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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


"अगली सुबह मुझे फोन पर उसकी हड़बड़ाई-सी आवाज सुनाई दी। उसको जैसे दौरा पड़ रहा हो—वह कमजोरी महसूस कर रहा था, पढ़ नहीं पा रहा था, अक्षर उसे उलटे लग रहे थे। वह जानना चाह रहा था कि पिछली रात उसने ऐसा कुछ खा-पी तो नहीं लिया था जिससे ये सब गड़बड़ियाँ शुरू हुईं। किसी डॉक्टर को दिखाने में भी वह डर रहा था कि कहीं मैच के लिए अयोग्य न ठहरा दिया जाए।

"मैं दौड़ा-दौड़ा उसके कमरे में गया और उसे आश्वस्त किया। उसका दायाँ हाथ कमजोर पड़ गया था और वह गेंदबाजी नहीं कर सकता था; लेकिन बाएँ हाथ का क्या हाल था? आश्चर्यजनक रूप से उसके बाएँ हाथ में ज्यादा जान आ गई थी। मैंने उसे बाएँ हाथ से गेंद फेंकने की सलाह दी। पहले तो उसे मेरा सुझाव बेतुका लगा ही, परंतु जितना उसने अपने बाएँ हाथ को झुलाया उतना उसे मेरे सुझाव और अपने बाएँ हाथ की ताकत पर यकीन होता गया। फिर मैंने उसे नेट प्रैक्टिस की सलाह दी, चूँकि टीम के बाकी सदस्य अभी तक सो रहे थे। मैंने उसके साथ अभ्यास में जाने की पेशकश की। एक तरह से यह अच्छा ही हुआ, क्योंकि इस तरह उसके इस नए पराक्रम पर सही मौका आने तक परदा पड़ा रहता। उसके बाद की घटनाएँ तो तुम्हें पता ही हैं।" अजीत ने अपनी कथा समाप्त की।

"तो वह तुम्हीं थे जो मैच के बाद प्रमोद को तुरंत अपने साथ ले गए थे?" मैंने पूछा।

"हाँ, और वह भी मैं ही था जिसने टेलीफोन कर समाचार-पत्र के कार्यालय को सूचना दी थी। मैंने उसे कुछ दिनों तक अपने घर पर रखा। जब वह कुछ ठीक हुआ तो मैंने उसे वापस सामान्य स्थिति में तब्दील कर दिया और बो स्ट्रीट पर छोड़ आया। अलबत्ता, वह अपने खब्बूपन की सारी बातों को भूल चुका था और मैंने भी उसे कुछ बताना ठीक नहीं समझा।"

कोई अच्छा वैज्ञानिक सिद्धांत कई परिघटनाओं का कारण बता सकता है। इसलिए अजीत की इस उल्लेखनीय खोज से मेरे कई प्रश्नों के उत्तर मिल गए। अब मैं देख सकता था कि वह छुरी-काँटे से खाना क्यों नहीं खाना चाहता था। ऐन और मैं उसके अनोखे व्यवहार को भाँप लेते। और सचमुच में ऐसा हुआ था। हमने हाथ से खाने में उसे कठिनाई होते देखकर पूछा भी था; पर उसने इसका एकदम सटीक कारण बताया। लेकिन केन ने उससे पुस्तक पर दस्तखत करने के लिए कहकर उसे सचमुच परेशानी में डाल दिया। अगर आपका दिमाग सभी अक्षरों को उलटी दिशा में लिखने के लिए जोर डाले तो अपना नाम लिखना भी कठिन हो जाता है।

अजीत, तुम्हें अपनी खोजों को तुरंत प्रकाशित करा लेना चाहिए। तुम्हें तो निश्चित ही नोबेल पुरस्कार मिलेगा।'' मैंने किसी अनाड़ी की तरह उसे सलाह दी।

'नहीं, अभी नहीं, जॉन!" अजीत ने कहा, "तुम जानते हो कि मैं एक परिपूर्णतावादी आदमी हूँ और मेरे कार्य में स्मृति-लोप मुझे बहुत गंभीर त्रुटि लगती है। जब तक कि मैं इस त्रुटि को दूर न कर लूँ, मैं अपनी खोज का संसार के सामने खुलासा करने को तैयार नहीं हूँ।'

'मगर अजीत, मेरी व्यावहारिक सलाह तो यही है कि तुम प्रकृति के अज्ञात नियमों के साथ खिलवाड़ कर रहे हो। तुमने अभी तक कामयाबी हासिल की है, इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम दोबारा कामयाब हो जाओगे। क्या यह समझदारी नहीं होगी कि तुमने अभी तक जो कुछ किया है, उसे साफ लिखकर किसी सुरक्षित जगह में रख दो।"

"मैंने बिलकुल ऐसा ही किया है। मेरे लिखे ब्योरे को पढ़कर कोई भी वैज्ञानिक रूप से सक्षम समूह मेरे परीक्षण को दोहरा सकता है। भावी सफलता के बारे में जहाँ तक तुम्हारी बात का संबंध है, मैं इससे इनकार नहीं करता हूँ। लेकिन फिलहाल मैं अपने परीक्षण में सुधार कर रहा हूँ और मुझे उम्मीद है कि इससे परीक्षण की यह कमी भी जल्द ही दूर हो जाएगी। हालाँकि मुझे अपनी अब तक की प्रगति को जाहिर नहीं करना चाहिए था, पर अपने सच्चे दोस्त को छकाने की शरारत भरी इच्छा के कारण ही मैंने ऐसा किया।"

मैंने उससे बहस करने की कोशिश की; पर जैसी कि मुझे आशंका थी, अजीत एक बार जो ठान ले, उससे उसे डिगाना कठिन है।

कुछ महीनों बाद ही मुझे अजीत की प्रयोगशाला से फोन आया। मुझे तुरंत निदेशक से मिलने के लिए तलब किया गया था।

मन में तमाम तरह की आशंकाएँ लिये मैंने दरवाजा खटखटाया। निदेशक के कार्यालय में निदेशक के अलावा सफेद कोट पहने डॉक्टर, एक साधारण आदमी और अजीत भी था। मैंने राहत की साँस ली। मुझे डर था कि कहीं अजीत को जिंदा न देख सकूँ।

लेकिन वह राहत तात्कालिक ही थी। अजीत मुझे पहचान नहीं सका। सचमुच डॉक्टर के कहे अनुसार अजीत अपनी याददाश्त पूरी तरह खो बैठा था और उसके ठीक होने के कोई आसार नहीं थे। प्रयोगशाला में अजीत के कार्यालय से मेरा नाम और फोन नंबर मिला था, इसलिए वे मुझसे संपर्क कर सके।

क्या उसने कोई लिखित रिकॉर्ड रखा है कि वह क्या करता रहा था?" मैंने सावधानीपूर्वक पूछा। अब मुझे झुंझलाहट हो रही थी कि मैं अजीत से उस सुरक्षित जगह का पता पूछना कैसे भूल गया, जहाँ उसने अपना रिकॉर्ड रखा था।"

अगर उसने रखा हो तो भी दुर्भाग्यवश हमारे पास पता लगाने का कोई माध्यम नहीं है।" निदेशक ने गहरी साँस लेकर कहा, "आपको पता है कि वह जो कुछ परीक्षण कर रहा था, आज अचानक ही उड़ गया और उसके कमरे में सबकुछ चकनाचूर हो गया।"

"सौभाग्य से वह बच गया।" डॉक्टर ने बात पूरी की। उसके शब्दों का चयन बेहद अजीब था। अजीत जैसे प्रतिभावान् वैज्ञानिक के लिए याददाश्त का चले जाना मौत से भी बदतर था।

"उसके घर का क्या हाल है?" मैंने पूछा। मुझे उम्मीद थी कि वहाँ जरूर कुछ हो सकता है।

"किसी आम कुँवारे आदमी के घर की तरह एकदम अस्त-व्यस्त।" मामूली से दिखनेवाले आदमी ने बताया, "हमने उसके घर की बड़ी बारीकी से तलाशी ली, पर वहाँ कुछ भी नहीं मिला। असल में हमने आपको यहाँ इसलिए बुलाया है कि शायद आप इस मामले पर कोई प्रकाश डाल सकें।"

"मुझे खेद है कि मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता। अजीत हालाँकि मेरा अच्छा मित्र था, लेकिन उसने कभी भी अपनी गोपनीय वैज्ञानिक बातों को बाँटने के लिए मुझे पर्याप्त पढ़ा-लिखा नहीं समझा।"

उसके बाद मैं घर आ गया। मुझे हैरानी होती है कि क्या सच्चाई झूठ से ज्यादा यकीन दिलानेवाली होगी। मैंने झूठ के पक्ष में फैसला लिया। आखिरकार मेरा वैज्ञानिक वर्णन यकीन किए जाने के लिए कल्पना से भी अधिक अद्भुत लगता।

आज भी यह मुझे कल्पना से भी अधिक अद्भुत लगता है ! आप चाहें तो मेरे संग्रहालय में आकर इसका ठोस सबूत स्वयं देख सकते हैं- गणेशजी की वह दुर्लभ मूर्ति।

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