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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


असल में वे उस कंप्यूटर की ओर बढ़ रहे थे जो उस जगह पर लगाया गया था। उत्साह और उत्तेजना की दबी-दबी सी भावना उनमें उमड़ रही थी। तेंग ने पूछा, "तो हमें यहाँ भी वही करना है जो हमने शंघाई में किया था?" "हाँ!" दलजीत ने कहा, "मुंबई में हम वही करेंगे जो हमने शंघाई में किया।"

एक बार में एक मोरचे पर लड़ाई।

कोई कंप्यूटर भले ही कितना भी तेज-तर्रार क्यों न हो, आखिर में तो वह आँख-कान मूंदकर निर्देशों का पालन करता ही है। बीसवीं सदी में आदमी इस बात को जानता था, क्योंकि आखिरकार उसी ने इस मशीन को जन्म जो दिया था। पंच टेप से लेकर पाँच कार्डों और फिर की-बोर्ड के द्वारा निर्देशों के साथ उसने मशीन के काम करने की गति बढ़ाई और उसकी मेमोरी में बढ़ोतरी की। प्रगति का तात्पर्य था कम-से-कम जगह घेरनेवाले ज्यादा शक्तिशाली कंप्यूटर। इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में हथेली में समाने लायक कंप्यूटर भी पचास साल पहले के पुराने कंप्यूटरों से ज्यादा शक्तिशाली थे, जो बड़े-बड़े कमरों को घेर लेते थे। जैसे-जैसे कंप्यूटरों की ताकत बढ़ती गई वैसे-वैसे इनसान उन पर ज्यादा- से-ज्यादा निर्भर होता गया। अंत में वह अवस्था आ गई जब कंप्यूटर को काम बताने के बजाय आदमी खुद कंप्यूटर का हुक्म मानने लगा।

जिम्मेदारी की अदला-बदली की एक प्रतीकात्मक घटना तब घटी जब दुनिया का चोटी का शतरंज खिलाड़ी शतरंज के मुकाबलों की एक श्रृंखला में कंप्यूटर से हार गया।

इक्कीसवीं सदी में ही इनसान ने सोच-समझकर फैसले करने के बजाय कंप्यूटरों के सामने पूरा समर्पण कर दिया। आदमी इस बुनियादी सच्चाई को भी भूल गया कि कंप्यूटर केवल उन्हीं विकल्पों में से चुनाव करता है जो आदमी उसमें पहले से ही भर देता है। अगर इसकी मेमोरी में दस विकल्प हैं तो हालात के अनुसार वह उनमें से ही सबसे अच्छे विकल्प का चुनाव करेगा, कभी भी ग्यारहवें विकल्प पर गौर नहीं करेगा, क्योंकि यह उसकी मेमोरी में है ही नहीं। अब मनुष्य इसी सच्चाई के भयानक नतीजों से गुजरने जा रहा था।

15 जून, 2111 को सूर्य की सतह पर मामूली सा बदलाव आ गया। सूर्य पर ऊर्जा पैदा करनेवाला ताप नाभिकीय रिएक्टर सूर्य के भीतर गहराई में दबा हुआ है, जहाँ हाइड्रोजन के परमाणु आपस में मिलकर हीलियम का निर्माण करते हैं। यह प्रक्रिया लगातार स्थिर रूप से चलती है। लेकिन ऊपरी परतों में भारी उथल-पुथल मची रहती है। इनके कारण सूर्य की सतह पर परिवर्तन होते रहते हैं, जिनसे हमारे खगोल शास्त्री व खगोलविद् अच्छी तरह से परिचित हैं। गरम प्लाज्मा में तूफान आना और चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव ऐसे प्रभावों के लिए उत्तरदायी हैं। जैसेकि माना जाता है कि शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र के कारण उफनते प्लाज्मा के दबने से सूर्य की सतह पर धब्बे दिखाई देते हैं। सूर्य पर ऊँची-ऊँची लपटें भी उठती रहती हैं और यह विद्युतीय रूप से आवेशित कणों की आँधी भी छोड़ता रहता है। इन्हीं परिवर्तनों में से कुछ धरती पर भी प्रभाव डालते हैं। पर ये प्रभाव ज्यादा नहीं होते, क्योंकि धरती के चारों ओर का वातावरण इसकी रक्षा करता है।

लेकिन आदमी द्वारा बनाए गए सौर ऊर्जा केंद्र वातावरण से ऊपर निर्वात में स्थित थे सूर्य की सतह पर आनेवाले बदलाव सौर मानकों के हिसाब से सामान्य ही थे और केवल कुछ मिनटों तक ही चले। लेकिन इससे ही बहुत विशाल लपट पैदा हुई और अचानक ही जोरदार सौर आँधी चल पड़ी।

इस आँधी से आवेशित कणों की जो बरसात हुई, उससे क्षेत्र-एक और दो में दो सौर ऊर्जा केंद्र नाकाम हो गए। नतीजा? उनके मास्टर कंप्यूटर एकाएक हरकत में आ गए। अपने आप ही वे इन नाकामियों का पता लगाने में जुट गए। उन्होंने उन तमाम विकल्पों को खंगाल डाला, जिनके लिए उन्हें प्रशिक्षित किया गया था। दुर्भाग्य से उन विकल्पों में ऐसी तेज सौर आँधी शामिल नहीं थी। क्योंकि कंप्यूटरों की प्रोग्रामिंग करनेवाले किसी भी शख्स ने उन पर गौर ही नहीं किया था।

क्षेत्र-एक के कंप्यूटर ने नतीजा निकाला-किसी कमी के कारण सौर ऊर्जा केंद्र खराब हुआ है। यह उसका आखिरी विकल्प था। इसलिए जवाबी काररवाई करते हुए उसने क्षेत्र-दो, तीन, चार के मास्टर कंप्यूटरों को बंद कर दिया। ऐन उसी वक्त क्षेत्र-दो का मास्टर कंप्यूटर भी इसी नतीजे पर पहुँचा कि जरूर कोई तोड़- फोड़ हुई है और उसने भी जवाबी काररवाई करते हुए क्षेत्र-एक, तीन और चार के कंप्यूटरों को बंद कर दिया।

नतीजा यह हुआ कि सारे-के-सारे सौर ऊर्जा केंद्र ठप पड़ गए। क्षेत्र-एक और दो में तो पूरी तरह अराजकता छा गई, जबकि क्षेत्र-तीन और चार में जीवाश्म ईंधनों से चलनेवाले बिजलीघर काम कर रहे थे, लेकिन वहाँ भी बिजली की भारी कमी पड़ गई। थोड़ी ही देर में ऊर्जा की बढ़ती माँग के कारण इन बिजलीघरों को भी बंद करना पड़ा।

क्षेत्र-तीन का मास्टर कंप्यूटर दिल्ली में लगा था। जब यह बंद हुआ तो उस क्षेत्र में बीजिंग, सिडनी, बैंकॉक आदि शहरों में लगे स्थानीय कंप्यूटर भी बंद हो गए जो दिल्ली के मास्टर कंप्यूटर के नियंत्रण में थे। लेकिन दो अपवाद भी थे! शंघाई और मुंबई में लगे कंप्यूटर अब भी काम कर रहे थे। कुछ रहस्यमय कारणों से उनका दिल्ली के नियंत्रण से संपर्क अलग हो गया था। इसलिए दक्षिणी चीन और दक्षिणी भारत में बिजलीघर काम करते रहे।

क्षेत्र-चार में भी कंप्यूटरों के साथ ऐसा ही हुआ। प्रिटोरिया में लगे मास्टर कंप्यूटर के अधीन केवल दो कंप्यूटरों को छोड़कर बाकी सारे कंप्यूटरों ने काम करना बंद कर दिया। वहाँ पर काहिरा और मोंबासा में लगे कंप्यूटर काम करते रहे। हैरान-परेशान वैज्ञानिक और तकनीशियन पता लगाने की कोशिश करते रहे कि ऐसा क्यों हुआ? इसी बीच मुंबई के टेलीविजन केंद्र ने घोषणा की कि 17 जून, 2111 को ग्रीनविच समय के अनुसार ठीक 12 बजे एक महत्त्वपूर्ण समाचार बुलेटिन प्रसारित किया जाएगा। इस बुलेटिन को देखने-सुनने के लिए सारी दुनिया में थोड़ी देर के लिए बिजली की आपूर्ति बहाल की जाएगी। प्रत्येक यह जानने के लिए आतुर था कि इस बुलेटिन में क्या बताया जाएगा।

ठीक 12 बजे टेलीविजन पर समाचार शुरू हुए। परदे पर एक गोल मेज के चारों ओर बैठे पाँच आदमी दर्शकों से रू-बरू हुए। उन्होंने अपना-अपना परिचय दिया-दलजीत सिंह, विलियम मॉनक्रीफ, कार्टर पैटरसन, इलया मोरोविच और चियांग तेंग। पाँचों की तरफ से विलियम ने बोलना शुरू किया-

"हम सभी बीसवीं सदी के अंतिम दौर में इस धरती पर जनमे थे। सन् 2010 में हम एक अनोखे परीक्षण में शामिल हुए। हमें बहुत ही कम तापमान पर जमाकर अंतरिक्ष में भेजा गया था। वहाँ हमें सौ साल तक सोना था। उस दौरान हम या यों कहें कि हमारा अंतरिक्ष यान शनि के चक्कर काटता रहा। अभी पिछले साल ही हम सकुशल धरती पर लौटे हैं-पूरे सौ साल बाद! हम वापस तो आ गए, पर हमारे कोई पुराने रिश्ते-नाते इस धरती पर नहीं बचे थे। हमें नए सिरे से जीवन शुरू करना पड़ा।

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