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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


अट्ठारह जून को रात के ग्यारह बजे फीरोजपुर जिले में ही नजीरपुर उपजिला के चाँदकाठी गाँव में तीन पुलिस वाले और स्थानीय चौकीदार ने कुछ सशस्त्र व्यक्तियों को साथ लेकर तलाशी की। तलाशी करते समय उन लोगों ने हिन्दुओं को देश छोड़ने की चेतावनी दी। सर्वहारा पार्टी का सदस्य होने का आरोप लगाकर दुलाल कृष्ण मण्डल सहित चार-पाँच हिन्दुओं को थाने में ले जाकर उन पर खूब जुल्म ढाया गया। बाद में आठ-दस हजार रुपये लेकर उन्हें छोड़ दिया गया। इस इलाके के काफी हिन्दुओं ने देश छोड़ दिया। खुलना जिले में दिघलिया उपजिला के गाजीरहाट यूनियन के बारह गाँवों में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर अवर्णनीय अत्याचार शुरू हुआ। चुनाव में हार कर चेयरमैन पद के उम्मीदवार मोल्ला जमालुद्दीन किराये के गुण्डे लगाकर हिन्दुओं की खेती-बाड़ी में बाधा डालने लगे। वे धान काट ले जा रहे थे, गाय-बैलों को खोलकर ले जा रहे थे, दूकानों को लूट रहे थे।

बरिशाल जिले के दुर्गापुर गाँव में दान की जमीन पर अवैध कब्जा करने और लीज लेने के विरुद्ध दर्ज मामले के कारण 10 दिसम्बर, 1988 को अब्दुस शुभान और यु. पी. सदस्य गुलाम हुसैन ने हथियारबंद लोगों के साथ राजेन्द्रनाथ के घर पर हमला किया। उन्होंने राजेन्द्रनाथ को कत्ल करने की धमकी देकर घर से सोना-गहना सब लूटकर जाते-जाते घर में आग लगा दी। वे अप्टधातु की बनी राधाकृष्ण की मूर्ति भी उठा ले गये जिन लोगों ने लेना नहीं चाहा उन्हें बुरी तरह से पीटा गया। जाने से पहले वे राजेन्द्रनाथ को सपरिवार देश छोड़ने का हुक्म' दे गये।

26 अगस्त, 1988 की सुबह बागेरहाट जिले में रामपाल उपजिला के तालबुनिया गाँव में कुछ कट्टरपंथियों के उकसावे से प्रेरित होकर पुलिस वालों ने बूढ़े लक्ष्मणचन्द्र पाल के घर में घुसकर उसके पोते विकासचन्द्र पाल की बेधड़क पिटाई की। इतना ही नहीं लक्ष्मणचन्द्र के बड़े बेटे पुलिन बिहारी पाल और मझले बेटे रवीन्द्रनाथ पाल को भी पुलिस ने काफी पीटा। पुलिन की पत्नी ने जब पुलिस वालों को रोकना चाहा तो पुलिस ने उसे भी पीटा! इसके बाद पुलिस पुलिन, रवीन्द्रनाथ और विकास को बाँधकर थाने में ले आयी, वहाँ पर झूठा केस दर्ज करके उन्हें जेल में डाल दिया गया। उन्हें जमानत भी नहीं मिली। दरअसल, स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ समय पहले शोलाकुड़ा गाँव के अब्दुल हाकिम मुल्ला को लक्ष्मण चन्द्र की भतीजी के साथ बलात्कार करने और परिवार के अन्य सदस्यों को मारने-पीटने के जुर्म में लम्बे समय के लिए जेल हो गयी थी। जेल से छूटकर तालबुनिया गाँव के सिराज मल्लिक, हारून मल्लिक और अब्दुल जब्बार काजी को लेकर पुलिस की सहायता से उसने लक्ष्मणचन्द्र पाल के परिवार से इस तरह बदला लिया। इस घटना के बाद सुरक्षा के अभाव से आशंकित कई हिन्दू परिवारों ने देश छोड़ देने का निर्णय लिया।

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