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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


अचानक किरणमयी पूरी भुतही निस्तब्धता तोड़ देती है। कोई कारण नहीं, कुछ नहीं, थोड़ी देर पहले सुरंजन को एक कप चाय दे जाती है, वह रो पड़ती है। उसके बिलखकर रोने की आवाज से सुधामय चकित होकर उठ कर बैठ जाते हैं, सुरंजन भी दौड़कर आता है। देखता है, किरणमयी कमरे की दीवार से माथा टेककर रो रही है। उसे किरणमयी को चुप कराने का साहस नहीं होता है। यह रोना रुकने के लिए नहीं है, यह रोते जाने का है। दीर्घ दिवस, दीर्घ रजनी का जल जमते-जमते हृदय की नदी जब उमड़ पड़ना चाहती है, तब कोई बाँध नहीं होता उसे रोके रख पाने के लिए। सुधामय भी सिर झुकाये स्थिर, रोने से उभर आया तीव्र हाहाकार उनके भी सीने में जाकर चुभता है। रोना थमता नहीं। क्यों रो रही है किरणमयी, कोई नहीं पूछता, क्यों उनका यह हृदय विदारक आर्तनाद, मानो यह सुधामय और सुरंजन दोनों जानते हैं, उनको पूछने की जरूरत नहीं है।

सुरंजन दरवाजे पर खड़ा था, चुपचाप कमरे में घुसता है, ताकि किरणमयी उसके पैरों की आहट सुन कर रुक न जाये। उसके अंदर का घर-द्वार टूटकर गिर जाता है, चूर-चूर हो जाता है, जल जाता है, राख हो जाता है उसका सजाया हुआ स्वप्न। जिस तरह से किरणमयी घर की निस्तब्धता को तोड़कर रो पड़ी थी, उसी तरह सुरंजन भी अचानक चीख उठा-'पिताजी!

सुधामय चौंक उठे। सुरंजन ने उनके दोनों हाथों को जोर से पकड़कर कहा, 'पिताजी, मैं कल सारी रात एक ही बात सोचता रहा। आप मेरी बात नहीं मानेंगे, मैं जानता हूँ। फिर भी कह रहा हूँ, आप मेरी बात मान जाइये। मान जाइये पिताजी। चलिए, हमलोग कहीं चले जाते हैं।'

सुधामय ने पूछा, 'कहाँ?'

'इण्डिया।'

'इण्डिया?' सुधामय इस तरह चौंक पड़े मानो एक विचित्र शब्द सुना हो, मानो 'इण्डिया' एक अश्लील शब्द है, एक निषिद्ध शब्द, उसे उच्चारित करना अपराध है।

किरणमयी का रोना धीरे-धीरे थम जाता है। वह सुबकती रहती है, सुबकते-सुबकते जमीन पर उकडूँ होकर पड़ी रहती है। सुधामय के माथे पर भीषण विरक्ति की रेखाएँ उभरती हैं। कहते हैं, 'इण्डिया तुम्हारे बाप का घर है, या दादा का? तुम्हारी चौदह पीढ़ी के किसका घर है इण्डिया में, जो इण्डिया जाओगे? अपना देश छोड़कर भागने में लज्जा नहीं आती?'

'देश को धोकर पानी पियेंगे पिताजी? देश ने आपको क्या दिया है? क्या दे रहा है मुझे? माया को क्या दिया है आपके देश ने? माँ को क्यों रोना पड़ता है। आपको क्यों रात-रात भर कराहना पड़ता है? मुझे क्यों नींद नहीं आती है?'

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