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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


'सिद्धांततः ऐसा ही होगा; परंतु व्यावहारिक तौर पर ऐसा नहीं होता, क्योंकि किसी भी खराबी को मिनटों में ही दूर कर लिया जाता है।" विलियम ने उसे आश्वस्त किया।

"इसी पर मेरा दूसरा सवाल है। मान लो कि कंप्यूटर खुद खराबी का पता न लगा सके तो क्या होगा?"

"जब मैंने खुद कंप्यूटर की देखभाल करनेवाले वैज्ञानिकों और तकनीशियनों से यही सवाल पूछा तो वे सब जोर-जोर से हँसने लगे। उन्हें पूरा भरोसा है कि किसी महाविपदा को छोड़कर ऐसी नौबत कभी नहीं आएगी, क्योंकि कंप्यूटर ऊर्जा केंद्रों के एक-एक नट-बोल्ट से अच्छी तरह परिचित है। वह महाविपदा, जिसे तुम आखिरी रास्ता कह सकते हो, तभी आ सकती है जब कोई शत्रु जानबूझकर केंद्र में तोड़-फोड़ करे या उसे नष्ट कर दे। अगर ऐसा होता है तो उस दौरान की जानेवाली काररवाई की रूपरेखा भी तैयार है, जो अपने आप में हैरान करनेवाली है।" दलजीत के हैरान-परेशान चेहरे को देख विलियम ने अपनी बात का खुलासा किया, "प्रत्येक क्षेत्र खुद एक कंप्यूटर द्वारा चलाया जाता है। मान लो कि किसी ऊर्जा केंद्र में तोड़-फोड़ हो जाए और उससे क्षेत्र-एक पर सबसे ज्यादा असर पड़े। सोचो कि इसे बाकी तीन क्षेत्रों द्वारा निशान बनाया गया। इसके बदले में क्षेत्र-एक बाकी तीनों क्षेत्रों के मास्टर कंप्यूटरों को बेकार कर देगा। इस तरह सभी मास्टर कंप्यूटर आक्रमण में नष्ट होने से पहले ही हमलावर को नष्ट करने की काररवाई शुरू कर सकता है।"

"तो इस तरह अंत में आज की तरह चलनेवाला जीवन चरमराकर रुक जाएगा। क्या यह हमारे अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा नहीं है ?" दलजीत ने पूछा। उसके मन में सौ साल पहले परमाणु आक्रमणों के खतरे से जुड़े तर्क- वितर्क उमड़ रहे थे।

"हाँ, और यहाँ खतरा सबसे ताकतवर अंकुश भी साबित होता है, क्योंकि प्रत्येक मास्टर कंप्यूटर में एक बिल्ट-इन लॉजिक भी है जो जीवन को सबसे ज्यादा महत्त्व देता है। यह जानकर कि दूसरे मास्टर कंप्यूटरों पर हमला करते ही जवाबी हमला होगा और खुद की तबाही भी निश्चित है, कोई मास्टर कंप्यूटर इस तरह का खतरनाक कदम उठाने की इजाजत नहीं देगा।" विलियम ने उत्तर दिया।

"जब तक कि कोई पहले कंप्यूटर के लॉजिक में जान-बूझकर गड़बड़ी पैदा न कर दे!" दलजीत ने कहा, "यही संभावना परेशान करनेवाली है।"

"इस संभावना को टालने के लिए सभी सावधानियाँ बरती गई हैं।" विलियम ने जवाब दिया, "लेकिन तुम्हारी तरह मैं भी पिछली सदी से आया हूँ और तुम्हारी तरह मैं भी नहीं चाहता कि कंप्यूटर प्रबंधन पर इस हद तक निर्भर रहा जाए। क्षेत्र- एक के वैज्ञानिकों के सामने मैंने अपनी यह आशंका जाहिर की थी; पर उन्होंने मेरा मजाक उड़ाया। उन्होंने मुझे सौ साल पहले के पुराने फैशनवाले दिनों का आदमी और न जाने क्या-क्या कहा।"

"सच्चाई यह है कि आज का आदमी, जिसके दिमाग पर आज की त्रुटिहीन तकनीकी का परदा पड़ा हो, वह हमारी आशंकाओं पर ऐसी ही प्रतिक्रिया देगा।" दलजीत ने सहमति जताई, "लेकिन अगर कुछ किया जाना है तो केवल हम जैसे पुराने जमाने के लोगों द्वारा ही हो सकता है।"

'तुम्हारा क्या मतलब है?" विलियम ने पूछा।

"मेरे पास एक तरकीब है, जिसे मैं केवल हम पाँचों के बीच ही बाँटना चाहता हूँ।" दाएँ हाथ से दाढ़ी सहलाते हुए दलजीत ने कहा। यह इस बात का संकेत था कि वह बेहद उत्साहित हो रहा था-"मैं मानता हूँ कि इलया का तकनीकी दिमाग इस तरकीब को लागू करने में मदद करेगा।"

सन् 2110 में मुंबई महानगर कोलाबा से विरार और कल्याण तक फैल चुका था; लेकिन इसकी कुल आबादी 30 लाख से ज्यादा नहीं थी। सौ साल पहले की भीड़-भाड़, लोगों से ठसाठस भरी बसें और ट्रेनें, पुरानी जर्जर इमारतें और बदहाल झुग्गी-बस्तियाँ बीते समय की बातें हो गई थीं। आज यातायात के लिए जमीन के नीचे तेज रफ्तारवाली मोनो रेल चलने लगी थीं। ये रेलें बेआवाज चलती थीं। इनके चलने पर कोई कंपन नहीं होता था और इन्हें चलाने के लिए किसी ड्राइवर की जरूरत भी नहीं होती थी। कंप्यूटर से चलनेवाला पहला रेलमार्ग सन् 2070 में बन चुका था। अब कोई इसे नई चीज नहीं मानता था। इससे जुड़े स्टेशनों के ऊपर छोटी-छोटी बस्तियाँ बसाई गई थीं। पूरे महानगर में सौ स्टेशन थे। प्रत्येक स्टेशन के आस-पास करीब 30 हजार लोग रहते थे।

ये बस्तियाँ भी आपस में सड़कों द्वारा जुड़ी हुई थीं। पर इन सड़कों पर कोई कार नहीं दौड़ती थी। सौर ऊर्जा से अपने आप और नियमित रूप से चलनेवाली बसें सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध कराती थीं। एक ही टिकट पर जमीन के ऊपर और जमीन के नीचे सफर किया जा सकता था।

लोगों को बहुत ज्यादा सफर करने की जरूरत भी नहीं पड़ती थी। लगभग सभी लोग घर में ही काम करते थे। उन्हें दफ्तर जाने की जरूरत नहीं थी। बच्चों को फोटोनिक संचार के माध्यम से घर में ही पढ़ाया-लिखाया जाता था। इसलिए लोग सिर्फ मनोरंजन, पार्टियों और सैर-सपाटे के लिए ही सफर करते थे।

दलजीत सिंह और चियांग तेंग अपने हवाई जहाज से उतरे और उरन से उन्होंने कोलाबा के लिए भूमिगत ट्रेन पकड़ी। पंद्रह मिनट बाद वे हॉलिडे कैंप स्टेशन पर उतरे और एस्केलेटर की ओर बढ़ गए। दशकों पहले यह क्षेत्र नौसेना की पश्चिमी कमान का हिस्सा था और केवल गिने-चुने लोग ही इसमें प्रवेश कर सकते थे। आज भी कुछ क्षेत्रों को 'ऊँची सुरक्षा' वाले स्थान के रूप में अलग कर दिया गया था। उस दिशा में कोई बस नहीं जाती थी, हालाँकि एक सड़क जरूर जाती दिख रही थी। दलजीत और तेंग ने उस सड़क पर चलना शुरू कर दिया। पूरी सड़क सुनसान थी।

'मुझे कुछ अजीब सा भ्रम महसूस हो रहा है।" सरदारजी ने कहा, "मैं यहाँ पर बनी दो मंजिली इमारतों के एक फ्लैट में कुछ महीने रहा हूँ।" पर अब वहाँ कोई इमारत नहीं दिख रही थी, केवल खाली मैदान और कुछ पेड़ ही थे। 'यहाँ पर तो एक प्रसिद्ध संस्थान हुआ करता था, जहाँ वैज्ञानिकों से कुछ संपर्क रहता था।" तेंग ने याद किया।

"द टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च।" दलजीत ने उत्तर दिया। "मैं खुद वहाँ कभी नहीं गया। लेकिन हमारे रिकॉर्डों में इस संस्थान की पूरी जानकारी दर्ज थी।"

दलजीत के चेहरे पर मुसकान खिल गई। बरबस ही उसे सौ साल पहले एशिया के इन दो पड़ोसी मुल्कों के बीच प्यार और तकरार भरे रिश्तों की याद आ गई। 'हिंदी-चीनी, भाई-भाई', वह बड़बड़ाया। अब चीजें कितनी बदल गई थीं! राष्ट्रीय सीमाएँ कब की खत्म हो चुकी थीं। उनके साथ विवाद भरे अनेक मसले भी समाप्त हो चुके थे।

"टी.आई.एफ.आर. अब नहीं है।" दलजीत ने कहा। "हालाँकि हम उसी ओर बढ़ रहे हैं जहाँ वह था।"

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