कहानी संग्रह >> रोमांचक विज्ञान कथाएँ रोमांचक विज्ञान कथाएँजयंत विष्णु नारलीकर
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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...
क्या यह कोई मजाक है ? तुम इस तसवीर को किसी वैज्ञानिक पत्रिका में छपवा सकते
थे।" जॉर्ज ने शिकायत की।
"तुम यह देखकर बताओ कि तुम इससे क्या पता लगा सकते हो-विज्ञान कथा है या
तथ्य? असली या नकली? इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है, जॉर्ज।"
"यह तसवीर किसी साधारण कैमरे से नहीं खींची गई है, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक विधि
से ली गई है। अवश्य ही मुझे तुम्हें यह बताने की जरूरत नहीं; लेकिन इसमें
जितना हमारी आँखों को दिखता है, उससे कहीं ज्यादा और कुछ भी हो सकता है। पर
तुम असल में क्या पता लगाना चाहते हो?" जॉर्ज ने पूछा।
"काश कि मैं जान पाता! जाहिर है कि तुम्हें इस तसवीर के एक-एक टुकड़े की
बारीकी से जाँच करनी है। इस काम में तुम्हारे साहब की तरफ से कितना वक्त लग
जाएगा?" विली ने बेचैनी से पूछा।
"एक सप्ताह, और अगर मैं अपनी नींद की कुर्बानी करूँ तो हो सकता है कि कम समय
लगे!" जॉर्ज ने बताया।
मुसकराते हुए विली ने गोलियों से भरी एक शीशी बाहर निकाली।
"ये गोलियाँ शर्तिया तुम्हारी नींद की जरूरत को आधा कम कर देंगी। नींद में
होनेवाली इस कमी को तुम काम निपटाने के बाद पूरी कर लेना।"
जॉर्ज सलीके के साथ तथ्यपरक काम करने के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन
विली के लिए उससे काम कराने का यह पहला अनुभव था। वह जॉर्ज के उपकरणों
की ऊँची आवर्द्धन क्षमता देखकर हैरान था। उनकी सहायता से विली तसवीर में
हरे मानवों की एक-एक उँगली तक देख सकता था।
क्या इस तरह के कई उपकरण दुनिया में हैं ?" विली ने प्रशंसा के साथ पूछा।
"मैं किसी और उपकरण के बारे में नहीं जानता। यह उपकरण मैंने खुद बनाया
था-अपने इस्तेमाल के लिए।" जॉर्ज ने बताया।
लेकिन हाथों में इतनी कुशलता के होते हुए भी जॉर्ज पल-पल गुजरते वक्त को नहीं
रोक पाया। घंटे दिनों में बदल गए और जल्द ही विली द्वारा निर्धारित एक हफ्ता
भी पूरा होने को आया। लेकिन उसे तसवीर से कुछ भी ठोस तथ्य नहीं मिला-ऐसा कुछ
जो फ्रॉस्ट के अंतिम शब्द 'मगर' पर कुछ प्रकाश डाल सके जाहिर है कि उसके पास
मि. बी को बताने के लिए कुछ नहीं था।
सातवें दिन उनकी प्रयोगशाला में एक नन्हा मेहमान आया। यह था जॉर्ज बाल्डविन
का दस वर्षीय बेटा जॉर्ज जूनियर। जूनियर बहुत ही होशियार और जिज्ञासु था। आते
ही उसने विली पर सवालों की झड़ी लगा दी, जिनका जवाब देना कठिन हो रहा था।
जैसे ही वह थोड़ी देर के लिए चुप हुआ, विली ने अपना सवाल दाग दिया, "जॉर्ज
जूनियर, मेरे पास भी तुम्हारे लिए एक सवाल है। तुम आज क्यों आए हो और यहाँ
कितनी देर टँगे रहोगे?"
"ये तो दो सवाल हुए।" जूनियर ने जवाब दिया, "मैं यहाँ पापा की मदद करने आया
हूँ और जब तक वे अपना काम निबटा नहीं लेते, मैं इंतजार करूँगा; क्योंकि तब
मैं उन्हें हाइकिंग पर ले जाऊँगा। मैं पहले ही एक हफ्ते पीछे चल रहा हूँ।"
शाम होते-होते जॉर्ज ने अपना काम निबटा लिया। फिर उसने विली को अपने कंप्यूटर
के पास बुलाया और समझाया कि वह कैसे काम करता है। अब तुम तसवीर के किसी भी
भाग को स्क्रीन पर खोल सकते हो और कंप्यूटर की सीमाओं के भीतर जितना चाहे,
बड़ा कर सकते हो। मैं जो कुछ सूचनाएँ निकाल सकता था, उन्हें मैंने टेप पर डाल
दिया है। गुड लक।" जॉर्ज तरोताजा होने के लिए चला गया और विली हताशा में वहीं
बैठ गया। वह जानता था कि उसके अध्ययन से कुछ भी अनोखा नहीं निकलेगा। अगर कुछ
अनोखा होता तो क्या वह जॉर्ज को नजर नहीं आता? फिर भी वह कंप्यूटर चालू करके
बैठ गया। उसे कुछ नया पता चलने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन जॉर्ज जूनियर के
सवालों से बचने के लिए वह कंप्यूटर पर तसवीर के विभिन्न पहलुओं को देखने लगा।
पर जल्द ही जॉर्ज जूनियर ने कंप्यूटर पर कब्जा जमा लिया और तसवीर को अलग-अलग
कोणों से देखने लगा। रह-रहकर उसके मुँह से हैरानी भरी आवाजें निकल रही
थीं-"वाह! क्या ये आदमी असली हैं ? यह किस तरह का जहाज है?".." वगैरह।
"देखो-देखो, लगता है, वह आदमी हैमबर्गर खा रहा है।" अचानक ही
जॉर्ज जूनियर जोर से चिल्लाया, "काश कि मेरे पास भी एक होता!"
'बिलकुल ठेठ अमरीकी बच्चा!" विली ने सोचा, जिसे हैमबर्गर और अन्य जंक-फूड' से
चिढ़ थी। तभी अचानक उसे जूनियर की बात की अहमियत का अहसास हुआ।
वह दौड़कर कंप्यूटर के पास पहुँचा और जूनियर को लगभग धक्का देकर हटा
दिया-"किधर? तुमने वह कहाँ देखा?"
जूनियर ने उस हरे आदमी की ओर इशारा किया, जो सैंडविच जैसी चीज कुतर रहा था।
"तुम मुझे बुद्धू नहीं बना सकते, बिगमैक को मैं देखते ही पहचान जाता हूँ।"
जूनियर ने गर्व के साथ कहा।
"तब तो जूनियर, तुमने मेरी एक बड़ी समस्या सुलझा दी। अगर तुम सही हो तो
तुम्हें एक नहीं बल्कि दो बिगमैक मिलने चाहिए।" एक हफ्ते में विली पहली बार
इतना फूला नहीं समा रहा था।
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