लोगों की राय

कविता संग्रह >> परशुराम की प्रतीक्षा

परशुराम की प्रतीक्षा

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2216
आईएसबीएन :81-85341-13-3

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

18 पाठक हैं

रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...


हम खड़े ध्वंस में जब भी कुछ गुनते हैं,
रथ के घर्घर का नाद कहीं सुनते हैं।
जिसकी आशा में खड़ा व्यग्र जन-जन है,
यह उसी वीर का, स्यात् वज्र-स्यन्दन है।

अम्बर में जो अप्रतिम क्रोध छाया है,
पावक जो हिम को फोड़ निकल आया है,
वह किसी भाँति भी वृथा नहीं जायेगा,
आयेगा, अपना महा वीर आयेगा।

हाँ, वही, रूप प्रज्वलित विभासित नर का,
अंशावतार सम्मिलित विष्णु-शंकर का।
हाँ, वही, दुरित से जो न सन्धि करता है,
जो सन्त धर्म के लिए खड्ग धरता है।

हाँ, वही फूटता जो समष्टि के मन से,
संचित करता है तेज व्यग्र जन-जन से।
हाँ, वही, न्याय-वंचित की जो आशा है,
निर्धनों, दीन-दलितों की अभिलाषा है।

विद्युत बनकर जो चमक रहा चिन्तन में,
गुंजित जिसका निर्घोष लोक-गर्जन में,
जो पतन-पुंज पर पावक बरसाता है,
यह उसी वीर का रथ दौड़ा आता है।

गाओ कवियो ! जयगान, कल्पना तानो,
आ रहा देवता जो, उसको पहचानो ।
है एक हाथ में परशु, एक में कुश है,
आ रहा नये भारत का भाग्यपुरुष है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book