कहानी संग्रह >> रोमांचक विज्ञान कथाएँ रोमांचक विज्ञान कथाएँजयंत विष्णु नारलीकर
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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...
"बताओ-बताओ, राजेंद्र, मैं सुन रहा हूँ।" प्रो. गाइतोंडे ने कहा।
राजेंद्र ने चहलकदमी करते हुए बोलना जारी रखा-
आपने उस सेमिनार में महाविपत्तिकारी सिद्धांत के बारे में बहुत कुछ सुना है।
आइए, इसे पानीपत की लड़ाई पर लागू करके देखें। खुले मैदानों में सैनिकों .
द्वारा एक-दूसरे से लड़ी गई आमने-सामने की लड़ाइयाँ इस सिद्धांत के शानदार
उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। पानीपत में मराठा सेना अब्दाली के सैनिकों का
सामना कर रही थी। मराठा सेना और अफगान सेना के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं था।
उनके अस्त्र-शस्त्र भी बराबरी के थे। इसलिए हार-जीत बहुत कुछ सेना-प्रमुखों
की रणनीतियों और सैनिकों के हौसले पर निर्भर थी। जब विश्वासराव, जो पेशवा का
बेटा और उत्तराधिकारी भी था, मारा गया तब लड़ाई का पासा ही पलट गया। इतिहास
में दर्ज है कि उसका चाचा भाऊ साहब भी भीड़ की ओर दौड़ गया था। उसके बाद वह
कहीं नहीं दिखा। उस महत्त्वपूर्ण समय में सेनानायकों के खात्मे से सैनिकों को
गहरा धक्का लगा। उनके हौसले पस्त हो गए और उनमें लड़ने की हिम्मत नहीं रही।"
"बिलकुल ठीक, प्रोफेसर! और फटे हुए पृष्ठ पर मुझे आपने जो दिखाया है, वह
बताता है कि जब विश्वासराव गोली खाने से बच गए तो लड़ाई का पासा ही पलट गया।
इस घटना से पूरा इतिहास ही बदल गया और सैनिकों पर इसका असर भी एकदम उलटा था।
उनके हौसले बुलंद हो गए और उनमें लड़ाई लड़ने का नया जोश भर गया, जिससे बहुत
बड़ा अंतर आ गया।" राजेंद्र ने कहा। "हो सकता है। वाटरलू की लड़ाई के बारे
में भी ऐसी ही बातें कही जाती हैं, जिसे नेपोलियन जीत सकता था; लेकिन हम एक
अनोखी दुनिया में रहते हैं, जिसका इतिहास भी अनोखा है। ऐसा हो सकता था' का
विचार अटकलबाजी के लिए तो ठीक है, लेकिन वास्तविकता से इसका क्या लेना-देना!"
गंगाधर ने कहा।
"मैं इसी बात पर आ रहा हूँ। दरअसल, यही चीज मुझे दूसरे बिंदु पर लाती है, जो
आपको कुछ आश्चर्यजनक लग सकता है; पर मेहरबानी कर मुझे सुनिए तो!" राजेंद्र ने
कहा।
गंगाधर पंत उत्सुकता के साथ दोबारा सुनने लगे।
"वास्तविकता से आप क्या अर्थ लगाते हैं ? हम इसे अपनी संवेदनाओं द्वारा
प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं या उपकरणों के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से। लेकिन क्या
यह हमारी दृष्टि तक ही सीमित है ? क्या यह अन्य रूपों में प्रकट नहीं हो सकती
है?" बहुत ही छोटी प्रणालियों-अणुओं और उनके संघटकों पर परीक्षणों से पता चला
है कि वास्तविकता अनोखी नहीं हो सकती है। इन प्रणालियों के साथ काम करते हुए
भौतिकशास्त्रियों ने कुछ चौंकानेवाली खोज कर डाली। इन प्रणालियों के व्यवहार
की कभी भी निश्चित तौर पर भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है, भले ही इन
प्रणालियों को चलानेवाले तमाम भौतिक नियम ज्ञात हों।"
"एक उदाहरण लें-मैं किसी स्रोत से एक इलेक्ट्रॉन दागता हूँ। यह कहाँ जाएगा?
अगर बंदूक से गोली चलाऊँ किसी भी दिशा में, किसी खास गति के साथ, तो मैं
जानता हूँ कि कितने समय बाद गोली कहाँ पर होगी? लेकिन इलेक्ट्रॉन के बारे में
यह बात नहीं कही जा सकती है। यह यहाँ भी हो सकता है, वहाँ भी और कहीं भी। मैं
ज्यादा-से-ज्यादा इसके लिए उदाहरण ही दे सकता हूँ कि किसी खास समय पर यह किसी
खास स्थिति में मिलेगा।"
"क्वांटम सिद्धांत में इस निश्चितता का अभाव है। मेरे जैसे अज्ञानी इतिहासकार
ने भी इसके बारे में सुना है।" प्रो. गाइतोंडे ने कहा।
"तो दुनिया की अनेक तसवीरों की कल्पना करें-एक दुनिया में इलेक्ट्रॉन यहाँ
मिलता है तो दूसरी में वहाँ। किसी और दुनिया में यह कहीं और मिलता है एक बार
शिक्षक पता लगा ले कि यह कहाँ है ! हम जान जाते हैं कि किस दुनिया के बारे
में बात हो रही है। लेकिन वे सभी वैकल्पिक दुनिया एक साथ भी मौजूद हो सकती
हैं।" इतना कहकर राजेंद्र चुप हो गया, जैसे अपने विचारों की कवायद कर रहा हो।
"लेकिन क्या इन अनेक दुनियाओं के बीच में भी कोई संबंध है?" प्रो. गाइतोंडे
ने पूछा।
"हाँ भी और नहीं भी! दो दुनियाओं की कल्पना कीजिए। दोनों में एक इलेक्ट्रॉन
अणु के नाभिकं की परिक्रमा कर रहा है।"
"जैसे कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं।" गाइतोंडे ने टोका।
"वैसे नहीं। हमें ग्रह के परिक्रमा-पथ का पता होता है, लेकिन इलेक्ट्रॉन अपनी
अनगिनत अवस्थाओं में से किसी एक में परिक्रमा कर सकता है। इन अवस्थाओं का
दुनिया को पहचानने में इस्तेमाल किया जा सकता है। एक नंबर की अवस्था में
इलेक्ट्रॉन ऊँची ऊर्जा के क्षेत्र में हो सकता है। दूसरे नंबर की अवस्था में
यह निम्न ऊर्जा अवस्था में होता है। यह कूदकर ऊँची ऊर्जावाली अवस्था से निम्न
ऊर्जा में आता है और विकिरण छोड़ता है या विकिरण इलेक्ट्रॉन को कम ऊर्जावाली
अवस्था से ऊँची ऊर्जावाली अवस्था में पहुँचा सकती हैं। ऐसे संक्रमण
सूक्ष्मदर्शी प्रणालियों में आम हैं, लेकिन अगर स्थूल स्तर पर ऐसा होने लगा
तो क्या हो?" राजेंद्र ने कहा।
तुम्हारी बात मेरी समझ में आ गई। तुम यही कहना चाह रहे हो न कि मैं एक दुनिया
से दूसरी दुनिया के बीच डोलता रहा?'' गंगाधर पंत ने पूछा।
"हाँ, भले ही यह कपोल-कल्पित लगे, लेकिन यही एक कारण है जो मैं बता सकता हूँ।
मेरा सिद्धांत यह है कि विप्लवकारी परिस्थितियाँ दुनिया को आगे बढ़ाने के लिए
बुनियादी तौर पर अलग-अलग विकल्प देती हैं। सभी विकल्प सच्चे होते हैं, लेकिन
प्रेक्षक एक समय में केवल एक का ही अनुभव कर सकता है।"
"लेकिन इलेक्ट्रॉन की तरह डोलकर तुम दोनों दुनियाओं का अनुभव कर सकते हो,
यानी कि अभी तुम इस दुनिया में हो और दूसरी वह जहाँ तुमने दो दिन बिताए।
हालाँकि ये अनुभव भी अलग-अलग वक्त पर होते हैं। इन दो दुनियाओं में से एक का
इतिहास तो हम सब जानते हैं। दूसरी का इतिहास अलग हो जाता है। यह अलगाव पानीपत
की लड़ाई से शुरू हुआ। आप न तो अतीत में गए और न ही भविष्य में। आप वर्तमान
में ही थे, पर एक दूसरी दुनिया का अनुभव कर रहे थे। अवश्य ही काल के विभिन्न
पड़ावों पर होनेवाले बदलावों के कारण कई और दुनियाओं का भी जन्म हो रहा
होगा।"
राजेंद्र द्वारा विस्तार से समझाए जाने के बाद गंगाधर ने वह सवाल पूछा जो
उन्हें सबसे ज्यादा परेशान करने लगा था, "लेकिन मैं इस तरह से डोला ही
क्यों?"
"अगर मैं इसका जवाब जानता तो शायद एक समस्या सुलझा चुका होता! दुर्भाग्य से
विज्ञान में अनेक अनसुलझे सवाल हैं और यह उन्हीं में से एक है। लेकिन इससे
मेरा अनुमान लगाना बंद नहीं होगा।" राजेंद्र ने मुसकराते हुए कहा। "लेकिन इस
तरह एक दुनिया से दूसरी में आने-जाने के लिए किसी परस्पर क्रिया का होना
जरूरी है। शायद जब आपको टक्कर लगी तब आप विप्लवकारी सिद्धांत और लड़ाइयों में
इसकी भूमिका के विषय में सोच रहे होंगे। हो सकता है कि आप पानीपत की लड़ाई के
बारे में सोच रहे हों। शायद आपके मस्तिष्क में न्यूरॉनों ने ट्रिगर का काम
किया।"
आपका अनुमान बिलकुल सटीक है। मैं सचमुच में यही सोच रहा था कि अगर लड़ाई में
मराठों की जीत हुई होती तो इतिहास किस ओर करवट लेता।" प्रो. गाइतोंडे ने कहा,
"दरअसल, मेरे हजारवें अध्यक्षीय भाषण का विषय ही यही था।"
"तब तो आपको खुश होना चाहिए कि अब आपके पास मात्र कल्पनाओं से ज्यादा जिंदगी
के अनुभव हैं। इनसे आप अपने भाषण में जान डाल सकेंगे।" राजेंद्र ने हँसते हुए
कहा। मगर गंगाधर पंत गंभीर बने रहे।
"नहीं राजेंद्र, मैंने अपना हजारवाँ भाषण आजाद मैदान में दिया था; लेकिन भीड़
ने मुझे जबरन मंच से नीचे उतार दिया। प्रो. गाइतोंडे मंच पर अपनी कुरसी बचाते
हुए अदृश्य हो गया, वह अब किसी भी सभा में दुबारा कभी भी नजर नहीं आएगा।
मैंने पानीपत सेमिनार के आयोजकों को अपनी क्षमा याचना भेज दी है।"
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