लोगों की राय

जीवन कथाएँ >> लज्जा

लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

360 पाठक हैं

प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


‘दंगे तो सभी जगह होते हैं। इण्डिया में नहीं हो रहे हैं? वहाँ लोग नहीं मर रहे हैं? कितने लोग मर रहे हैं, खबर है?'

‘दंगा तो अच्छी चीज है पिताजी, यहाँ तो दंगा नहीं हो रहा है। मुसलमान हिन्दुओं को मार रहे हैं।'

'खुद को हिन्दू समझते हो तुम?' सुधामय उत्तेजना में बिस्तर से उठना चाहते हैं। उन्हें दोनों हाथों से रोकते हुए सुरंजन कहता है, 'चाहे हम कितना ही नास्टिक क्यों न हों, कितना ही मानवतावादी हों, लोग हमें 'हिन्दू' ही कहेंगे, ‘मालाउन' ही कहेंगे। इस देश को जितना प्यार करूँगा, जितना अपना सोचूँगा, यह देश हमें उतना ही दूर धकेलेगा। मनुष्य को जितना प्यार करूँगा, उतना ही दरकिनार कर दिया जाऊँगा। इनका कोई भरोसा नहीं है पिताजी। आप तो कितने ही मुसलमान परिवारों का मुफ्त में इलाज करते हैं, इस दुर्दिन में उनमें से कितने आकर आपके बगल में खड़े हुए? हम सब को भी माया की तरह लोहे के पुल के नीचे मर कर पड़ा रहना होगा। पिताजी चलिए चले चलते हैं।' सुरंजन सुधामय के ऊपर झुक जाता है।

'माया लौट आयेगी।'

'माया नहीं लौट आयेगी पिताजी। माया नहीं लौटेगी।' सुरंजन के गले से जमे हुए दुःख का एक थक्का बाहर निकलता है।

सुधामय सो जाते हैं। उनका शरीर ढीला पड़ जाता है। बड़बड़ाते हुए कहते हैं, 'माया को ही जब नहीं बचाया जा सका, तो और किसे बचाने जाऊँगा।

'खुद को। जितना कुछ खो चुका हूँ, उसके लिए शोक मनाने को यहाँ बैठा रहूँगा? इस भयानक असुरक्षा के बीच? उससे अच्छा है, चलिए चले चलें।'

'वहाँ क्या करेंगे?'

'वहाँ जो भी होगा कुछ करेंगे। यहाँ पर भी क्या कर रहे हैं? क्या हमलोग बहुत अच्छे हैं? बहुत सुख से?'

'जड़हीन जीवन...'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book