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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


सुरंजन ने पूछा, 'हम लोग पहले मनुष्य हैं या हिन्दू, बताइए तो?'

काजल कमरे में चारों तरफ देखकर बोले, 'यहाँ भी आये थे न?'

'हाँ।'

'माया उस समय क्या कर रही थी?'

‘सुना है, पिताजी के लिए खाना लगा रही थी।'

'उन्हें मार नहीं सकी?'

'कैसे मारती? उनके हाथों में मोटी-मोटी लाठियाँ थी, रॉड और लोहे की छड़ें थीं। फिर क्या हिन्दुओं की हिम्मत है जो मुसलमानों पर हाथ उठायें, भारत के अल्पसंख्यक मुसलमान उल्टे वार करते हैं। दोनों में मारपीट होती है। उसे दंगा कहा जाता है। वहाँ दंगा होता है और लोग इस देश की घटनाओं को दंगा कहते हैं। यहाँ जो हो रहा है, यह है साम्प्रदायिक आतंक। इसे अत्याचार-उत्पीड़न कहा जा सकता है। एक दल, दूसरे दल को जी भरकर पीट रहा है, मार रहा है।'

'क्या लगता है कि माया लौटेगी?'

'पता नहीं।' माया की चर्चा छिड़ते ही सुरंजन महसूस करता है कि उसके गले में कुछ अटका हुआ है, छाती के अंदर एक शून्यता आ जाती है।

'काजल दा, देश में और क्या-क्या हुआ?' सुरंजन माया का प्रसंग टालना चाहता है।

काजल देवनाथ छत की तरफ धुआँ छोड़कर बोले, 'आठ हजार मकान, दो हजार सात सौ व्यावसायिक प्रतिष्ठान, तीन हजार छह सौ मंदिरों को हानि पहुँचाई गयी, तोड़ दिया गया। बारह लोग मारे गए और दो करोड़ रुपये की हानि हुई। गाँव के गाँव उजाड़ दिये गये। 43 जिलों में ध्वंस-यज्ञ चलाया गया। उत्पीड़ित हुईं दो हजार छह सौ स्त्रियाँ। बुरी तरह क्षतिग्रस्त मंदिरों में पाँच सौ साल पुराना गौरांग महाप्रभु का प्राचीन मंदिर, जो सिलहट के दक्षिण में है, बनियाचंग की कई सौ साल पुरानी कालीबाड़ी, चट्टग्राम का कैवल्यधाम, तुलसीधाम, भोला का मदनमोहन अखाड़ा, सुनामगंज और फरीदपुर के रामकृषण मिशन शामिल हैं।

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