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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


आप लोगों ने घर वापसी पर हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया और हमारी अच्छी देखभाल की, इसके लिए हम आपका हृदय से धन्यवाद करते हैं। हम आपको बदले में कुछ देना चाहते थे और धरती पर बनी वर्तमान दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ने हमें आपके अहसानों का बदला चुकाने का एक मौका दिया है।

"अब मैं आपकी इजाजत चाहूँगा और एक कार्यक्रम का प्रसारण शुरू करूँगा, जो हम पाँचों ने आपके लिए रिकॉर्ड किया है। कार्यक्रम खत्म होने पर प्रसारण बंद हो जाएगा। एक बार फिर आपको हमारी शुभकामनाएँ और कृतज्ञतापूर्ण धन्यवाद।"

उसके बाद रिकॉर्ड किया गया कार्यक्रम शुरू हुआ। सबसे पहले परदे पर दलजीत सिंह प्रकट हुआ। उदास और गंभीर मुद्रा में उसने बोलना शुरू किया- "मित्रो, मैं नहीं जानता कि कब इस कार्यक्रम को दिखाने लायक हालात पैदा होंगे। शायद तब तक हम पाँचों में से कोई भी जीवित न बचे। शायद ऐसी नौबत कभी न आए। बेशक तब हम सभी बहुत खुश होंगे; लेकिन रिकॉर्ड की खातिर आज के कार्यक्रम की तारीख है-1 जनवरी, 2111।

"जैसा कि आप जानते हैं कि हम बीसवीं सदी में पैदा हुए थे। हमारे माँ- बाप के जीवनकाल में विज्ञान और तकनीकी में तीव्र विकास हुआ था। अगले सौ वर्षों में विज्ञान और तकनीकी किस तरह विकास करेंगे, यह हम सभी जानने को उत्सुक थे"लेकिन हमारी पीढ़ी में से केवल हमें ही यह सौभाग्य मिला कि हम लंबे समय तक जीवित रहे और उस विकास को देखा। हमें बर्फ की तरह जमा दिया गया और दूर अंतरिक्ष में अलग-थलग भिजवा दिया गया। हमारी शारीरिक क्रियाएँ अत्यधिक मंद हो गईं। हम खुशकिस्मत थे कि सौ साल लंबी नींद के बावजूद हम जीवित रहे।

"पर हमने क्या देखा और जो परिवर्तन हमने देखे उन पर हमारी कैसी प्रतिक्रिया रही, यह मेरे मित्र कार्टर पैटरसन आपको बताएँगे।" 'धन्यवाद, दलजीत!" कार्टर ने बोलना शुरू किया।

"मैं विस्तार में नहीं जाऊँगा, लेकिन एक खास पहलू को जरूर उजागर करूँगा। वह पहलू है स्वचालन पर निर्भरता का। बीसवीं सदी में ऊँचे स्वचालन की ओर लोगों का रुझान बढ़ा, लेकिन आखिरी नियंत्रण हमेशा आदमी के हाथों में रहा। ऐसा आभास होता है कि इक्कीसवीं सदी के दौरान आदमी ने अपने ज्यादातर अधिकार मशीनों को सौंप दिए हैं। अपनी जवानी के दिनों में ही हम देख सकते थे कि फैसले का अधिकार भी कंप्यूटरों को सौंपा जा रहा था।

'ऐसा लगता है कि पिछले सौ वर्षों के दौरान अपने आप चलनेवाले उपकरणों ने फैसला करने की प्रक्रिया को हथिया लिया था। इसके अपने लाभ थे-मनुष्य तो कभी-कभी असंगत, अकुशल और पूर्वग्रहों से ग्रस्त होकर फैसले ले सकता है लेकिन कंप्यूटर तेज और वस्तुनिष्ठ फैसले ही लेंगे। हम इनसानों ने कंप्यूटरों में विश्वास जताया है तो बदले में कंप्यूटरों ने भी हमारे जीवन को सँवारा है। रोज- रोज की ज्यादातर समस्याओं को सुलझाने के साथ-साथ इस ग्रह को और ज्यादा बसने लायक बनाया है।

"लेकिन हम जो पिछली सदी से आए थे, मशीनों पर इतनी ज्यादा निर्भरता देखकर हमें परेशानी होने लगी। हमने आज के दौर के अपने वैज्ञानिक मित्रों से अपनी आशंकाओं पर चर्चा भी की थी। दूसरे क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों के साथ भी अपने विचारों का आदान-प्रदान किया था, लेकिन हमारा मजाक ही उड़ाया गया। फिर भी हम एक पहलू के बारे में शंकाएँ महसूस करते रहे। अब आगे चियांग तेंग बताएँगे।"

कार्टर ने जहाँ छोड़ा था वहाँ से चियांग तेंग ने बोलना शुरू किया। कार्टर की भावनात्मक शैली के विपरीत चियांग साधारण लहजे में बोल रहा था, "किसी सभ्यता के विकास को अकसर इस पैमाने से नापा जाता कि वह सभ्यता कितनी ऊर्जा की खपत करती है। सन् 2110 में 2011 के मुकाबले आदमी सौ गुना ज्यादा ऊर्जा की खपत करता है। इस उन्नति का एक कारण यह था कि सौर ऊर्जा तक हमारी पहुँच बढ़ गई थी। ऊर्जा-भंडारण और ऊर्जा-उत्पादन का विकास को आगे बढ़ाने में प्रमुख योगदान है। और आज के स्वचालित युग में इन मसलों को पूरी तरह कंप्यूटरों पर छोड़ दिया गया। आज विनाशकारी हथियारों को इस्तेमाल करने के बजाय लड़ाई में शत्रु के ऊर्जा स्रोत पर हमला कर उसे बंद करने का फैसला लिया जाता है, लेकिन इस तरीके से हमला करने का फैसला भी कंप्यूटर पर छोड़ दिया गया। संक्षेप में, इस नाजुक क्षेत्र में भी आदमी ने अपनी जिम्मेदारी से हाथ झाड़ लिये।"

"यही वह पहलू है जिसके बारे में हम चिंतित थे। सच है कि आदमी गलतियाँ तो करता है, लेकिन क्या कंप्यूटरों को भी गलत फैसला लेने के लिए गुमराह नहीं किया जा सकता? कंप्यूटर विभिन्न विकल्पों को उलट-पलटकर और सबसे अच्छा विकल्प चुनकर फैसला करते हैं, जो परिस्थिति के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन के बाद उसमें भरे जाते हैं। इन विकल्पों को कंप्यूटर के मेमोरी बैंक में भरना पड़ता है अगर कोई अनदेखा विकल्प छूट जाए तो कंप्यूटर अपनी ओर से स्वयं उस पर कभी गौर नहीं करेगा, बल्कि अपनी जानकारी के आधार पर ही फैसला लेगा और यहीं पर कंप्यूटर गलती कर सकता है।

"हमारी आशंकाएँ सामान्य किस्म की थीं, क्योंकि हमें ऐसी कोई सूरत नहीं दिखाई पड़ रही थी जो कंप्यूटरों को गलत फैसला लेने के लिए मजबूर कर दे। लेकिन हमने महसूस किया कि ऊर्जा केंद्रों में कोई ऐसी सटीक प्रणाली होनी चाहिए जो खतरे की झूठी आशंका में केंद्र को बंद होने से रोक सके। सन् 2110 में आदमी ने इसकी जरूरत महसूस नहीं की थी, इसलिए हमने अपनी तरफ से काम करने की ठानी। ऐसा हमने कैसे किया, इसके बारे में बताएँगे-इलया मोरोविच।"

कैमरा घूमकर इलया मोरोविच के मुसकराते चेहरे पर ठहर गया। इलया ने बोलना शुरू किया, "ऊर्जा केंद्रों की आपकी वर्तमान प्रणाली इस तरह से डिजाइन की गई है कि किसी दुर्लभ किस्म की विपदा आने पर धरती पर लगी सौर ऊर्जा उत्पन्न करने वाली सारी प्रणाली एकाएक ठप हो जाए। उस दुर्लभ तबाही के तौर पर क्षेत्रों के बीच बड़ी लड़ाई को देखा गया था। अगर एक ऊर्जा केंद्र पर हमला किया जाए या तोड़-फोड़ हो तो उसके बंद होने पर उसका मास्टर कंप्यूटर अन्य क्षेत्रों के मास्टर कंप्यूटरों पर हमला कर उन्हें बंद कर देगा। वे मास्टर कंप्यूटर भी हमलावर को बंद कर देंगे। समूची धरती का विनाश करनेवाली लड़ाई को रोकने के लिए तो यह प्रणाली संतोषजनक हो सकती है, पर इसमें विपदा के अन्य विकल्पों को अनदेखा कर दिया गया। यह अनदेखा विकल्प धरती पर, सूर्य पर या सौरमंडल में घटनेवाली प्राकृतिक घटना के रूप में हो सकता था। जैसे-अगर कोई उल्का पिंड या उपग्रह इन ऊर्जा केंद्रों से टकरा जाए या सूर्य की गतिविधि अचानक बढ़ जाए तो? तो हमने महसूस किया कि कभी भी विफल न रहनेवाली इस प्रणाली को दुरुस्त करने की जरूरत है, ताकि यह अनदेखे विकल्प को भी ध्यान में रख सके।

क्या हम इसे इस तरह बदल सकते थे कि कम-से-कम कुछ ऊर्जा स्रोत तो इस तरह के आक्रमण में न आ सकें? क्षेत्र-एक और दो के तमाम ऊर्जा स्रोत अंतरिक्ष में थे। क्षेत्र-तीन और चार में ही कुछ बिजलीघर नाभिकीय रिएक्टरों सहित जीवाश्म ईंधनों से जमीन पर चल रहे थे। हालाँकि वे सब भी कंप्यूटरों के नियंत्रण में थे, लेकिन जमीन पर चलनेवाले बिजलीघरों में हमें संभावना नजर आई कि उनमें से कुछ को कंप्यूटर नियंत्रण से अलग किया जा सकता था। इसमें धोखाधड़ी कर कंप्यूटर को सिर्फ यही विश्वास दिलाना था कि वही तमाम बिजलीघरों का नियंत्रण कर रहा है। मैं सोचता हूँ कि आज भी इनसान का दिमाग किसी भी कंप्यूटर से तेज दौड़ सकता है, भले ही कंप्यूटर कितना भी ताकतवर क्यों न हो! इसलिए चियांग और दलजीत ने क्षेत्र-तीन में मुंबई और शंघाई में बिजलीघरों को अलग किया; जबकि कार्टर, विलियम और मैंने क्षेत्र-चार में काहिरा और मोंबासा में ऐसा ही किया। अब आगे क्या हुआ, विलियम बताएँगे।"

नपी-तुली आवाज में विलियम मॉनक्रीफ ने बोलना शुरू किया, "हमने जोखिम उठाया और सुरक्षा नियमों को तोड़ा। लेकिन हमारा उद्देश्य है-वर्तमान सभ्यता को ऊर्जा की पूरी कमी से उत्पन्न अराजकता से बचाना। हमारे कारण ऐसी विश्वव्यापी तबाही में जो बचत होगी वह सन् 2011 में आमतौर पर जरूरी कुल ऊर्जा का 3-4 प्रतिशत भाग उपलब्ध कराने के लिए अपर्याप्त है। लेकिन इस नाममात्र की ऊर्जा का भी युक्तिपूर्ण उपयोग कर आदमी शेष ऊर्जा को भी सक्रिय कर सकता है। इसमें समय लगेगा और धैर्य की भी जरूरत होगी; लेकिन ऐसा किया जा सकता है।

अब आप जानते हैं कि जिस दौरान यह कार्यक्रम दिखाया जा रहा है, केवल चार बिजलीघर ही क्यों काम कर रहे हैं? हम इन्हें बचा सके, क्योंकि वे धरती पर आधारित थे और स्वचालन के नियंत्रण को तोड़ना आसान था। लेकिन अगर पूर्ण स्वचालन के वर्तमान सिलसिले को अगले कुछ दशकों तक चालू रखा गया तो तमाम ऊर्जा उत्पादन अंतरिक्ष में होने लगेगा। यह तो गनीमत है कि धरती पर हमारी वापसी आज से बीस साल बाद नहीं हुई।

"इस टेप को मुंबई टेलीविजन केंद्र में गोपनीय रूप से छिपाकर रखा जा रहा है, इस शर्त के साथ कि इसे संकट की ऐसी घड़ी में दिखाने के लिए जारी किया जाएगा जो आज आपके सामने खड़ी है। हमारा मजाक उड़ाया जा सकता है कि हम आज के समय से सौ साल पीछे हैं; पर हमारा मानना है कि हम अपने साथ सौ साल पहले की सहज वृत्ति या समझदारी लेकर आए हैं, जो हमें बताती है कि जरूरत से ज्यादा स्वचालन पर निर्भरता खतरों से भरी है।

'संकट की यह घड़ी टल जाने के पश्चात् अगर आदमी अपनी किस्मत पर ज्यादा नियंत्रण करना सीख जाए, ताकि ऐसी मुसीबतों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके, तो हम मानेंगे कि जम जाने की अवस्था में हमारा जीवित रहना सार्थक हुआ। अलविदा!"

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