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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


" लेकिन वह तो छह प्रकाशवर्ष दूर है।"

"हाँ, दुर्भाग्य से हम प्रकाश से भी तेज गति से संदेश नहीं भेज सकते हैं।

मगर फिर भी यह कंप्यूटर हमारे मास्टर कंप्यूटर के संपर्क में रहता है। अगर यह आज कोई संदेश भेजे तो वह मास्टर कंप्यूटर को छह साल बाद मिलेगा-एकदम साफ और ऊँचे स्वर में। पर तुम मेरी बातों पर शक क्यों कर रहे हो?"

सवाल सुनकर शिवा के चेहरे पर संदेह के भाव तैरने लगे। उसने जल्दी से जोरो को आश्वस्त किया, "बेशक, तुम जो बता रहे हो, उस पर मुझे विश्वास है; पर" वह कुछ पलों के लिए रुका और फिर दोबारा बोला, "क्या मैं इसका इम्तहान ले सकता हूँ? मेरे पास एक समस्या है, जिसे हमारा हाइपर कंप्यूटर एक मिली सेकंड के दस लाखवें भाग में हल कर देता है। क्या मैं देख सकता हूँ कि तुम्हारा यह साथी उसे कितनी देर में सुलझाता है?"

'बिलकुल, मुझे बताओ, मैं पहले तुम्हारी प्रोग्रामिंग भाषा को अपनी भाषा में बदल दूं।" पहले तो उसकी पेशकश पर शिवा थोड़ा ठिठक गया; लेकिन फिर अपने ब्रीफकेस तक गया और उसमें से एक गोल डिस्क निकाल लाया। फिर बोला, "देखें, तुम्हारा कंप्यूटर इस छोटी पहेली को हल करने में कितना वक्त लेता है।"

जोरो ने डिस्क अपने हाथ में ली और एक विशेष उपकरण से उसे स्कैन किया। यह उपकरण डिस्क की भाषा का विश्लेषण कर इसके प्रोग्राम की मैंडानी कंप्यूटर की भाषा में बदल डालता है।

उपकरण पर जलती लाल बत्ती बताती है कि काम पूरा हो गया। जोरो मुसकराया और बोला, "अब तुम्हारा प्रोग्राम हमारी भाषा में आ गया है; हमारे कंप्यूटर के लिए इसे सुलझाना मामूली सी बात है।"

यह कहकर उसने एक बटन दबाकर कंप्यूटर को काम पर लगा दिया। उधर शिवा ने राहत की साँस ली और आगे के घटनाक्रम का इंतजार करने लगा।

"यह रहा तुम्हारा जवाब।" जोरो ने प्रिंटर से निकले प्रिंटआउट को लहराते हुए गर्वीले स्वर में कहा। एग्जीक्यूशन टाइम ढाई माइक्रो सेकंड, तुम्हारे मानक से यानी तुम्हारे कंप्यूटर से करीब 400 गुना ज्यादा तेज।

ठीक है, श्रीमान ! मैं हार स्वीकार करता हूँ।" शिवा ने कुछ-कुछ पराजित स्वर में कहा। लेकिन भीतर-ही-भीतर वह उत्तेजना से काँप रहा था। क्या अंत में उसकी जीत होने वाली थी?

उसके बाद घटनाक्रम तेजी से बदला। कुछ रहस्यमय कारणों से एलियन बेड़े की सभी स्वचालित प्रक्रियाएँ ध्वस्त होने लगीं। कुछ भी ठीक से काम करता दिखाई नहीं दे रहा था, क्योंकि लगता था कि सब चीजों पर नियंत्रण रखनेवाला कंप्यूटर पगला गया है। जब तक हो सका, मैंडा ग्रह पर संदेश भेजे गए। लेकिन इन संदेशों को वहाँ पहुँचने और वहाँ से किसी तरह की मदद आने में बारह साल लगेंगे। बेड़े के कमांडर ने तय किया कि अपने कंप्यूटर के बिगड़ने से उनका जिंदा बच पाना मुश्किल है। तेजी से खराब होते संदेश प्रसारण के बीच उसने धरती के बेड़े को एस.ओ.एस. यानी आपातकालीन संदेश जैसा ही कुछ भेजा। धरती के बेड़ों ने आनन-फानन में काररवाई करते हुए सभी मैंडावासियों को पकड़ लिया और उन्हें निरस्त्र कर धरती पर ले आए।

"शिवा, तुमने तो कमाल कर दिया। इसका विचार तुम्हें कैसे आया?" दोनों बंधकों के साथ निजी गुफ्तगू करते हुए अमरजीत सिंह ने पूछा।

शिवा ने ए बी की ओर देखते हुए जवाब दिया, "यह विचार मेरा नहीं था श्रीमान, ए बी के उपजाऊ दिमाग से आया था।"

और मुझे यह तरकीब सूझी एच.जी. वेल्स की कहानी से, जिसमें मंगल ग्रहवासी धरती पर आक्रमण करते हैं। लेकिन यहाँ पर इस मामले में थोड़ा अंतर था। मंगलवासी, जो धरती के सूक्ष्म जीवों का हमला नहीं झेल सके थे, के विपरीत मैंडावासी इन सूक्ष्म जीवों से बेअसर थे। लेकिन उनका कंप्यूटर वायरसों का अभ्यस्त नहीं था।" ए बी ने बताया।

"कंप्यूटर में वायरस ! वह क्या होता है ?" सिंह ने पूछा।

शिवा जोर से हँसा-"बहुत मामूली चीज है, श्रीमान ! बीसवीं सदी के आखिरी वर्षों में कंप्यूटर प्रकट होने लगे थे। ये वायरस असल में छोटे-छोटे प्रोग्राम होते थे, जिन्हें चोरी-छिपे कंप्यूटर प्रोग्राम में डाल दिया जाता था और जो कंप्यूटर के सामान्य कामकाज में गंभीर व्यवधान पैदा कर देते थे। नतीजा? उनका कंप्यूटर सौंपे गए एक भी काम को ठीक से नहीं कर पाया।"

ए बी ने बताया, "लेकिन हमें अपनी प्रणालियों में वायरसों की जरा भी परवाह करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अब हमारे पास सुरक्षा के तमाम उपाय हैं। लेकिन मैंने सोच-समझकर खतरा उठाया है कि हो सकता है, मैंडावासी इस संभावना से बेखबर हों और उन्होंने इस चीज से निपटने की तैयारी न कर रखी हो।"

"तो इस तरह मैंडावासियों को जैविक वायरसों से परेशान करने के बजाय एक अदने से कंप्यूटर वायरस ने उनकी भारी-भरकम प्रणाली को ध्वस्त कर दिया!" सिंह ने गद्गद होते हुए कहा, "पर तुमने वायरस को उनकी प्रणाली में डाला कैसे?"

अपना गला साफ करते हुए शिवा ने बताया, "करीब पचास साल पहले मुझे एक घातक वायरस का पता चला। अब यह पुराने प्रोग्रामों और वायरसों के संग्रहालय में संरक्षित है। यह काम हालाँकि गैर-कानूनी है, लेकिन फिर भी मैंने इसे अपनी आधुनिक प्रणाली में अपना लिया और गणित के एक सवाल के साथ जोड़ दिया। इस तरीके से कि इसे आसानी से अलग न किया जा सके। मैंडावासियों के कंप्यूटर इंचार्ज के बड़बोलेपन को चकमा देना आसान था। उसने जोश में आकर यह पहेली अपनी प्रणाली में डाल दी और फिर जो कुछ हुआ, आपको पता ही है, श्रीमान!"

और फिर वायरस के हमले से घबराए मैंडावासियों ने बिना जाने कि यह क्या चीज है, अपने ग्रह पर रखे मुख्य कंप्यूटर से संपर्क साध लिया। तो इस तरह शिवा का वायरस अंतरिक्ष की अनंत दूरियों को नापता हुआ छह साल में मैंडावासियों के मुख्य कंप्यूटर को भी बिगाड़ देगा।" ए बी ने बात पूरी की।

"तो तुम दोनों ने उस भारी खतरे को टाल दिया जो हमारे सिर पर मँडरा रहा था। अब हम धरतीवासी चैन की नींद सो सकेंगे।" अमरजीत सिंह ने कृतज्ञता से कहा। साथ ही उसने निश्चय किया कि उन दोनों बहादुर नायकों को विशेष 'विश्व सम्मान' दिया जाएगा।

लेकिन वे दोनों नायक स्वयं पूरी तरह से बेफिक्र नहीं थे। सच है कि खतरा फिलहाल टल गया था और वे छह जमा पच्चीस यानी इकतीस साल के लिए सुरक्षित थे। लेकिन यह भी तय था कि मैंडावासी इस समस्या से उबर जाएँगे और दोबारा धरती पर आक्रमण करेंगे, तब उस आक्रमण को टालने के लिए धरतीवासी क्या करेंगे?

उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था, कम-से-कम फिलहाल तो नहीं।

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