कहानी संग्रह >> रोमांचक विज्ञान कथाएँ रोमांचक विज्ञान कथाएँजयंत विष्णु नारलीकर
|
14 पाठकों को प्रिय 48 पाठक हैं |
सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...
4
हरे आक्रमणकारी
टॉम रॉरिच ने डैश बोर्ड पर उड़ती सी नजर डाली और मन-ही-मन कुछ हिसाब
लगाया–अल पासो अभी भी सैंतीस मील दूर था। टेक्सास एक बहुत बड़ा राज्य है।
भूगोल की किताबों में पढ़ना और बात है तथा इसके आर-पार गाड़ी चलाना और। इससे
पहले भी टॉम हजारों मील की दूरियाँ गाड़ी चलाते हुए तय कर चुका था। पर आज उसे
किसी साथी की कमी बहुत खल रही थी, जो सीधे- सपाट हाइ-वे पर गाड़ी चलाते वक्त
उसके अकेलेपन को दूर कर सकता। दूर-दूर तक पसरे बड़े-बड़े खाली मैदान भी एकदम
सुनसान थे। टॉम की ऊब को दूर करने में उनसे भी कोई मदद नहीं मिल रही थी।
पिछले एक घंटे से उसपर थकान हावी हो रही थी। पर रात घिरने से पहले ही उसे अल
पासो पहुँच जाना था और भोजन व आराम की इच्छा को भी तब तक दबाकर रखना होगा। पर
क्या वह समय पर अल पासो पहुँच पाएगा? उसे अपने आप पर शक होने लगा कि वह गाड़ी
चलाते हुए मन एकाग्र नहीं कर पा रहा है। तो क्या वह रुक जाए और आँखें मूंदकर
दस मिनट झपकी ले ले? पर कहीं उसे गहरी नींद आ गई और वह देर तक सोता रहा तो?
किंतु तभी अचानक उसे रुकने का फैसला करना पड़ा। सीधी सड़क पर वह एक छोटे से
मोड़ को नहीं देख पाया और अगले ही पल उसने एक झटके के साथ खुद को सड़क किनारे
रेत में धंसा पाया। आखिर टॉम ने मान लिया कि फिलहाल वह गाड़ी चलाने की स्थिति
में नहीं है और उसने गाड़ी को सड़क के किनारे लगा दिया। शाम के झुटपुटे में
पश्चिमी आसमान में रंगों की एक से बढ़कर एक छटा बिखर रही थी। टॉम को अपने
स्कूली दिनों में पढ़ी उन 'पश्चिमी' महानायकों की याद ताजा हो गई, जिन्हें
घोड़ों पर सवार खुले मैदानों को रौंदते हुए डूबते सूरज की ओर जाते दिखाया
जाता था। पर इस वक्त उनकी हकीकत पर यकीन करना मुश्किल लग रहा था कि धरती पर
ऐसे निर्जन प्रदेश अभी भी मौजूद हैं। खासकर अभी एक सप्ताह पहले ही भारी
भीड़भाड़ के वक्त मैनहटन शहर में गाड़ी चलाने के बाद तो ऐसे वीरानों की
कल्पना करना और भी कठिन था। यह कल्पना क्यों नहीं करते कि तुम्हें किसी दूसरे
ग्रह पर भेज दिया गया है ? आखिरकार टॉम विज्ञान-कथाओं का दीवाना जो ठहरा! उस
विचित्र परिवेश में उसकी कल्पना बहुत ऊँची उड़ान भरने लगी थी।
दूसरे ग्रहों के डिजाइनवाले अंतरिक्ष यान, अजीबो-गरीब बाहरी दुनिया के जीव,
उन्नत महासभ्यताएँ, क्या वास्तव में उनका कोई अस्तित्व है? या इनसान इस विशाल
ब्रह्मांड में एकदम अकेला है, जैसे कि अभी टॉम उस विशालकाय, लेकिन निर्जन
प्रदेशों में निपट अकेला था।
अचानक ही टॉम को लगा कि वह एकदम अकेला नहीं था। पश्चिमी क्षितिज पर उसे एक
सफेद धब्बा नजर आया। शायद वह शुक्र ग्रह था, जो सूर्य डूबने के बाद चमक रहा
था। लेकिन वह धब्बा धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। टॉम के थके-हारे दिमाग को सबकुछ
अजीबो-गरीब लग रहा था; पर अचानक ही उसकी चेतना जाग उठी : वह जो भी 'चीज' थी,
उसके निकट आ रही थी। पर वह 'चीज' कितनी बड़ी थी!
जिंदगी में पहली बार टॉम को लगा कि वह सुनसान जगह पर किसी वस्तु के सही आकार
का सही अंदाजा नहीं लगा पा रहा था"क्या वह मुसीबत में फँसा कोई हवाई जहाज था,
जो आपात स्थिति में उतरने की तैयारी कर रहा था? लेकिन फिर उस 'वस्तु' की
ऊँचाई कम नहीं हो रही थी, हालाँकि वह निकट आ रही थी और फिर वह हवाई जहाज तो
कतई नहीं लग रहा था।
जैसे-जैसे वह चीज पास आती गई, टॉम को एक अजीब सा शोर सुनाई देने लगा। वह शोर
ज्यादा-से-ज्यादा असहनीय होता जा रहा था। आखिरकार अपनी कार में घुसकर टॉम ने
शीशे चढ़ा लिये। इससे शोर कुछ कम तो हो गया, लेकिन तब टॉम को महसूस हुआ कि
उसे उस शोर से परेशानी नहीं थी बल्कि वह उसके तीखेपन से घबरा रहा था।
अपनी सीट पर गिरने से पहले टॉम ने अपने कानों पर ठूसने के लिए टिशू पेपर
खोजने की असफल कोशिश जरूर की पूरे होश-हवाश में।
राज्य परिवहन की बस से उतरकर अपने खेत तक सफर शुरू करने तक शिवा चलने की हालत
में नहीं था। सतारा में उसका दिन अच्छा शुरू हुआ था। कई महीनों बाद आज पहली
बार उसे जुए में मोटा पैसा हाथ लगा था। लेकिन दुर्भाग्यवश उसने जितना पैसा
जीता था उस सबकी शराब खरीदकर पी गया। इसलिए जब बस के कंडक्टर ने उसे उसके
गाँव के स्टॉप पर धक्का देकर उतार दिया तो शिवा ने पैसे बचाने के लिए पैदल
चलना ही बेहतर समझा। वह गाँव तक जानेवाला छोटा रास्ता जानता था, जिससे जाने
पर कुछ किलोमीटर की दूरी बच जाती। उस छोटे रास्ते पर वह कई बार चला था, लेकिन
केवल दिन के उजाले में और अगर इस वक्त वह नशे में धुत्त न होता तो उस रास्ते
पर अमावस की इस रात में गाँव हरगिज नहीं जाता; क्योंकि सारे गाँव को यकीन था
कि उस रास्ते पर भूतों का आतंक छाया हुआ था।
पर आज रात शिवा बिलकुल भी भयभीत नहीं था।शराब के नशे में भूत तो क्या, भूत के
बाप का डर भी नहीं रहता। इसलिए लड़खड़ाता हुआ वह उस डगर पर चला जा रहा था।
उसकी एक ही मंजिल थी-अपने खेत पर जल्द-से-जल्द पहुँच जाना। अचानक ही वह जमीन
पर पड़ी किसी बड़ी सी चीज से जा भिड़ा। उसके मुँह से गालियाँ निकल पड़ीं- इस
सुनसान, भूतों भरे रास्ते पर आधी रात को कौन मूर्ख आया होगा?
पर शिवा ज्यादा देर अँधेरे में नहीं रहा। अचानक ही रोशनी की एक तेज चमक पैदा
हुई और शिवा को नजर आया कि वह किस चीज से टकराया था, और जो कुछ उसने देखा
उससे उसका नशा छू-मंतर हो गया।
असल में वह जमीन पर पड़े एक आदमी से टकरा गया था। हाँ, था तो वह आदमी ही, पर
एकदम हरे रंग का! शिवा के देखते-ही-देखते हरे रंग का वह आदमी चमकने लगा और
आसमान की ओर उड़ने लगा। जैसे ही शिवा ने यह देखने के लिए ताका कि आखिर 'वह'
जा कहाँ रहा है, उसे अजीब सा दिखनेवाला अंतरिक्ष यान नजर आया।
डर के मारे शिवा की बोलती बंद हो गई। उस दिशा से आते अजीब से शोर से उसके कान
फटने लगे।
फिर क्या हुआ? उसे कुछ पता नहीं।
किसी को उसका असली नाम मालूम नहीं था। सब उसे सिस्टर मारिया कहते थे। वह
सिसली के एक कॉन्वेंट में नन थी। कोई उसे कॉन्वेंट के दरवाजे पर लावारिस छोड़
गया था। उसी दिन से वह गूंगी और बहरी थी, लेकिन दूसरों के साथ वह अपनी सुंदर
लिखावट तथा विविध तसवीरों को बनाकर बिना किसी दिक्कत के संवाद कर सकती थी।
मारिया बहुत ही शर्मीली और अपने में मगन रहनेवाली लड़की थी। इस नाते वह मदर
सुपीरियर से तभी मिलती थी जब बहुत जरूरी हो। उस दिन भी मारिया रोजाना की तरह
शाम की प्रार्थना के बाद सैर के लिए गई थी। पर सैर से लौटने पर आज वह कुछ
ज्यादा ही उत्साहित लग रही थी।
'क्या बात है, मेरे बच्चे?" मदर ने प्यार करते हुए उससे पूछा। साथ ही
उन्होंने मारिया को एक राइटिंग पैड और पेंसिल भी दी मारिया के पास बताने को
बहुत कुछ था। उसने ढेर सारे चित्र बनाए और कुछ पंक्तियाँ भी लिखीं।
पन्नों पर लगातार दृष्टि गड़ाए देख रही मदर सुपीरियर को अपनी आँखों पर यकीन
नहीं हो रहा था। उन्हें यकीन था कि मारिया कभी भी काल्पनिक तसवीरें नहीं
बनाएगी। उसने जो कुछ देखा और जिसके बारे में अब वह खबर दे रही थी, उसके पीछे
कोई-न-कोई सच्चाई तो जरूर होगी। उन सबका क्या मतलब था?
|