कहानी संग्रह >> यही सच है यही सच हैमन्नू भंडारी
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मन्नू भंडारी की अनेक महत्वपूर्ण कहानियों का बहुचर्चित संग्रह...
कानपुर
परसों मुझे कलकत्ता जाना है। सच, बड़ा डर लग रहा है! कैसे क्या होगा? मान लो, इण्टरव्यू में बहुत नर्वस हो गई तो? संजय को कह रही हूं कि वह भी साथ चले, पर उसे ऑफ़िस से छुट्टी नहीं मिल सकती है। एक तो नया शहर, फिर इण्टरव्यू! सच, अपना कोई साथी होता तो बड़ा सहारा मिल जाता। मैं कमरा लेकर अकेली रहती हूं, यों अकेली घूम फिर भी लेती हूं, तो संजय सोचता है, मुझमें बड़ी हिम्मत है। पर सच, बड़ा डर लग रहा है।
बार-बार मैं यह मान लेती हूं कि मुझे नौकरी मिल गई है और मैं संजय के साथ वहां रहने लगी हूं। सच, कितनी सुन्दर कल्पना है, कितनी मादक! पर इण्टरव्यू का भय मादकता में भरे इस स्वप्न-जाल को छिन्न-भिन्न कर देता है।…
काश, संजय भी किसी तरह मेरे साथ चल पाता।
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