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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


"एक सवाल है, श्रीमान चेयरमैन!" बैरन फीट्जऑफ ने पूछा।
"हाँ बैरन, बोलो!"

"अभी तक हमने इस घटनाचक्र से मीडिया को दूर रखा है। लेकिन मेरा सुझाव है कि हम सच्चाई बताते हुए एक औपचारिक प्रेस रिलीज जारी कर दें। मगर उसमें ऐसे शब्द रखें जिससे जनता में भगदड़ न मच जाए।'

"मैं बैरन फ्रीट्जऑफ के सुझाव का समर्थन करता हूँ।" ऑस्ट्रेलियाई प्रतिनिधि ने कहा।

'ठीक है। हम अपनी पूरी कोशिश करेंगे; पर मुझे कोई खास उम्मीद नहीं है।" चेयरमैन ने कहा और प्रेस रिलीज लिखवाने लगा। उन तनावपूर्ण क्षणों में भी सदस्य चेयरमैन की भाषा व शैली की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सके।

'धरती पर दूसरे ग्रह के प्राणियों का आक्रमण।'

'मनुष्य की नस्ल अपने पूरे अस्तित्व पर गंभीर खतरे का सामना कर रही है।' वगैरह-वगैरह। एक बार तो चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की मीडिया की कलाबाजी भी सच्चाई को उजागर करने में कम पड़ गई। ऐसी सच्चाई, जिससे कुछ मुट्ठी भर लोग ही परिचित थे। अलबत्ता इसके बाद से विशेषज्ञों और जानकारों के बीच लंबी चर्चाओं का सिलसिला शुरू हो गया कि आगे क्या होगा?

चर्चा के लिए तीन मैंडावासियों को छिपाकर ले जाने की जिम्मेदारी ए बी को सौंपी गई। उसने यह काम इतनी सफाई से किया कि मीडिया के लोगों को कुछ भी पता नहीं चला। यह बात अलग है कि बातचीत में उसकी कोई भूमिका नहीं थी।

पाँच घंटे तक बातचीत चलती रही। उसके बाद ए बी को सभागार में बुलाया गया। सुरक्षा परिषद् के सदस्य दस मीटर लंबी मेज के एक तरफ बैठे थे और उनके सामने बैठे थे तीन मैंडावासी। तीन मैंडावासी बीस धरतीवासियों पर भारी पड़ रहे थे और तुरुप के सभी पत्ते उनके हाथों में थे। बातचीत में शामिल हुए बिना ए बी इस बात को भाँप गया।

चेयरमैन ने मेज के एक सिरे पर उसके लिए लगाई गई खाली कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा, "बैठो ए बी, और सुनो कि अंत में हम किस नतीजे पर पहुँचे हैं।"

चेयरमैन ने बोलना जारी रखा। मगर उनके साथियों के चेहरों से ए बी ने अनुमान लगाया कि जो कुछ भी सहमति हुई है, वह दरअसल फिजूल की बात है। "मैंडावासी अफ्रीका पर चरणबद्ध तरीके से नियंत्रण स्थापित करने को सहमत हो गए हैं, एक ही बार में नहीं। महाद्वीप को चरणों में खाली किया जाएगा, पूरे दो साल में।"

'क्या समझौता है !' ए बी ने मुँह बिचकाते हुए सोचा और शर्तों को सुनता रहा।

"पहले सात दिनों में वे नील घाटी माँगते हैं, ताकि वहाँ अपने बेड़े को उतार सकें। आगे का काम सुनियोजित और समय सारणी के अनुसार पूरा किया जाएगा। हमारी तरह वे भी इस बात पर चिंतित हैं कि इतनी बड़ी आबादी को अच्छी तरह से और बिना किसी परेशानी के दूसरी जगह बसाया जाए। लेकिन यह पक्का करने के लिए कि हम अपनी ओर से समझौते का पालन करने में कोई कोताही न बरतें, मैंडावासियों ने दो बंधकों की माँग रखी है।" यह कहकर चेयरमैन चुप हो गए। जाहिर है कि अब कोई अप्रिय बात आ गई थी, जिसे वे ए बी को बताने में हिचक रहे थे।

चेयरमैन ने खखारकर गला साफ किया और आगे बोलना शुरू किया- "पहले बंधक के रूप में वे शिवरामकृष्णन को चाहते हैं। जिस तरीके से उसने उनसे संपर्क स्थापित किया उससे वे बेहद प्रभावित हैं।"

'और दूसरे के लिए?" ए बी को लगा कि वह जवाब जानता है और शायद इसीलिए उसे वहाँ बुलाया गया था।

"तुम स्वयं ! वे तुम्हारी नेतृत्व-क्षमता से प्रभावित हैं। कल सुबह ठीक आठ बजे वे शिवा और तुम्हारे लिए एक अंतरिक्ष यान भेज देंगे।"

इन शब्दों के साथ चेयरमैन ने इशारा किया कि बैठक खत्म हो गई। मैंडावासियों ने भी सिर हिलाया।

"घुटने टेक दिए। हमारी मानव जाति में जरा भी साहस नहीं है, बिलकुल भी संघर्ष की क्षमता नहीं बची है।" शिवा ने तीखे शब्दों में कहा, जब उसे इस एकतरफा बातचीत की सूचना दी गई।

पर ए बी सहमत नहीं था-"देखो शिवा! उन्होंने सहज ही हमें निहत्था बना दिया। हम उन्हें किसी भी तरीके से नष्ट नहीं कर सकते हैं, और मुझे भी इस एकतरफा जंग में शहीद होने का शौक नहीं चढ़ा है। हाँ, अगर हम जिंदा रहे तो कुछ कर भी सकते हैं।"

"हाँ, गुलामों की तरह जिंदा रहने की उम्मीद तो कर ही सकते हैं।" "एक पल के लिए सोचो तो सही! हो सकता है, आखिरकार हमें वहाँ से बाहर निकलने का रास्ता मिल जाए।"

"जैसे कि हमारे तेज दिमाग हमसे कहीं ज्यादा इन बुद्धिमान प्राणियों को मूर्ख बना देंगे।" शिवा ने कटाक्ष किया।

"बुद्धिमान भले ही हों, मगर क्या वे चालाक भी हैं ?" ए बी ने पूछा।

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