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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


चट्टग्राम के मार सराय में छात्र यूनियन नेता कमाल भौमिक के घर में आग लगाये जाने से उसकी चाची जल कर मर गयी। कुतुबदिया के हिन्दू मुहल्ले में आगजनी में तीन बच्चे जलकर मर गये। सात काइनिया के नाथपाड़ा का सूर्य मोहन आग में जल गया। मीर सराय के वासुदेव से जब पूछा गया कि गाँव पर किन लोगों ने हमला किया तो वासुदेव ने कहा, 'रात में जो लोग मारते हैं, दिन में वही सहानुभूति जताते हुए कहते हैं, 'तुम लोगों के लिए दिल रोता है।' खाजुरिया का यात्रामोहन नाथ पूछने पर कहता है, 'इससे अच्छा है, मुझे गोली से उड़ा दीजिए। वही ठीक रहेगा।' और इधर साम्प्रदायिक हिंसा शुरू होने के छह दिन वाद वांग्लादेश के असाम्प्रदायिक राजनीति दलों को लेकर राष्ट्रीय समन्वय कमेटी ने सांस्कृतिक गटी की साझेदारी में सर्वदलीय साम्प्रदायिक सद्भाव का निर्माण किया है। साम्प्रदायिकता की आग जब बुझ चुकी है, तब कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी एक शांति जुलूस निकालने और आम सभा आयोजित करने के सिवा कोई और कार्यक्रम लेने में व्यर्थ साबित हुई है। आम सभा से जमात शिविर फ्रीडम पार्टी की राजनीति को प्रतिबंधित करने की माँग की जायेगी। इस माँग को सद्भावना कमेटी कितना महत्त्व देगी, सरकार की ओर से जमात शिविर-फ्रीडम पार्टी को प्रतिबंधित न किये जाने पर, वह देशव्यापी आन्दोलन में उतरेगी भी या नहीं, सुरंजन जानता है कि इस मुद्दे पर कोई भी नेता मुँह नहीं खोलेगा। कमेटी के किसी-किसी सदस्य ने लूटपाट करने वालों के खिलाफ मुकदमा चलाये जाने की बात भी कही है। लेकिन शनि अखाड़े के एक पीड़ित-प्रताड़ित व्यक्ति ने कहा, 'शनि अखाड़े में जिन लोगों ने तोड़-फोड़ की, हमारे घरों को जलाया, लूटपाट की, उन्हें हम जानते हैं। लेकिन हम लोग मुकदमा नहीं करेंगे क्योंकि जब विरोधी दल हमारे ऊपर हुए हमले को रोक नहीं पाये, तब मुकदमे के बाद वे हमें क्या सुरक्षा दे पायेंगे।' मुकदमा चलाने की बात को लेकर समूचे देश में ऐसी ही प्रतिक्रिया होगी। मुकदमा करने की अपील को सुरंजन राजनीतिक स्टंट ही मानता है। लोकतांत्रिक ताकतें तेजी से कार्यक्रम लेकर साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए आगे नहीं आ पायीं। उनकी तुलना में साम्प्रदायिक ताकतें ज्यादा संगठित रूप में तेजी से अपना काम कर गयीं। एक हफ्ते बाद 'सर्वदलीय सदभावना कमेटी' का गठन करके लोकतांत्रिक राजनीतिक दलों एवं संगठनों की आत्मतुष्टि का कोई कारण नहीं है। पाकिस्तान और भारत की तुलना में बांग्लादेश में साम्प्रदायिक दंगे कम हुए हैं, ऐसा संतोष अनेक बुद्धिजीवियों को है, लेकिन सुरंजन समझ नहीं पाता है कि वे लोग क्यों नहीं समझना चाहते कि बांग्लादेश में घटनाएँ एकतरफा होती हैं। यहाँ के हिन्दू भारत के मुसलमानों की तरह पलटकर वार नहीं करते। यही कारण है कि यहाँ दंगे कम होते हैं। इस उपमहादेश के तीनों राष्ट्रों के सत्तारूढ़ दलों ने राजनीतिक फायदे के लिए कट्टरपंथी, फासिस्ट ताकतों से हाथ मिला रखा है। कट्टरपंथियों ने ताकत इकट्ठी की है। भास्त, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, अल्जीरिया, मिस्र, ईरान, साइबेरिया में उनका एक ही मकसद है लोकतांत्रिक ताकतों को चोट पहुँचाना। जर्मनी की सरकार ने तीन तुर्की नागरिकों को जलाकर मारने के अपराध में दो फासिस्ट दलों पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत में भी साम्प्रदायिक दलों पर प्रतिबंध लगाया गया। लेकिन भारत का यह प्रतिबंध कितने दिनों तक टिकेगा, कहा नहीं जा सकता। अल्जीरिया में भी प्रतिबंध लगा है। मिस्र की सरकार ने कड़ाई के साथ कट्टरपंथियों का दमन किया है। ताजिकिस्तान में कट्टरपंथियों और कम्युनिस्टों के बीच लड़ाई जारी है। क्या बांग्लादेश की सरकार ने भूल कर एक बार भी कट्टरपंथी, फासिस्ट दलों पर प्रतिबंध .. लगाने की बात कही है! चाहे और किसी भी देश में धर्म को लेकर राजनीति बंद हो जाये, इस देश में नहीं हो सकती।

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