उपकरणों को कुछ मिनटों में लाया जाए। दमकलवालों के न पहुँचने का कारण वह नहीं जानता था, अनेक परिस्थितियों के कारण देरी हो रही थी-अपर्याप्त पूर्व सावधानियों के कारण टेलीफोन लाइनें तोड़ दी गई थीं। एक आदमी मोटरसाइकिल दौड़ाकर दमकल केंद्र पहुँचा तो स्वागत डेस्क खाली पड़ा था। कर्मचारियों को इकट्ठा करने और अग्निकांड स्थल तक रवाना होते-होते सड़कों पर जबरदस्त ट्रैफिक हो गया था। और फिर जब दमकल की गाड़ियाँ आग से घिरी सबसे नजदीकी इमारत तक पहुँची और आग बुझाने लगी तो उन्हें पता चला कि उनके पास पानी बहुत कम है।

नागरिक व्यवहार के नियमों के बारे में माना जाता है कि इन्हें सामाजिक ताने-बाने की रक्षा के उद्देश्य से गढ़ा गया है। पर एक भ्रष्ट समाज में उनकी भूमिकाएँ अलग हो जाती हैं। प्रत्येक नियम के लिए 'क' जैसे किसी व्यक्ति की तरफ से काररवाई जरूरी होती है। पर 'क' अपने कर्तव्य से बचना चाहता है और वह इसकी कीमत चुकाने को भी तैयार है। लेकिन यह कीमत उस खर्च से कम होती है जो 'क' को नियम का पालन करने में उठाना पड़ता। 'क' द्वारा चुकाई गई कीमत अधिकारी 'ख' की जेब में जाती है। अगर नियम का पालन होता तो शायद 'ख' को कुछ न मिलता। एक तरह नियम तोड़ने से 'क' और 'ख' दोनों का फायदा होता है और जो भी नुकसान होता है वह समाज को होता है; और आज समाज को कीमत चुकानी पड़ रही थी और कीमत भी एक थी।

मंत्रालय की पाँचवीं मंजिल पर अपने कार्यालय से मुख्यमंत्री असहाय-से अग्निकांड को देख रहे थे। उन्होंने नागरिक प्रशासन और मंत्रिमंडल की आपातकालीन बैठक बुलाई थी। पर बहुत कम लोग ही आ सके, क्योंकि हर कोई आपातस्थिति से निबटने में लगा था या मीडिया को अपनी सफाई दे रहा था।

"मैं हेलीकॉप्टर से हवाई सर्वे करूँगा।" मुख्यमंत्री ने घोषणा की। मंत्रालय भवन की छत पर एक हेलीकॉप्टर उनके लिए हमेशा तैयार रहता था। मुख्यमंत्री का पी.ए. चालक दल को सावधान करने छत पर दौड़ गया।

क्या कोई मेरे साथ आ रहा है?" हेलीकॉप्टर में सवार होने से पहले मुख्यमंत्री ने पूछा।

सभी ने अपने हाथ उठा दिए; क्योंकि सभी सोच रहे थे कि मुख्यमंत्री हेलीकॉप्टर से भाग जाएँगे, इसलिए हर कोई तैयार हो गया।

"परंतु मैं इस उड़ान की सलाह नहीं दूंगा।" पायलट ने कहा, "लपटें आसमान तक ऊँची उठ रही हैं और अगर हमारी ईंधन की टंकी आग"

"पर मुझे यह खतरा उठाना पड़ेगा, चलो आओ! जब तक मौका है, आओ चलें।"

अब मुख्यमंत्री के साथ केवल आधे लोग ही आए। पायलट की चेतावनी से शेष के होश उड़ गए। हेलीकॉप्टर दक्षिण मुंबई के ऊपर एक सुरक्षित ऊँचाई पर उड़ान भर रहा था। नीचे जहाँ तक नजर जाती थी, लाल-नारंगी लपटों का ही नजारा था। इन लपटों के बीच से ही लोगों की भीड़ उत्तर दिशा की ओर भागी जा रही थी। लेकिन आग की रफ्तार लोगों से तेज थी। झुग्गी-बस्तियों के रास्ते आग एक के बाद एक इमारतों को आगोश में लेती जा रही थी। रेलगाड़ियाँ पटरियों पर असहाय-सी खड़ी थीं और बसें यहाँ-वहाँ जल रही थीं।

"इन परिस्थितियों में फायर ब्रिगेड क्या कर सकता है? यह तो चार्ज ऑफ द लाइट ब्रिगेड है।" मुख्यमंत्री ने कहा, जिन्हें मराठी व अंग्रेजी साहित्य की अच्छी समझ थी। "यह तो रोम जलने के समान है, जब नीरो बाँसुरी बजा रहा था। मैं नीरो से कुछ बेहतर नहीं हूँ।"

"पर श्रीमान, आप खतरों का सामना कर स्थिति का जायजा तो ले रहे हैं।" एक चापलूस ने कहा।

"नहीं, मैं भी सारे समय खिलवाड़ ही करता रहा। केवल मैं ही नहीं, मेरे पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री भी खिलवाड़ करते रहे और यह महान् शहर बद-से-बदतर होता गया। हम ऐसी समस्याओं का लीपा-पोतीवाला समाधान ढूँढ़ते रहे जिन पर नए दृष्टिकोण से सोचने की जरूरत थी। हमारी सभी स्वार्थ नीतियाँ सुनिश्चित करती गईं कि शहर का ज्यादा-से-ज्यादा नुकसान हो। अब मुंबई ने भी जवाब दे दिया : अब और नहीं, बस और नहीं। पर अब बहुत देर हो चुकी है।'' मुख्यमंत्री ने चालक दल को निर्देश दिया कि हेलीकॉप्टर को मंत्रालय की छत पर वापस उतारा जाए। आग की लपलपाती लपटों के बीच हेलीकॉप्टर को उतारना बेहद दुःसाहस का कार्य था। कार्यालय पहुँचने पर मुख्यमंत्री को वायरलेस संदेश मिले कि आग दादर तथा वडाला अन्य उपनगरीय इलाकों तक पहुँच गई है और उसका आगे बढ़ना भयावह रूप से जारी था। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर को खाली करा लिया था और उसके रिएक्टरों को न्यूट्रलाइज कर दिया गया। मुख्यमंत्री को जल्द ही मंत्रालय भी खाली करना था।

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