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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


'अब इसी घुमाव की चार आयामी अंतरिक्ष काल में कल्पना करें। जीव की भाँति हमें भी इस परिवर्तन का पता नहीं चलेगा, हालाँकि इसके प्रभाव समान ही होंगे। इस परिवर्तन से गुजरकर हम आईने में दिखनेवाली अपनी छाया की तरह लगते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि हम ऊँचे आयामों में घूम रहे होते हैं और अपने दूसरे पक्ष' को दिखा रहे होते हैं।

'क्या हम ऐसे घुमाव अंतरिक्ष काल में पैदा कर सकते हैं ? इस बिंदु पर मैंने आइंस्टीन के सिद्धांत से अलग हटकर अपनी खुद की सोच विकसित की। मुझे आशा थी कि परमाणु के भीतर मौजूद मौलिक कणों में पाया जानेवाला घूर्णन का गुण अंतरिक्ष में घुमाव पैदा कर सकता है। इसका गणितीय सूत्र तो मैंने कैंब्रिज में ही पूरी तरह विकसित कर लिया था, लेकिन इस पर परीक्षण करना मेरी वर्तमान प्रयोगशाला में ही संभव हो पाया।

"पर्याप्त मात्रा में घुमाव उत्पन्न करने के लिए मुझे मौलिक कणों का एक पुंज बनाना था, जो बेतरतीब ढंग से नहीं बल्कि सुनियोजित, समन्वित तरीके से चक्कर काट रहे हैं। यह कहना तो आसान लगता है, पर करना उतना ही कठिन है। अब मैं तुम्हें वैज्ञानिक शब्दावली से और अधिक दूर नहीं ले जाऊँगा। केवल इतना ही कहना काफी है कि अपने अनुभव में मुझे पहली बार करीब छह महीने पहले सफलता मिली।

"मेरी प्रयोगशाला में जो माहौल है, उसके कारण ही मैं अपना उपकरण बिना किसी टोका-टाकी के बना सका। पहले मैंने एक छोटा सा केबिन बनाया और उस पर 'सबसे गोपनीय', 'खतरनाक' और 'प्रवेश निषेध' जैसे संकेत लगा दिए। और जब तक मैं अपनी आर्थिक सीमाओं के भीतर कार्य कर रहा था तब तक किसी ने मुझसे पूछने की जरूरत नहीं समझी कि मैं क्या कर रहा था। इस तरह की नौकरशाहीवाली प्रणाली में अगर आप चालाक हैं तो कोई भी तिकड़म लगाना संभव है, अन्यथा कोई भी रचनात्मक कार्य करने के लिए पहले आपको एक प्रस्ताव जमा कराना पड़ेगा। एक समिति आपके प्रस्ताव का मूल्यांकन करेगी और सबसे ज्यादा संभावना यह होती है कि आपके प्रस्ताव को रद्द कर देगी; क्योंकि इस समिति में अधिकतर विशेषज्ञ सठिया चुके होते हैं और उनका सक्रिय अनुसंधान से कुछ लेना-देना नहीं होता है।

"मेरा पहला अनुभव मेरी कलाई घड़ी के साथ था। मैं आईने में दिखनेवाली इसकी छाया के अलावा यह देखना चाहता था कि परिवर्तन के बाद भी घड़ी काम करती है कि नहीं। और सचमुच घड़ी ने काम करना जारी रखा। यह महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि आगे मैं जीवित प्राणियों पर परीक्षण करने जा रहा था। मैंने कीड़े-मकोड़े, तितलियों, गिनिपिग आदि पर परीक्षण किए। मैंने पाया कि जीवित प्राणी भी इन परीक्षणों के बाद न केवल जीवित रहते हैं बल्कि अच्छी तरह काम भी करते हैं। तब मैंने इन परीक्षणों को आदमी पर आजमाने का फैसला किया। "ऐसे किसी परीक्षण के सभी संभावित परिणामों को ध्यान में रखते हुए मैंने सभी जानकारियों को विस्तारपूर्वक लिखा और ठीक तरह से सुरक्षित स्थान पर रख दिया; क्योंकि मैं यह परीक्षण स्वयं अपने ऊपर करने जा रहा था। इसलिए मैंने परावर्तन मशीन में घुसने से पहले वीडियो कैमरा और टेपरिकॉर्डर चालू कर दिया, ताकि परीक्षण के नतीजों के दृश्यों एवं आवाजों को दर्ज किया जा सके।

"मशीन द्वारा उत्पन्न पुंज से गुजरने के दौरान मेरा अनुभव आश्चर्यजनक रूप से सामान्य रहा। मुझे अपने मोड़े या विकृत किए जाने का जरा भी अहसास नहीं हुआ। पुंज में घूमते वक्त मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। मैंने जो महसूस किया उसे बोलता रहा, जो टेपरिकॉर्डर में दर्ज होता रहा।

"मशीन से बाहर निकलकर मैंने पाया कि मैं सचमुच बदल चुका हूँ; सिर्फ इतना ही नहीं, मेरे कपड़े, कलाई घड़ी, पेन और मेरे पास रखी हर चीज बदल चुकी थी। यहाँ तक कि मेरा दिमाग भी घूम चुका था और दाईं-बाईं दिशा में होनेवाले सभी कार्य मेरे लिए भ्रम पैदा कर रहे थे। मुझे यहाँ तक सोचना पड़ रहा था कि बोतल को खोलने के लिए ढक्कन को किस दिशा में घुमाऊँ, क्योंकि मेरी नई सहज वृत्ति मुझे उलटी दिशा में प्रेरित कर रही थी, लेकिन शारीरिक तौर पर मैं पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त था और महसूस कर रहा था कि मेरा बायाँ हाथ दाएँ हाथ के मुकाबले ज्यादा ताकतवर और कार्यक्षम हो गया है।

"तब फिर अपने अनुभव को पूरा करने के लिए मैं दोबारा पुंज में से गुजरा। उम्मीद के अनुसार बाहर निकलने पर मैं वापस अपनी पुरानी अवस्था में लौट आया था। लेकिन इसके साथ एक चीज और थी, जिसका मैंने पहले ही अनुमान लगा लिया था। मेरे मस्तिष्क में मेरी परिवर्तित अवस्था की कोई याददाश्त नहीं बची थी।

'यह तो परिवर्तन के दौरान विभिन्न उपकरणों द्वारा दर्ज तसवीरें और आवाजें थीं जिनसे मैं स्वयं को यकीन दिला पाया कि वास्तव में ऐसा हुआ था। अपनी परावर्तित अवस्था में मैंने अपने लिखे हुए ब्योरों को देखा था; पर मैं उन्हें तब तक नहीं पढ़ पाया जब तक कि उन्हें आईने के सामने नहीं रखा।

"लेकिन मेरे इस परीक्षण में केवल एक कमी थी जो मुझे खल रही थी। अपनी पूर्वावस्था में लौटने पर याद नहीं रहता था कि परावर्तित अवस्था में क्या- क्या घटित हुआ था। अभी तक मैं इस कमी को दूर नहीं कर पाया हूँ। अब कल सुबह जब मैं अपनी पूर्व अवस्था में वापस लौटूंगा तो मुझे तुम्हारे साथ आज रात की इस मुलाकात का कुछ भी याद नहीं रहेगा।"

अजीत की इस अजीब कहानी को सुनते वक्त मुझे यही लग रहा था कि यह सबकुछ सच नहीं है बल्कि लेविस केरोल, एच.जी. वेल्स और अलिफ-लैला की कहानियों की खिचड़ी पकाकर पेश की जा रही है। लेकिन यह भी सच था कि एक जीता-जागता सबूत मेरे सामने बैठा पोर्ट वाइन की चुस्कियाँ ले रहा था। अपनी तमाम शंकाओं को दूर करने के लिए मैंने अजीत से वह सवाल पूछा जो मुझे काफी देर से कुरेद रहा था-"तो क्या गणेशजी की यह मूर्ति भी छाया है ?" "तुम स्वयं इस बात का पता क्यों नहीं लगा लेते? तुम संग्रहालय के ठीक ऊपर रहते हो।" अजीत का सुझाव एकदम व्यावहारिक था।

चाबियों का गुच्छा उठाकर हम दोनों नीचे ब्रिटिशकालीन संग्रहालय के भारत वर्ग में गए। उस कपाट तक पहुँचते-पहुँचते, जहाँ गणेशजी की मूर्ति ताले में बंद होनी चाहिए थी, मुझे एहसास होने लगा कि हमें क्या दिखेगा! कपाट एकदम खाली था।

"तो आखिरकार मैं उतना उदार दानदाता नहीं था!" अजीत के 'उपहार' खाली कपाट में रखकर वापस लौटा तो अजीत ने व्यंग्य किया। उसने किसी तरह असली मूर्ति को वहाँ से गायब कर दिया और उसे अपने नाटकीय परीक्षण से गुजार डाला।

"अब प्रमोद के शानदार खेल के बारे में कुछ बताओ।" मैंने कहा। अभी तक जो कुछ मैंने जाना था, उससे इस रहस्य पर भी कुछ रोशनी पड़ती थी। "टेस्ट मैच के एक दिन पहले शाम को प्रमोद मेरे पास आया था। वह बहुत उदास और निराश था। मैं जानता था कि टेस्ट मैच गेंदबाज के रूप में उसकी जवानी ढल चुकी थी और अंतिम टेस्ट मैच में उसे लिया जाना केवल काबलीयत के कारण नहीं था। तब उसने कुछ ऐसी बात कही जिससे मुझे अनोखा विचार सूझा कि मेरी गेंदबाजी में जरा भी धार बाकी नहीं बची है, उसका केवल यही रोना था। 'अगर मैं उसे आईने में दिखनेवाली उसकी छाया में बदल डालूँ तो?' मैंने सोचा। इस तरह वह खब्बू गेंदबाज की तरह बाएँ हाथ से गेंदबाजी करेगा; मगर वह किसी साधारण खब्बू गेंदबाज की तरह गेंद नहीं फेंकेगा। उसकी सारी गतिविधियाँ आईने में दिखनेवाले अपने दाएँ हाथवाले गेंदबाज की छाया की तरह होंगी। किसी भी हालत में कोई भी बल्लेबाज उसकी गेंदों को समझ नहीं पाएगा। "मैंने कॉफी में नशीली दवा मिलाकर उसे पिला दी और जब वह बेहोश हो गया तो मैंने उस पर अपना परीक्षण कर डाला। कड़ी सुरक्षा के बावजूद उसे प्रयोगशाला के अंदर ले जाना आसान था। सुरक्षा व्यवस्था में ढेर सारे सुराखों का मुझे काफी पहले ही पता लग चुका था। परीक्षण पूरा करने के पश्चात् मैं उसे होटल में उसके बिस्तर पर लिटाकर आ गया।

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