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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


उसके दिमाग ने टुकड़ों में सक्रिय होना शुरू किया। पहले उसने सोचना शुरू किया, पर हाथ-पैरों की गति पर इसका कोई नियंत्रण नहीं था। अतीत की घटनाएँ भी टुकड़ों में याद आने लगीं। वह कौन था? वह कहाँ था? उसके साथ क्या हुआ था? इन प्रश्नों के उत्तर धीरे-धीरे याद आने लगे। इस तरह वह कुछ आश्वस्त हुआ कि उसकी याददाश्त अभी भी बरकरार है। याददाश्त सौ वर्षों में भी बरकरार है। जब उन्हें गहरे जमे हुए कक्ष में डाला गया तब से क्या एक सदी बीत गई?

उसे अब भी इस बात पर विश्वास नहीं हो पा रहा था। पूरे सौ वर्ष ! बीते सौ वर्षों का एक भी अनुभव उसके दिमाग में नहीं था। उससे पहले की बातों को याद किया तो उसे लगा कि उन्हें धरती का चक्कर काट रहे अंतरिक्ष यान में होना चाहिए। जहाँ तक दिन और समय का संबंध है, उसे उम्मीद थी कि यान में लगी घड़ियाँ अभी भी काम कर रही होंगी और उसे समय, दिन एवं वर्ष की सही जानकारी देंगी। बशर्ते कि खुद वह हिलने-डुलने लगे। पर चूँकि उसके होशो- हवास लौट आए थे, इससे भरोसा होने लगा था कि चीजें तेजी से सामान्य हो रही हैं और यान में लगे यंत्र ठीक-ठीक काम कर रहे थे।

हाँ, उसे याद आया कि उन्हें बताया गया था कि पहले उसका दिमाग टुकड़ों में सक्रिय होगा और फिर उसी तरह पूरा शरीर। पहले आँखें, कान, फिर जीभ इस तरह धीरे-धीरे पूरा शरीर सक्रिय होगा। पैर सबसे अंत में सक्रिय होंगे। उसने धीरे-धीरे आँखों को खोलने की कोशिश की।

उसने धीरे-धीरे आँखों को खोलने की कोशिश की। धीरे-धीरे और कठिनाई से वह चीजों को देखने लगा। या यों कहें कि सिर्फ एक झलक देख पाया, क्योंकि आँखें अपने आप बंद हो गईं। यान के अंदर मद्धिम रोशनी भी उसकी आँखों को चौंधिया गई। 'आराम से बुढ़ऊ', उसने अपने आपको कोसा कुछ ही घंटों में वह बैठने लगा और उसने चारों ओर नजर दौड़ाई; पर ये चंद घंटे भी ऐसे लगे जैसे युगों के बराबर हों। उसके सहयात्री भी गहरी नींद में सो रहे थे। उसने उन्हें न जगाने का फैसला किया। उनमें से प्रत्येक उठने में और सामान्य अवस्था में आने में अपना वक्त लेगा।

अगले कुछ घंटों में उसने पट्टियाँ खोलकर अपने को आजाद किया और अंतरिक्ष यान के सूक्ष्म गुरुत्व में तैरने लगा। उसे कम तापमान पर जमाकर अंतरिक्ष यान के भीतर लाया गया। लेकिन उसे और उसके सहयात्रियों को फ्लाइट सिमुलेटरों और डमी मॉडलों में पर्याप्त प्रशिक्षण दिया गया था। ये तमाम चीजें उसे अब याद आने लगी थीं। अब उसे सचमुच याद आने लगा था कि यह सबकुछ इस तरह प्रोग्राम किया गया था कि वही सबसे पहले उठे और यान के नियंत्रणों को सँभाल ले, क्योंकि केवल उसी को जहाज उड़ाने का अनुभव था।

तन-मन पूरी तरह जाग्रत् होने पर वह मुख्य पायलट की सीट पर बैठ गया और तरह-तरह के मैन्युअल को पढ़ने लगा। लगभग चार घंटे के भीतर ही उसे सबकुछ याद आ गया कि मिशन की तैयारी के वक्त उसे क्या-क्या सिखाया- पढ़ाया गया था। और अब उसे पूरा आत्मविश्वास हो गया कि वह अंतरिक्ष यान को सँभाल सकता था। मार्ग का अध्ययन करने पर पता चला कि वे अभी पृथ्वी के निकट नहीं पहुँचे थे। अंतरिक्ष यान शनि ग्रह से चलकर बृहस्पति की कक्षा को पार कर चुका था और अब मंगल व पृथ्वी की कक्षाओं के बीच में कहीं था।

सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि यान बृहस्पति व मंगल के बीच क्षुद्र ग्रहों की पट्टी से सही-सलामत निकल आया था। कंप्यूटर तारीख बता रहा था 5 जून, 2110; पृथ्वी की कक्षा तक पहुँचने में यान को अभी दस दिन और लगने थे। वहाँ पहुँचकर भी यान पहले धरती के चक्कर काटता।

पहली बार भूख से उसकी आँतें कुलबुलाने लगीं। यह एक तरह से अच्छा संकेत था, जो बताता था कि उसके शरीर की क्रियाएँ तेजी से सामान्य हो रही थीं। यान के गलियारे में जमे हुए खाने के पैकेट रखे थे। उसने उनमें से एक पैकेट माइक्रोवेव ओवन में गरम किया और आराम से खाया।

दो दिन बीत गए थे और वह इस अकेलेपन का आदी हो चुका था। इस बीच कोई बड़ी घटना नहीं हुई। वह चाहने लगा था कि अपने साथियों की तरह दोबारा से जम जाए; लेकिन तभी एक घटना घटी।

रेडियो इंटरकॉम सिस्टम पर लाल रंग की नई बत्ती जल गई। यह सावधान करने का संकेत था। विलियम ने बटन दबाया और प्रणाली के स्पीकर से 'बीप- बीप' जैसे साफ सुनाई देनेवाले संकेत आने लगे। ट्यूनर घुमाकर उसने दूसरी वेवलेंग्थ पर संकेत प्राप्त करने की कोशिश की। लेकिन ज्यादातर वेवलेंग्थ पर कुछ सुनाई नहीं दिया। कुछ एक पर 'बीप-बीप' की आवाज ही आती रही। राडार भी, जिसे वह रह-रहकर देख रहा था, खाली पड़ा था।

तभी उसे एक उपाय सूझा। उसने उन बीप-बीप करनेवाली वेवलेंग्थ में से एक का चुनाव किया और अपने ट्रांसमीटर के जरिए समान संकेत भेजा। प्रतिक्रिया में उसे कुछ शब्द सुनाई दिए-

अपनी पहचान बताओ, दोबारा अपनी पहचान बताओ। हमें अपने स्क्रीन पर तुम्हारा अंतरिक्ष यान दिखाई दे रहा है। तुम कहाँ से आ रहे हो?"

विलियम ने उत्तर दिया। अपने यान का रजिस्ट्रेशन नंबर बताया और पूछताछ करनेवाले को आश्वस्त किया कि वह भी मूलतः धरतीवासी ही है।

कुछ मिनटों की खामोशी के बाद दोबारा आवाज आई, "हमारे डाटाबेस में आपके यान की कोई जानकारी नहीं है। इसमें सन् 2050 के बाद धरती से छोड़े गए सभी अंतरिक्ष यानों का रिकॉर्ड है। आपका यान कब छोड़ा गया था?" विलियम ने अपने बारे में सारी जानकारी दी। उसे आश्चर्य हो रहा था कि धरतीवासियों के पास सन् 2010 में छोड़े गए उनके अंतरिक्ष यान की जानकारी होगी भी या नहीं"जो सौ साल पहले छोड़ा गया था। पर उसे लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा।

"हे भगवान् ! हमारे बहुत पुराने रिकॉर्ड में असाधारण मिशनों के बीच हमें आपकी जानकारी मिली है। इन मिशनों को आधिकारिक तौर पर समाप्त घोषित नहीं किया गया था। हमारी याददाश्त बताती है कि आप कुल पाँच लोग हैं जो सौ साल की अंतरिक्ष यात्रा के बाद धरती पर लौट रहे हैं। हम आपका स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि आप सभी सकुशल होंगे। अपनी रफ्तार से आपको हमारी सीमा में आने के लिए कम-से-कम छह दिन और लगेंगे। यदि आपको मदद चाहिए तो हम चार घंटों में आप तक पहुँच सकते हैं।"

तो उनका अंतरिक्ष यान, जो सन् 2010 में अत्याधुनिक माना जाता था, आज 2110 में बैलगाड़ी बन गया है। उसने जवाब दिया, "धन्यवाद! हम छह दिनों के बाद आपके बीच होंगे। मैं अपने साथियों के जागने का इंतजार कर रहा हूँ।' जैसे ही उसने अपनी बात खत्म की, उसे लगा कि कोई आवाज आई। उसने चारों ओर देखा-क्या कोई जम्हाई ले रहा था?

सचमुच सरदारजी भी धीरे-धीरे जाग रहे थे।

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