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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


इस बीच एस.एस.वी. पर विलियम के मिशन से संबंधित तमाम रिकॉर्ड खोज निकाले गए। इस मिशन की तमाम जानकारियों को बड़ी सावधानी के साथ पिछले सौ वर्षों से बचाकर रखा हुआ था; इसमें अंतरिक्ष यान की संरचना, गति, नियंत्रण-प्रणालियाँ और तमाम छोटी-छोटी बातें भी दर्ज की गई थीं। यान में भेजे गए यात्रियों की भी पूरी जानकारी रिकॉर्ड में थी। इसलिए जब यान धरती पर पहुँचा तो एस.एस.वी. ने उसे पूरा मार्गदर्शन दिया और यान के सुरक्षित उतर जाने तक जरूरी निर्देश देते रहे। तब तक यान में पाँचों अंतरिक्ष यात्री पूरी तरह से जाग गए और चौकन्ने हो गए थे।

"शताब्दी के यात्रियो, आप सभी का स्वागत है!" अंतरिक्ष स्टेशन पाँच पर कमांडेंट ने सभी का स्वागत किया। "जिन लोगों ने आपको भेजा था, वह संगठन और उसका स्टाफ अब मौजूद नहीं है। आप लोगों के जाने के बाद से दुनिया बहुत आगे बढ़ गई है। लोग भले ही बदल गए हों, लेकिन हमारा ग्रह पृथ्वी वैसी ही है। आप सौ साल पहले के सामूहिक ज्ञान के प्रतिनिधि हैं। हम इससे लाभ उठाने की उम्मीद करते हैं।"

संयुक्त राष्ट्र का क्या हुआ?'' कार्टर पैटरसन ने पूछा। वह संयुक्त राष्ट्र ही था, जिसने उन्हें भेजा था।

"इक्कीसवीं सदी में यह संगठन ज्यादा लंबे समय तक नहीं टिक पाया। किसी विश्वयुद्ध के कारण इसका खात्मा नहीं हुआ, बल्कि राष्ट्रों के बीच छोटी- मोटी कलहों के कारण यह संगठन चल नहीं पाया। संयुक्त राष्ट्र ने मध्यस्थता के द्वारा शांति स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन ऐसे प्रयास खर्चीले साबित हुए और अंत में धन की कमी के कारण इसे अपना बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ा।"

"संयुक्त राष्ट्र के बाद क्या इसकी जगह कोई और विश्व संगठन बनाया गया है?"

"नहीं, क्योंकि आज हमारी समस्याएँ अलग किस्म की हैं और इनसे निपटने के लिए दूसरे संगठन हैं। वे ठीक काम करते हैं या नहीं, यह आप खुद ही जान जाएँगे, जब हम आपको ठोस धरातल पर ले जाएँगे। धरती पर अमरीकी क्षेत्र आपका स्वागत करने जा रहा है।" कमांडेंट ने कहा।

अमरीका क्षेत्र से आपका क्या मतलब है?' कार्टर ने पूछा।

कमांडेंट मुसकराया, जैसे उसे इसी प्रश्न की उम्मीद थी। उसने अपने सहायक को इशारा किया। तुरंत ही एस.एस.वी. की वरदी में स्टाफ के पाँच सदस्य वहाँ पहुँच गए। उनके हाथों में टेपरिकॉर्डर जैसे उपकरण थे। कमांडेंट ने आगे बताया, "ये और आपके मन में घुमड़नेवाले अन्य प्रश्नों के उत्तर खुद ही मिल जाएँगे, जब आधुनिक जानकारी आपको दी जाएगी। ये उपकरण ढेर सारी सूचनाएँ सीधे आपके दिमाग में भर देगा। जितनी देर में आप एक किताब पढ़ेंगे, उससे भी कम समय में तमाम सूचनाएँ आपको मिल जाएँगी। ये जानकारियाँ आधुनिक अंग्रेजी में हैं जो अब विश्वभाषा बन चुकी है। मैं वही भाषा बोल रहा हूँ और आप देखेंगे कि इसमें बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है।"

आपका मतलब है कि आजकल पुस्तकें नहीं होती हैं ?" तेंग ने पूछा।

"जी हाँ, पढ़ने-लिखने का पुराना तरीका लगभग खत्म हो चुका है। यह बहुत ही धीमा था और फिर इस बात की भी गारंटी नहीं होती थी कि आपने जो पूछा है वह पूरा-का-पूरा याद रहेगा। जिस इलेक्ट्रॉनिक विधि का मैंने अभी जिक्र किया है वह ज्यादा तेज और दक्ष है। हाँ, अगर आपको अभी भी पुस्तकों में दिलचस्पी हो तो आप उन्हें हमारी प्राचीन लाइब्रेरियों से ले सकते हैं..."पर वे कम-से-कम बीस साल पुरानी होंगी।"

'सारी दुनिया में प्रसिद्ध हमारी लाइब्रेरियों का क्या हुआ? लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस, लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी, ऑक्सफोर्ड की बोडलियन लाइब्रेरी, मॉस्को लाइब्रेरी वगैरह-वगैरह ?"

जैसा मैंने बताया कि ये लाइब्रेरियाँ प्राचीन लेखागार हैं, बिलकुल संग्रहालयों की तरह। कुछ विद्वान् लोग वहाँ पर पुस्तकों का उपयोग करते हैं।"

स्पेस शटल तेजी से धरती की ओर बढ़ रहा था, हालाँकि उसके यात्रियों को इसकी गति का जरा भी एहसास नहीं हो रहा था। कोई मनुष्य इस शटल को नहीं उड़ा रहा था। सारे रास्ते शटल को एस.एस.वी. और धरती पर नियंत्रण स्टेशन द्वारा मिलकर दूर से ही नियंत्रित किया जा रहा था। इस शटल को कौन सी शक्ति चला रही है कि यह बिलकुल मक्खन की तरह चल रहा है और रॉकेटों की तरह हवा में प्रदूषण भी नहीं कर रहा है ? तेंग ने सोचा और पाया कि इसका जवाब तो उसे पता है। क्या सभी जानकारियाँ उसके दिमाग में भर नहीं दी गईं ? उसे सिर्फ यही करना है कि इस जानकारी को खंगालना है। उसने सवाल पर ध्यान केंद्रित किया-शटल को धकेलने के लिए शक्ति का स्रोत? ठीक उसी तरह जैसे सौ साल पहले वह किसी कंप्यूटर पर सर्च इंजन के साथ करता था।

जवाब हाजिर था! शक्ति का स्रोत सूर्य में था। उसे थर्मोडायनोमिक्स के नियम याद दिलाए गए कि किस तरह हीट इंजन ऊँचे तापमान से ऊष्मा ग्रहण कर और कम तापमान पर उसे छोड़कर काम कर सकते हैं। उन्नीसवीं सदी में कैल्विन कारनॉट जैसे वैज्ञानिकों ने अपने शुरुआती परीक्षणों से साबित किया था कि किस तरह ऊष्मा का यांत्रिक उपयोग किया जा सकता है। ऐसे काम का मतलब यही था कि किसी इंजन से भरपूर काम लेने के लिए जरूरी है कि ऊष्मा का स्रोत ज्यादा- से-ज्यादा ऊँचे तापमान पर हो और सिंक, जहाँ पर ऊष्मा छुई जानी हो, ज्यादा- से-ज्यादा निम्न तापमान पर हो।

बीसवीं सदी में ही मनुष्य जान गया था कि सूर्य ही उसके लिए ऊष्मा का स्रोत है, केवल इस ऊष्मा का दहन करने का तरीका उसे मालूम नहीं था। 5,500 सेल्सियस तापमान पर दहकते पिंड से कैसे ऊष्मा का दोहन किया जाए और धरती पर उससे काम लिया जाए? सन् 2010 में तेंग को जवाब नहीं मालूम था। सन् 2110 में तेंग के दिमाग में इसका जवाब मौजूद था। लेकिन जैसे ही उसने दिमाग पर जोर डाला, उसका सिर दर्द से फटने लगा। शायद उसके दिमाग की दर्द की स्नायु इतनी सारी सूचनाओं का बोझ नहीं उठा पा रही थी। उसने धीमे-धीमे और सब्र के साथ काम लेने का फैसला किया।

सैन्य पृष्ठभूमिवाले दलजीत को यह जानने की उतावली हो रही थी कि अब विभिन्न देशों के पास किस तरह के हथियार थे। इसका जवाब भी उसके दिमाग में पहले से ही अंकित हो चुका था। नाभिकीय हथियार अब पुराने जमाने के कबाड़ बन चुके थे। आधुनिक हथियार कहीं ज्यादा विनाशकारी थे। वे किसी भी चीज को क्षण मात्र में ही परमाणुओं में बदल डालते थे। अभी आपके सामने एक आदमी खड़ा है, अगले ही क्षण वह परमाणुओं में बदलकर अलग-अलग दिशाओं में बिखर जाएगा। पर ऐसे हथियारों पर कहीं ज्यादा कड़ा नियंत्रण था। इक्कीसवीं सदी में नाभिकीय हथियारों के मुकाबले कहीं ज्यादा कड़ा नियंत्रण। सबसे बड़ी बात यह कि इन हथियारों को ऊर्जा के स्रोत से जोड़े बिना चलाया नहीं जा सकता था और ऊर्जा के स्रोत पर किसी की मन-मरजी नहीं चलती थी, बल्कि कड़ाई से इसकी रखवाली की जाती थी।

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